मेरे पथ प्रदर्शक
मेरे पथ प्रदर्शक
मेरा ये मानना है कि भारतीय परिवार की जो फलती फूलती इकाई की सकल्पना है, उसको हमारे परिवार का अच्छा खासा योगदान है। अपने माता- पिता की दस संतानों में से मैं चौथी हूँ। बाकी पाँच बहनें और चार भाई है। जब से मैंने होश संभाला, मुझे अच्छी तरह याद है कि हमने माँ पिताजी के चेहरे पर कभी भी शिकन नहीं देखी। उन्होंने हमेशा पोषक व सकारात्मक वातावरण प्रदान किया। मेरा बचपन की तस्वीर एक ऐसे घर की है जहां किसी को आदर्श की तलाश मे घर से बाहर नहीं देखना पड़ता था। अत्यंत उसूल पसंद पिता और सबको साथ लेकर चलने वाली सौम्य माँ।
घर मे शिक्षा पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। विशेषरूप से बेटियों की शिक्षा पर, ताकि वो बेटो की तुलना मे कही पीछे न रह जाए। माँ अपने समय की आठवी क्लास तक ही शिक्षित थी फिर भी उन्होने शिक्षा के महत्व को बहुत अच्छी तरह समझा। आज जब बेटियों के बारे मे लोगों की मानसिकता के बारे मे सोचती हूँ तो मैं अपने आपको खुशकिस्मत समझती हूँ। मेरे माता-पिता ने मेरा साथी, शिक्षक, सलाहकार एवं शुभचिंतक बनकर यह सिखाया कि कैसे परिस्थितियों का सामने से मुकाबला करके उनको संभाला जाता है। माता पिता की सोच का दायरा इतना विस्तृत था कि वो हमेशा यही कहते थे कि बेटियों को इतनी खुशियाँ दो जहाँ तक हो सके उनकी ख्वाहिशें पूरी करो ताकि उन्हे कभी किसी चीज की कमी महसूस न हो। पता नहीं आगे उनकी किस्मत मे क्या लिखा है। पैतालीस साल पहले उनकी सकारात्मक मानसिकता ही थी कि बेटियों की उच्च शिक्षा को अत्यन्त गंभीरता से लिया। दोनों ने ही बचपन से यह सिखाया कि तुम लोग इतना सक्षम बनो, जिंदगी मे कोई मुकाम हासिल करो और खुद अपनी एक पहचान बनाओ।
अकसर बुआ से सुनने को मिलता था कि बारी (मेरे पिताजी) तुम बेटियो को ज्यादा शिक्षित करने की जरूरत नहीं है। मुझे खेलकूद और एन.सी.सी. बहुत पसंद था। मुझे याद है मैं 26 जनवरी की परेड जो स्टेडियम मे होनी थी, एन.सी.सी. की ड्रेस पहनकर जाने के लिये तैयार हुई। उन दिनों बुआ जी और बड़े पापाजी हमारे घर पर ही थे। बस फिर क्या ? जैसे ही मेरा सामना उन दोनों से हुआ तब उनकी प्रतिक्रिया देखने लायक थी। दोनों माँ पिताजी पर नाराज होने लगे कि तुमने बेटियों को बहुत ज्यादा आजादी दी है वो ठीक नहीं है। क्या जरूरत है बेटियों को उच्च शिक्षित करने की, वो तो पराए घर चली जायेंगी । घर का कामकाज सिखाओ जो काम आयेगा।
माँ ने समाज के नकारात्मक विचारो का विरोध करते हुए हम सभी बहनों को उच्च शिक्षित किया। उनका कहना था कि हमारी सम्पत्ति और बैंक बैलेन्स हमारी बेटियों की उच्च शिक्षा है। जीवन के हर मोड़ पर हमे प्रेरित किया। सभी के जीवन मे कुछ अच्छे बुरे पल होते हैं लेकिन बुरे पलों से कैसे उबरना है वो माँ-पिताजी से सीखा। वक्त कितना भी खराब क्यों न हो पर दिल से कभी मत हारना और ऊपर वाले पर भरोसा करना। सबसे बड़ी बात ये है कि बात उन्होंने कभी भी बेटियों को घर की दहलीज़ से बांधने की कोशिश नहीं की। जब मैं आज के हालातो के बारे मे सोचती हूँ, अफसोस होता है कि हमारे समाज मे बेटियों को बेटों से कमतर आँका जाता है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाये तो ज़्यादातर परिवारों मे बेटियों के जन्म पर आज भी मायूसी छा जाती है। अगर लोग आज भी बेटियों को बोझ समझते हैं तो ऐसी संकीर्ण सोच का कारण अपूर्ण शिक्षा है। माता पिता ने कभी नहीं सोचा और न ही हमको ये कभी एहसास कराया कि बेटियाँ हम पर बोझ है।
मेरे माँ-पापा हमेशा यही कहा करते थे हमे गर्व है कि हमारी बेटियाँ घर की रौनक है। आज पापा इस दुनिया में नहीं है पर मुझे ऐसा महसूस होता है कि वो हर पल मेरे आसपास ही है, हमारी हिम्मत और कभी न कम पड़ने वाला स्रोत है। पापाजी की एक बात मुझे याद है कि वे हमेशा कहते थे कि हर परिस्थिति मे सकारात्मक और आशावादी रहो और सच्चाई के रास्ते पर चलो, जीत तुम्हारी ही होगी। संघर्ष और संस्कार भी उन्हीं से सीखा। हम सभी बहनें आत्मनिर्भर है। आज मैं जिस मुकाम पर हूँ गर्व महसूस करती हूँ वो सब माता-पिता की कठोर तप एवं मेहनत का ही परिणाम है। मैं अपने माता-पिता को शत-शत नमन करती हूँ।