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Vijay Harit

Drama Inspirational Tragedy

3.1  

Vijay Harit

Drama Inspirational Tragedy

धुँध छट गई थी

धुँध छट गई थी

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प्रभाकर का छोटा सा परिवार था। उसकी पत्नी सुधा हाउस वाइफ थी। पूजा-पाठ करती और शांत रहती। प्रभाकर अच्छी पोस्ट पर अधिकारी था। काफी रोब था उसका। सब ऑफिस में उससे डरते थे इसी कारण उनके कोई खास मित्र आदि भी नहीं थे। हाँ, राघव उनके बचपन के मित्र थे और उनसे प्रभाकर की अच्छी बनती थी। ऑफिस वाला अनुशासन वह घर पर भी रखते थे।

घर मे डाँट-फटकार बस वे ही करते थे। उनके दो संतान थी। बड़ी लड़की का नाम मेघा था। वह पढ़ाई में बहुत तेज थी एवं स्कूल में हमेशा प्रथम आती। प्रशांत, उसका छोटा भाई बचपन से ही बड़ा शरारती और चंचल था। उसका पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। हमेशा खेलकूद में लगा रहता। इसके कारण हमेशा उसे डाँट-फटकार पड़ती थी पर वह इन सब की परवाह नहीं करता।

एक बार प्रशांत की स्कूल से शिकायत आई। पापा ने उसे बहुत डाँटा। प्रशांत रोते हुए माँ से बोला की पापा उसे बिल्कुल प्यार नहीं करते। माँ ने प्यार से समझाया, की इस डाँट में ही उनका प्यार छुपा है। हमेशा इसी लिए डाँटते हैं ताकि तू पढ़-लिख कर काबिल इंसान बने। दीदी को कभी नहीं डाँटते क्योंकि वह शरारत नहीं करती। पर वो नहीं जानती थी की बचपन का ये अहसास जवानी तक चलेगाI

माँ-बाप के लिए बच्चों में इस प्रकार का कमपेरिजन करना घातक होता है। 75% बच्चों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्रशांत के दिमाग पर भी इसका गलत प्रभाव पड़ा और वह अधिक उदंडी हो गया। विवश होकर प्रभाकर को उसे बोर्डिंग स्कूल में भर्ती कराना पड़ा। प्रशांत बहुत दुखी हुआ, रोया चिल्लाया, लेकिन प्रभाकर का फैसला नहीं बदला I वह प्रशांत के उज्जवल भविष्य की कामना कर रहे थे।

इस सब में वो ये भूल गए की इससे प्रशांत के मन में बुरा प्रभाव पड़ रहा था I वह प्रभाकर से नफरत करने लगा। जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, पिता-पुत्र के बीच खाई गहरी होती गई। दूरियाँ इतनी बढ़ गई की प्रभाकर जब बोर्डिंग स्कूल जाते प्रशांत उनसे मिलने भी नहीं आता। प्रशांत अपने पिता से रिश्ता खत्म कर देना चाहता था पर उसे यह मालूम नहीं था, कि दिल के रिश्ते कभी खत्म नहीं होते, बस कभी-कभी खामोश हो जाते हैं। उन पर धूल जमा हो जाती है।

स्कूल के फादर ने प्रभाकर को बताया ही प्रशांत पढ़ने-लिखने में तो औसत है, पर खेलकूद, नाटक एवं अन्य प्रतियोगिताओं में अव्वल है लेकिन प्रभाकर अपनी जिद पर अटल थे। वह मानते थे कि मात्र खेलने-कूदने से सफलता हासिल नहीं होती। वह प्रशांत को अपने से भी बड़ा अधिकारी बनते हुए देखना चाहते थे। प्रभाकर भूल रहे थे की बच्चों के भविष्य के निर्माण के लिए, उन्हें स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ान भरने के लिए सहारा मात्र देना चाहिए।

दिन महीनों में बीते और महीने साल में, मेघा प्रतियोगिता में उत्तीर्ण आकर बैंक में लग गई किंतु प्रशांत एक भी प्रतियोगिता में सफल नहीं हुआ। हालांकि अपने लंबे चौड़े कद व आकर्षक चेहरे की वजह से वह एक हीरो जैसा लगता था। स्कूल के दिनों में भी क्लास से ज्यादा वह रंगमंच में अभिनय करता, और सबकी वाहवाही बटोरता। इसी कारण प्रशांत फिल्म इंस्टीट्यूट जॉइन करना चाहता था, पर प्रभाकर के सामने उसकी न चली। पिता-पुत्र के झगड़े से क्लेश होता और एक दिन तंग आकर, प्रशांत ने घर छोड़ दिया।

माँ ने बहुत रोकने की कोशिश की, परन्तु प्रभाकर ने उन्हें रोक लिया I उन्होंने कहा कि प्रशांत ने अभी जमाने की ठोकरें नहीं खाई है, और जब उसे आटे-दाल का भाव मालूम पड़ेगा तो खुद घर वापस आ जाएगा। लेकिन प्रशांत वापस नहीं आया।

प्रशांत मुम्बई चला गया I अपने हुनर और लुक्स की वजह से उसे टी.वी. सिरियल् में काम मिलने लगा। धीरे-धीरे उसके विषय में अखबारों में छपने लगा। जब उसकी माँ ने पहली बार अपने बेटे की फोटो एक अखबार में देखी, मारे खुशी के उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े। देखते ही देखते वह टी.वी. से फिल्मों में काम करने लगा और एक हरदिल अजीज सितारा बन गया।

इस दौरान वह अपनी माँ और दीदी के टच में रहा। जब माँ उसे घर आने कहती तो वह बोलता कि मेरा भी दीदी के प्यारे-प्यारे बच्चों को खिलाने का मन है, आपकी डाँट सुनने का मन है, पर मैं वहाँ नहीं आ सकता।

एक और भी शख्स था जो प्रशांत की सफलता से खुश था। जब पहली बार प्रशांत को टीवी पर देखा तो प्रभाकर ने ऑफिस में मिठाइयाँ बाटी थी। हाँ, घर में कभी जिक्र नहीं किया, सख्त होने का मुखौटा जो पहना था।

“मैं गलत हूँ।” यह मानने में डर जो लगता था। पर मन ही मन खुशी सी होती थी। वह दिल की सारी बात अपने बाल सखा राघव को बता देते थे। वे कहते कि जिंदगी में पहली बार मुझे गर्व है कि मैं गलत था। मेरे बेटे ने मुझे गलत साबित किया और मुझसे कहीं बड़ी सफलता हासिल की। मेरे सीने को गर्व से चौड़ा कर दिया है।

एक दिन प्रभाकर घर में बैठे अखबार पढ़ रहे थे, तभी दूर से उन्हें एक बड़ी कार आती दिखाई दी। उस कार ने उन्हीं के अहाते में प्रवेश किया और उसमे से सूट-बूट पहना प्रशांत बाहर आया। उसने जब अपना काला चश्मा उतारकर प्रभाकर की तरफ देख तो उसकी आँखों में घमंड और गुस्सा दोनों थे। प्रभाकर से एक शब्द भी बोले बिना वह घर में घुस गया। घर में जैसे दिवाली जल्दी आ गई थी। पुत्र को देख कर माँ अपने आँसू नहीं रोक पा रही थी। उन्होंने उसकी बहन को भी बुला लिया I

प्रशांत सबके लिए कुछ उपहार लाया था परंतु पिता के लिए कुछ भी नहीं। कुछ पल बिताने के बाद वह उठकर खड़ा हो गया और दृढ़ आवाज मे माँ से बोला “तुम मेरे साथ चलो।“ उसने ना ही पिता का जिक्र किया, और कहा कि वह उनसे नहीं पूछेगा।

सुधा स्वयं भी पुत्र के साथ रहकर उसका ख्याल रखना चाहती थी। वह डरे दिल से प्रभाकर के पास गई और हिचकिचाते हुए उनसे कुछ कहने लगी। पर इससे पहले वह कुछ कहती, प्रभाकर ने खुद ही कहा, तुम उसके साथ में जाओ, उसका ख्याल रखो। बेटा कितने साल से अकेला रह रहा है। उसकी फिक्र होती है मुझे। मैं साथ चल के उसका मूड खराब करना नहीं चाहता।

मैं यहां ठीक रहूँगा, तुम कुछ दिन साथ रहके आओ।

रात मे प्रभाकर ने उन्हें रवाना तो कर दिया पर उनके दिल में कुछ अजीब सी घबराहट हो रही थी। उसने सुधा का फोन लगाया पर किसी ने उठाया नहीं। “फोन तो हमेशा उठा लेती है, क्या हुआ होगा।“ वह अभी सोच ही रहे थे की तभी एक अनजान नम्बर से फोन आया। उस तरफ से घबराई आवाज ने उन्हें बताया कि प्रशांत की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है। सुधा और प्रशांत दोनों हॉस्पिटल में एडमिट है। सुधा को कम चोट लगी है, परंतु प्रशांत क्रिटिकल कंडीशन में है। गाड़ी का स्टेरिंग प्रशांत के पेट में घुस गया था। कुछ देर के लिए प्रभाकर का दिमाग सुन्न पड़ गया। जैसे-तैसे हिम्मत बटोर कर वह हॉस्पिटल पहुँचा।

करीब 10 दिन बाद, प्रशांत को होश आया। उसने धीरे-धीरे आँखें खोल कर देखा, सिरहाने पर माँ, दीदी, बच्चे, जीजा और उसके पिता के परम मित्र राघव बैठे हैं, परंतु प्रभाकर नहीं है। ना चाह कर भी उसे बुरा लगा। बहुत साल तक अपने आपको यह कहने के बावजूद की उसके पिता उसके दुश्मन है, आज मुसीबत के पल में उसकी आँखें उन्हें ही ढूंढ़ रही थी। जैसे बचपन में वह उसे संभालते थे, उसे महफूज होने का एहसास दिलाते थे, उसे लगा कि आज, जब वह बिखरा हुआ है, उन्हें देखकर उसे अच्छा लगेगा। कुछ दिन और बीते, परंतु प्रभाकर कभी नहीं आए। धीरे धीरे प्रशांत की क्षमता लौट आई, और उसका पिता के लिए क्रोध भी लौट आया। कितना घमंडी आदमी है मेरा बाप, वह सोचता था।

जिस दिन प्रशांत डिस्चार्ज हुआ, उसे लेने राघव आए। रास्ते में उन्होंने बताया कि उन्हें उसकी फिल्में बहुत पसंद है। वह और प्रभाकर मिलकर उसकी सारी फिल्में और प्रोग्राम्स देखते थे। इसके बाद प्रभाकर घंटों उसकी बात करते हैं। कितना अच्छा एक्टिंग करता है; झगड़ा करके गया था, लेकिन खुद से कुछ बन कर दिखाया, वह कहते। राघव ने बताया की उन्होंने कभी प्रभाकर को इतना खुश नहीं देखा था। देखते ही देखते घर आ गया।

प्रशांत स्टिक के सहारे गाड़ी से उतरा। ना चाह कर भी उसकी नजर लॉन में पड़ी कुर्सियों पर गई, जहाँ उसके पिता अक्सर चाय की चुस्की के बीच अखबार पढ़ा करते थे। जाने क्यों वह उन्हें देखना चाहता था। वह अब भी उनसे नाराज था, पर आज पहली बार दिल खोलकर सब कुछ कह देना चाहता था। कई सालों बाद उसे महसूस हुआ की अपने पिता को उसने कितना मिस किया है !

जब वह घर में घुसा, घर की दरों-दीवारें उसे एक खामोश से गम का इजहार करती हुई दिखी। उसने गर्दन घुमाई और जो देखा वह देख कर उसे चक्कर आ गए। उसके पैरों से जैसे जान निकल गई हो, वह गिरने लगा परंतु राघव ने तुरंत आकर उसे संभाल लिया। सामने उसके पिता की तस्वीर थी जिसपे माला चढ़ी हुई थी। उसने माँ की ओर देखा, वह चाहता था कि उसकी माँ हँस दे, की ये बस एक मजाक है। पर माँ की आँखों में भी आँसू थे। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

बड़ी मुश्किल से प्रशांत ने लब्ज़ बोले, “कैसे माँ कब ?” माँ ने एक लिफाफा उसकी तरफ बढ़ाया। काँपते हाथों से प्रशांत ने लिफाफा खोला। उसमें लिखा था,

“प्रिय बेटा प्रशांत, मैं गलत था। तुम सही थे। मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हारी प्रतिभा को समझ नहीं पाया। तुम्हारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की जगह, मैंने तुम्हें छोड़ दिया। उस दिन जब तुम घर छोड़कर जा रहे थे मैं तुम्हें रोकना चाहता था। मुझे लगा जैसे मेरे दिल का टुकड़ा मुझसे दूर जा रहा है। पर मैंने अपने घमंड को हावी होने दिया, और तुम्हें जाने दिया। बेटा मुझे माफ करना। सच में, तुम इतने बड़े स्टार बनोगे मैंने कभी कल्पना नहीं की थी, शायद मैं इतना ऊँचा सोचने काबिल ही नहीं था। तुमने सच में मुझे हरा दिया। लेकिन इसमें भी कहीं मेरी जीत है। मैं बस तुम्हें सफल होते देखना चाहता था, तुमने मेरा सपना पूरा कर दिया।

एक्सीडेंट में तुम्हारी किडनी क्षतिग्रस्त हो गई है। तुम्हारा ब्लड टाइप रेयर है, वह तो शुक्र है कि हमारा खून मिलता है, और मै तुम्हें अपनी किडनी दे सकता हूं। बेटा, डॉक्टर ने मुझे बताया मेरी उम्र के कारण किडनी देने से मुझे नुकसान हो सकता है। पर वक़्त कम है, और कोई दूसरी किडनी का इंतजार नहीं कर सकते। अभी मुझे बहुत जीना है, तुम्हारे बच्चों को खिलाना, तुम्हारी बहन को बैंक मैनेजर बनते हुए देखना है, तुम्हारी माँ को तुम पर इठलाते हुए देखना है। लेकिन तुम्हें कुछ होने भी नहीं दे सकता, कई साल पहले तुम्हारा हाथ छोड़ दिया था मैंने, अब दोबारा नहीं कर सकता। मैं खुश हूँ। अगर मुझे कुछ हो जाता है, तुम अपनी माँ और दीदी का ख्याल रखना। और सफलता पाना, पर हमेशा विनीत रहना। मेहनत करना, लोगो की मदद करना, खुश रहना। और अपने बच्चों पर ख्वाहिशें थोपने की जगह, उनको उनके दिल की करने देना। मेरी गलती मत दोहराना।

मैं जहाँ भी रहूँ, हमेशा तुम्हें देखता रहूँगा, तुम्हारा ख्याल रखूँगा, तुम्हे महफूज़ रखूँगा और कभी हिम्मत की जरूरत हो, तो अपना दिल टटोल लेना। मैं आसपास ही दिखूँगा।

तुम्हारा पापा।“

खत पढ़ते-पढ़ते प्रशांत की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन वह उन्हें पौंछकर फिर पढ़ने लग जाता। माँ ने उसे बताया कि प्रभाकर का शरीर किडनी की कमी को बर्दाश्त नहीं कर पाया और वह चल बसे।

प्रभाकर खत के लफ्जों को हाथ से महसूस करने लगा। अपने पिता की तस्वीर की ओर देखने लगा। रिश्तों पर पड़ी धूल अब साफ हो गई थी, धुंध छट गई थी। थोड़ी देर जरूर हुई थी, पर जीवन यूँ ही चलता रहता है।


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