लघुकथा - लड़कों का शौक
लघुकथा - लड़कों का शौक
"ये लो बेटा। तीन टिकट बुक करा दिये हैं एवेंजर्स के।" - पापा ने बताया।
"तीन टिकट क्यूँ? परिमल और रवि के साथ तू भी वो अँग्रेज़ी फिल्म देखने जा रहा है के?" - दादी ने पूछा।
"नहीं माँ। तीनों बच्चे ही जा रहें हैं।" - माँ बोलीं।
"तीन कौन? कोई दोस्त भी है के इनका?" - दादी ने फिर पूछा।
"अरे माँ, तीन बच्चे मतलब अपने ये परिमल, रवि और गुड़िया।" - अबकी बार पापा ने जवाब दिया।
दादी ने अचरज के साथ मेरी ओर देखा और बोलीं,
"तू के करेगी अँग्रेज़ी फिलम देखकर? ये तो लड़कों के शौक़ होए हैं।"
इसके बाद का जवाब भी पापा और माँ ने ही दिया। मैं तो कुछ नहीं बोली लेकिन मन ही मन सोच रही थी कि अब शौक़ पर भी डिस्क्रिमिनेशन होने लगा!