भीख
भीख
(दृश्य: एक भिखारी मंदिर के सामने भीख माँगने बैठा हुआ था। वहाँ से गुजरती एक बच्ची उसे देखकर रुक गयी।)
बच्ची: अंकल आप रोज़ इतनी धूप में बैठ कर क्या करते हो।
भिखारी: बेटा मैं यहाँ मंदिर आते जाते लोगों के लिए इंतज़ार करता हूँ।
बच्ची: लेकिन क्यों?
भिखारी: लोग मंदिर जाते हैं और जाते जाते मेरे झोली में पैसे डालते हैं।
बच्ची: लोग आप को मुफ्त में पैसे क्यों देते हैं?
भिखारी: बेटा, मुफ्त में लोग कुछ भी नहीं देते। न मैं मुफ्त में कुछ लेता हूँ। मैं यहां बैठ पुण्य बेचता हूँ।
बच्ची: पुण्य? वह क्या होता है?
भिखारी: लोग यहां जिंदगी में किए हुए पाप छोड़ कर पैसे दे कर पुण्य खरीद कर ले जाते हैं।
बच्ची: अच्छा, ऐसा है क्या? तो आप के पास ढ़ेर सारा पुण्य होना आवश्यक है ताकि आप लोगों को दे सको। ठहरिए, मैं आप को कुछ देती हूँ।
[दृश्य: उस बच्ची ने इधर उधर देखा और रास्ते के किनारे से एक फूल तोड़ ले आई। उसे उस भिखारी को दिया।]
बच्ची: अंकल ये मेरी आज तक कमाए हुए पुण्य है इसे आप रख लीजिए और ये भी दे दीजिए।
(दृश्य: भिखारी के आँखे अश्रु से भर आये। उसने फूल ले लेकर आशीर्वाद दिया।)
भिखारी: बेटा आप के पास भगवान का दिया पवित्र मन है, आप बड़े हो कर भी ऐसे ही रहना, कभी मत बदलना।
(दृश्य: वह भीगे नयनों से उस बच्ची को देखते रह गया। उसे ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे स्वयं भगवान एक बच्ची के रूप में उसके सामने प्रकट हैं।)