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Shashank Bhartiya

Comedy Inspirational Romance

3.7  

Shashank Bhartiya

Comedy Inspirational Romance

dehati ladke: love story of an officer

dehati ladke: love story of an officer

14 mins
7.9K


“मुस्कुराइए की आप लखनऊ में हैं!”

कैसरबाग बस अड्डे की दीवार पे लिखी थी ये लाइन। आते वक़्त देखा था ,लखनऊ शहर में घुसने से लेकर बस अड्डे तक के बीच दो तीन जगह और लिखा था। कोशिश मुस्कुराने की बदस्तूर जारी थी। नया शहर, सपनो भरी ऑंखें, कॉलेज का पहला दिन था,मैं ऐसी फ़िल्मी लफ़्फ़ाज़ी क्यूँ करूँ, जब मुझे ढंग से याद है की तीसरा दिन था। शुरू के दो दिन तो लेक्चर हॉल ढूंढने और सिलेबस नोट करने में चले गए थे। क्लास एक महीने पहले से चल रही थी पर एन.डी.ए./ एस.एस.बी. के चक्कर में पड़ने की वजह से मैं अगस्त में आया था। कॉलेज गेट से घुसते वक़्त भी कई चेहरे मुस्कुरा रहे थे। कुछ ने सनग्लासेज़ लगा रखे थे, कुछ ने ईयरफोन, कुछ लड़के लड़कियां एक दुसरे के कंधे पे हाथ रखे यारी निभा रहे थे। कभी कभी अचानक खिलखिला पड़ते थे (जब मेरे नए दोस्त बनेंगे तो मै भी इस माहौल में ढल जाऊंगा) मैं धीरे धीरे सर झुका के चल रहा था, मेरे लिए सब कुछ नया था, अपने आस पास की हर चीज़ को ऑब्ज़र्व कर लेना चाहता था।एक जगह ज्यादा चहल पहल थी, साइंस कैंटीन का बोर्ड लगा था वहाँ पर ,लखनऊ यूनिवर्सिटी हर साल जुलाई अगस्त में गुलज़ार रहती है। स्कूलों से निकल कर नयी फसल आयी होती है, पूरा कैंपस लहलहा रहा होता है।  मेरी उम्र का अठारहवा पड़ाव था और अब तक मेरा ये भरम लगभग लगभग टूट गया था की मेरा जन्म किसी विशेष उद्देश्य से हुआ है। हालांकि ये भरम लगभग लगभग हर लड़के को 15-16  साल की उम्र तक रहता है..अब मैं धीरे धीरे मौजी होता जा रहा था। मैं बी.ए करना चाहता था, पर पापा को मेरी प्रतिभा पर संदेह था इसलिए बी.टेक कराना चाहते थे। 

“मैं बी.टेक नहीं करूंगा, मुझे नहीं जाना प्राइवेट जॉब की कुत्ता टाई गैंग में, चाहे दूकान खोल लूँ, अपनी तो होगी!”

“अच्छा? इंटर में अच्छे नंबर क्या आ गए ये अभी से अपनी जिंदगी के मालिक बन गए?  बी.ए करेंगे? बी.ए के लिए लखनऊ भेज रहा हूँ?”

पूरे खानदान की इज्जत की दुहाई/वुहाई और लंबे गृह युद्ध के बाद बात बी.एस.सी. पर बनी... बी.एस.सी. विद फिजिक्स,मैथ्स एंड कंप्यूटर साइंस। कंप्यूटर साइंस का कटऑफ सबसे ज्यादा गया था, उससे गरीब वर्ग था इलेक्ट्रॉनिक्स और सबसे दया के पात्र केमिस्ट्री में थे, फिजिक्स और मैथ में सबकी कंबाइंड क्लास चलती थी इसलिए ये बड़े विभाग थे। बाकी के विभाग इधर उधर  बिखरे हुवे थे.  सबसे पहली क्लास फिजिक्स की होनी थी, जो सेमिनार हॉल में होती थी, क्लास की टाइमिंग 9:20 थी और मैं बचपन से ही वक़्त का पाबंद 9:18 पर पहुंचा, मैंने अंदर झांक कर कन्फर्म किया, ”बीएससी फर्स्ट ईयर?” एक चश्मिश लड़की ने “हाँ” में सर हिलाया,क्लास पहले से ही आधी भरी हुई थी,मुझे इस बात का अंदाजा नहीं था की पहले आने और सीट छकाने का कोई चक्कर होता होगा,फिजिक्स का क्लासरूम सीढ़ीनुमा थियेटर की तरह था। किसी राजा के डाइनिंग हॉल जैसी ऊंची छत थी, जिससे जाले लटक रहे थे, हाल के बीचो बीच किसी स्वर्गीय "आशुतोष सिंह" की तस्वीर लगी थी जो शायद पढ़ते पढ़ते शहीद हुआ था। एंट्री करते ही हाल के एक तरफ स्टूडेंट्स के नाम की लिस्ट लगी थी, दूसरी तरफ माइक डेस्क। क्लास रूम अखंड भारतीय परंपरा के अनुसार दो हिस्सों में बटा हुवा था। एक तरफ लड़कियां बैठी थी दूसरी तरफ सभ्यता के विकास में पीछे छूट गयी मेरी जाति के लोग। बीच में ऊपर चढ़ने के लिए एक चौड़ा रास्ता था, उम्मीद पाले आया था कि इंटर के सूखे के बाद कम से कम ग्रेजुएशन में तो गलबहियां वाले फूल खिलेंगे,पर यहां भी वही कुप्रथा! एक तरफ लड़के, एक तरफ लड़कियां.....

              लखनऊ यूनिवर्सिटी एक नार्मल यूनिवर्सिटी थी, जहाँ नए छात्र के घुसते ही लोग "मुंडा कुक्कड़ कमाल दा.." करके नाचने गाने नहीं लगते हैं। सब व्यस्त थे, एक बार नजर उठाई, फिर अपनी कॉपियों में घुस गए, बिजी पीपल। मैंने लिस्ट में अपना नाम देखा 'राजरजत सिंह चौहान',.. साला नाम से ही ऐसा लगता है जैसे खेत बेच के आयें हों पढ़ने। क्या जरूरत थी, मम्मी को ऐसा पान मसाला टाइप नाम रखने की? राजरजत। मैंने अपने नाम पे ऊँगली चलायी जैसे पीछे बैठे बच्चों को कन्फर्म कराना चाहता हूँ की मैं भी इसी क्लास का हूँ, फिर पीछे मुड़ा और चुपचाप सबसे पीछे ऊपर की सीटों पे जाके बैठ गया।  अपने अगल बगल देखा,पुराने-पाषाण काल के पंखे लगे हुवे थे जो दीवालों पे किनारे से लगाए थे,क्यूंकि छत तो बहुत ऊंची थी। क्लासरूम इतना बड़ा था की मेरे पीछे भी भी 4-5 सीट की पंक्तियाँ खाली थीं, मैंने ध्यान दिया की वहां एक बिल्ली का बच्चा बैठा हुआ था जो किसी ने ध्यान नहीं दिया था। सब छूटा काम छाप रहे थे पर मशगूल ऐसे थे जैसे 'नासा' में सीनियर एनैलिस्ट हों। कुछ लोग इंटर पास करने के बाद नया नया मोबाइल पाए थे  तो क्लास में गाने वाने भी बज रहे थे। ”तेरी मेरी  मेरी तेरी प्रेम कहानी”  और “इश्क़ रिस्क टाइप”, हनी सिंह के सामाजिक गाने अभी तक आये नहीं थे , मैं सबसे पीछे बैठा सब लड़को और लड़कियों के बारे में अपनी राय बनाने लगा। अरे इनको देखो, ये महाशय तो गिटार ले के बैठे हुए हैं। साउंड पढ़ाया जायेगा क्या आज? सिलेबस में है क्या? अभी तो मैंने बुक्स भी नहीं खरीदी है। उस लड़के के हाथ में क्या है, रजिस्टर? देहाती लड़के वो आई पैड है। मेरे बैग में क्या है? एक मेनका की रफ़, “सिर्फ बुद्धिमानो के लिए!” सेलो ग्रीपर की दो नीली काली पेन और सैनिक का पुराना ज्योमेट्री बॉक्स ,मेनका की रफ़ ने मुझे थोड़ी बुद्धिमत्ता का एहसास कराया। “पहले साल टॉप कर के कुछ इमेज बनायीं जाए, तब थोड़ी पहचान होगी” मैंने अपने आप को बताया। क्लास में हल्का हल्का शोरगुल भी था,सर के आने में अभी 5 मिनट बाकी थे और कुछ स्टूडेंट्स अंदर बाहर आ जा रहे थे। पता किया तो सर 9:30 पर आते थे और मैंने निर्णय किया की कल से मैं 9:28 पे आऊंगा। मुझे क्या पता था की मेरा ये निर्णय अगले कुछ मिनटों में धराशायी होने वाला है। इस  माहौल को चीरते हुये एक लड़की हाथ में पन्ना लहराते घुसी। लंबाई लगभग 5’4 रही होगी, अपने से  लंबी लड़ियों को तो मैं नोटिस ही नहीं करता, पता है, रेंज में नहीं है,शक्ल कुछ कुछ आलिया भट्ट जैसी थी। बालों में बेतरतीब जूड़ा बना के बड़ी सी पिन खोसी हुई थी, पर एक लट बार बार सामने आने की गुस्ताखी कर रही थी, और वो हर बार उसे कान पे चढ़ाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। केयरफुल केयरलेसनेस का बेहतरीन उदहारण , उसने ब्लैक कलर की स्किन टाइट जीन्स पहनी हुई थी, पर नीचे चप्पल पहनी हुई थी, गोरे पैर उसपे ब्लैक नैरो बॉटम जीन्स(अगर काले पैर होते तो आप नावेल यहीं बंद कर देते और हाँ, भारत में रंगभेद बिलकुल नहीं है) ऊपर नीले रंग का कुछ पहना हुआ था,नाम नहीं पता तो टॉप ही कहो न , इधर उधर से तीन चार स्ट्रिप्स आके कपड़े को लटकाये हुये थीं किसी तरह।   लेकिन सिलेबस पूरा कवर्ड था, सिलेबस कवर हो तो टॉप मार लेना चाहिए। 

"गाइज  गाइज़, मैंने टाइम शेड्यूल चेंज कराने के लिए एप्लिकेशन रेडी कर दिया है, हम इलेक्ट्रॉनिक्स वालों ने साइन कर दिया है, यू गाइस फॉलो अप, एंड इफ एनीबडी गॉट एनी करेक्शन… मोस्ट वेलकम” उसने हाथ उठा कर क्लैप किया और सारी क्लास का ध्यान अपनी ओर खींचा।

गज़ब एक्सेंट है इसका तो, मतलब अंग्रेजी हमको भी आती है, पर हम बोल नहीं पाते। और इन कान्वेंट वालों को आती कम है,बोलते ज्यादा हैं। उसने एप्लीकेशन का पन्ना सबसे आगे वाले स्टूडेंट के सामने रख दिया और उसकी शर्ट की जेब में से पेन निकाल कर उसके सामने पटक दी। अपने हाथ जेब में डाल लिए और अपनी ही धुन में एड़ियों के सहारे हिलने लगी, सबके साइन ले रही थी, थैंक्यू वाला मुँह बना के मुस्कुरा भी रही थी। जब कोई पढ़ने की कोशिश करने लगता तो वो ऊँगली दिखा के बता देती, "यहाँ साइन करना है" एट्टीट्यूड ये था की, ला मार्टिनेयर की लड़की का लिखा एप्लीकेशन है,चुपचाप साइन करो, पढ़ने की जरूरत नहीं है... पन्ना रेंगते रेंगते जब मेरे पास पहुँचा तो मैं अपनी आदत के अनुसार प्रूफ रीडिंग करने लगा। अपने पिछले स्कूल में सबकी इंग्लिश मैं ही करेक्ट करता था ,उसने मुझे घूर के देखा ,जाहिर है उसने मुझे पहले कभी नहीं देखा था। मैंने अपनी जेब से नीली सेलो ग्रीपर निकाली और "वी रिक्वेस्ट योर हम्बल परमिशन" काट कर ,"वी हम्बली रिक्वेस्ट योर परमिशन " कर दिया, फिर आगे पढ़ने लगा। अगर आप किसी कान्वेंट एजुकेटेड, सॉरी! माय मिस्टेक, कान्वेंट ‘एडुकेटेड’ लड़की की इंग्लिश में गलती निकाल दें तो एक्सप्रेशन देखने लायक होता है और कुछ हो न हो, एट्टीट्यूड जरूर होता है। पन्ने को घूर ऐसे रही थी की काश कहीं से गलती निकाल दें! पर इंटर में इंग्लिश में 94 नंबर लाना छोटी बात थी क्या? भले हमारी शिक्षा प्राथमिक पाठशाला, माध्यमिक विद्यालय और जनता इंटरकॉलेज में हुई थी, मगर रेन एंड मार्टीन और नार्मन लेविस से मेरी भी दोस्ती थी। 

'एक्सक्यूज़ मी! हमारी रिक्वेस्ट हम्बल होगी ना की मैम की परमिशन' ,मैंने कागज पकड़ाते हुए कहा.. ये मेरी दृष्टता थी या कॉन्फिडेन्स मैंने गलती बताने के बजाये उसके फेयर एप्लीकेशन को काट के उसके ऊपर लिख दिया था,जैसे मैं कोई टीचर हूँ। 

उसने आगे आ रही बालों की लट को एक बार फिर कान के पीछे किया, हलके से होंठ आगे किये और भवें उचकाईं, मैं ये देखते हुए ये एक्टिंग कर रहा था की मैं उसे नहीं देख रहा हूँ। 

आऊ! थैंक्स, मैंने नोटिस ही नहीं किया था! फिर तिरछा सा मुस्कुराई,बाई दा वे आई  ऍम प्रेरणा, प्रेरणा दिक्षित" उसने हाथ बढ़ाते हुए कहा!

 हाथ आज तक मिलाया ही नहीं था किसी लड़की से, जन्म से चरणस्पर्श करते चले आ रहे थे…इसलिए कंधे के पास से ही हाथ हिला दिया...

हेल्लो! आई ऍम रजत! (कौन बोले इतना लंबा नाम,राजरजत? चीज़ों को शार्ट करने के जमाने के वो शुरूआती दिन थे। ‘दी, डॉक्,जीज…’नया नया सुनने में आ रहा था)

वो हाई फाइव मार के चली गयी, जाते वक़्त भी मुस्कुरा रही थी क्या? पता नहीं। 

मैं उसे पीछे से जाते हुए  देख रहा था। सेमिनार हाल के हिसाब से मैं सब से ऊपर बैठा था और वो सीढ़ियाँ उतर के नीचे जा रही थी ,मेरे बाद किसी का सिग्नेचर नहीं लेना था। सोच रही होगी की आखिर क्यों ही वो मेरा साइन लेने आयी?कल तक तो मेरा वजूद भी नहीं था इस क्लास में, एक साइन के चक्कर में एप्लीकेशन ही कटवा लिया। उसने मेरा नाम तो जरूर देखा होगा,राजरजत सिंह चौहान, नहीं देखा होगा, क्यूंकि मैंने उसे कुछ और बताया है, “रजत"

मेरा इंजन तीन चार किक में स्टार्ट होने वालों में से था और ये सेल्फ स्टार्ट ज़माने की लड़की थी, ये वो दौर थाजब मोबाइल पे अगर अननोन नंबर से कॉल आ जाये तो लड़के शीशे के सामने हाथ फेर के कहते थे, "कुछ तो बात है मुझमे!"

साइलेंस! अग्निहोत्री सर आ रहे हैं। 

प्रोफेसर अग्निहोत्री बाल संवारते क्लास में घुसे, दो बाल चिपकाये चम्पू स्टूडेंट्स भी सर से बतियाते घुसे ,ओके! ओके!  हाँ !हाँ! अंतराग्नि फेस्ट न? हाँ हाँ! ठीक है,ऑफिस में रुको। अग्निहोत्री सर ने हलकी मुस्कराहट के साथ क्लास की ओर देखा और धीरे से अपनी पांच रुपये वाली कंघी, पीछे वाली जेब में डाल ली,मन ही मन सोचा, ठीकठाक बच्चे आ गए हैं। वो क्लास की तरफ आशा भरी दृष्टि से देख रहे थे,मुझे लगा कुछ कहना चाहते हैं। 

गुड मा...! ऐं? कोई खड़ा ही नहीं हुआ? (बैठ जा बेवकूफ आदमी)

अग्निहोत्री सर, मेरी ‘लो क्लास’ हरकत देख के मुस्कुराये,मैं भी मुस्कुरा दिया। बाकी लड़को ने मुझे पलट के इस नजर से देखा, मानो कह रहे हों "न्यू स्टूडेंट,उम्म!"(करवा लिए ना इज्जत का कबाड़ा!)

क्लास के बाद सर ने इशारे से मुझे बुलाया और पीछे मुड़कर ब्लैक बोर्ड का लिखा मिटाने लगे। मेरे दिल में तनिक धक् धक् हुई, क्लास के बच्चे एक एक कर के निकल रहे थे, मैंने धीमे से अपना बैग समेटा, शर्ट कोंची, बेल्ट ठीक करी और सर झुका कर धीरे धीरे उतरा। इतनी देर में  मैंने मन ही मन, न्यूटन के तीनो नियम रिवाइज कर लिए थे ,कोई भी पुराना प्रोफेसर इसी से परख की शुरुआत करता है।  मैं ये बात जानता था, न्यूटन का थर्ड लॉ उसका फेवरिट होता है"एव्री एक्शन हैज ऐन इक्वल एंड अपोजिट रिएक्शन" पर एक्साइटेड लड़का यहीं गलती कर बैठता है। उसे लगता है,मामला यहीं तक है,पर प्रोफेसर आगे  सुनना चाहता है की,"बट बोथ फोर्सेज एक्ट ऑन डिफरेंट बॉडीज, वही तो क्रक्स है" ये सब ज्ञान गंगा मैं गाँव से ही लेकर चला था। परन्तु प्रोफेसर अग्निहोत्री उन खबीस प्रोफेसर्स में से न थे, बहुत ही फ्रेंडली और जिंदादिल आदमी थे, उन्हें मैं देशी आदमी लगा। 

“… कहाँ से? अच्छा! अच्छा! गोंडा में कहाँ से?” सर ने अपने बिखरे कागजों को फाइल में समेटते हुए कहा  (एक तो इन प्रोफेसर्स को क्षेत्र ज्ञान बहुत होता है, अगर आप कहेंगे, सर मैं फ़िनलैंड से हूँ, तो ये कहेंगे फ़िनलैंड में कहाँ से? ये हर जगह हो के आये होते हैं) जी बेलसर से,(पिन कोड भी बता दूं क्या?)

सब्जेक्ट्स कौन से लिए हैं?

“सर कंप्यूटर साइंस!” मेरे कंप्यूटर साइंस बताने में गर्व और सम्मान अपने आप ही घुल गया था,सीएस बताने से पता चल जाता है की बाकि दो सब्जेक्ट फिजिक्स और मैथ ही होंगे और दूसरी बात लड़का इंटरमीडिएट में टॉपर रहा होगा,तभी सीएस मिला है।  सर ने अपना चश्मा उतारा, शर्ट के कोने से पोछा फिर कोने में लगे इकलौते बल्ब की रौशनी की तरफ ले जाकर परखते हुए  बोले,

“कंप्यूटर साइंस?हम्म....बिश्नोई के टच में रहना!”

जी सर! मैंने "जी सर" में गर्दन हिलायी जैसे मैं जानता होऊं की ये बिश्नोई कौन है? चश्मा ठीक से साफ़ हो गया था,उन्होंने पेहेन लिया ,उनके चश्मे के मोटे फ्रेम को देखकर मुझे याद आया की जिसे हम बचपन में वर्णमाला में पढ़ते थे, ऐ से 'ऐनक', ये वही 'ऐनक' है।  इसको चश्मा कहना इसका अपमान है। सर चलने वाले थे फिर,मेज का कोना पकड़ कर रुक गए, अपने ‘ऐनक’ से झांकती पैनी नजरों की नोक को मेरे माथे पे फोकस किया और एक एक शब्द को धीरे धीरे तौलते हुए बोले,

"अपने ख़ास स्टूडेंट्स के लिए कुछ चूरन चटनी रखता है  ?प्रैक्टिकल के टाइम मेरा नाम बता देना, जो  भी माल मसाला उसके पास होगा,..  दे देगा.."

“जी सर!”  (पहले तो मुझे समझ नहीं आया की ये बिश्नोई है कौन, जिसकी कैंपस के अंदर ही किराने की दूकान है, पर बाद में पता चला की बिश्नोई सर कंप्यूटर साइंस में प्रोफेसर हैं और चूरन चटनी से तात्पर्य एग्जाम में आने वाले इम्पोर्टेन्ट नोट्स से था)

मैं सर से बात कर ही रहा था की वो चहक के बाय कर के चली गयी, सर मुस्कुराये और बोले, ‘पढाई पे ध्यान दो, बहुत उम्मीदें लेके भेजे गए हो!!’ मेरे कंधे पे हाथ रखा और आगे बढ़ गए। 

(बताओ सर ने मुझे पहले ही दिन चेताया था की पढाई पे ध्यान दो, काश सुन लेता उनकी बात, पर होइहे वही जो राम रचि राखा)

कॉलेज साढ़े पांच बजे ख़त्म हुआ। घर आ के मैंने बैग एक तरफ फेंका और स्टडी टेबल से कुर्सी खींचकर बैठ गया। पानी की बोतल उठायी और कुर्सी पर अंगड़ाई लेकर आरामकुर्सी बना देना चाहता था , दिन भर की खुमारी उतर ही नहीं रही थी। 

हाय! आई ऍम प्रेरणा, प्रेरणा दिक्षित! अच्छा नाम है, नहीं? इससे रोज कॉलेज जाने की प्रेरणा मिलेगी, क्योंकि प्रेरणा मिलेगी! यही करने आये हो क्या यहाँ पे? अरे इससे पढ़ने की भी प्रेरणा मिलेगी। टॉप करने की प्रेरणा मिलेगी,क्या टॉप करने से प्रेरणा मिलेगी? चूप रहो बेवकूफ आदमी! ये सोचो की आज खाना कहाँ खाओगे? तीन दिन से जो पनीर और अंडा करी की अमीरी छायी है, आज से खाना रूम पे बनेगा समझे? नहीं! नहीं! कल से! उठा और विवेकानंद अस्पताल के नीचे पांडेय ढाबा की तरफ चल पड़ा। नया नया पता चला है की ३० रुपये में डबल अंडा एग करी देता है, वो भी ग्रेवी कितनी भी बार रिपीट करवा लो।  इंटर में पढ़ा था की भोजन के पाचन की प्रक्रिया खाने के बारे में सोचने से ही शुरू हो जाती है। 5 रूपया रोटी देता है, 6 रोटी बराबर 30 टोटल खर्चा = 60 , 60 रुपये के हिसाब से अगर महीने का...क्या मैं भी? पूरी मैथमेटिक्स इसी में लगा दूंगा क्या? एक लॉग टेबल रख लूँ इसके लिए? मैंने ताला बंद किया और सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए मकानमालिक को इशारा किया, 'खाना खाने जा रहा हूँ' सामने गली में एक लड़की कुत्ता टहलाती हुई दिखी मुझे फिर उसकी याद आयी,हाय आय ऍम प्रेरणा! प्रेरणा दीक्षित! जाते वक़्त बाय भी किया था उसने। मैं सर के साथ खड़ा था,नहीं तो खुल के ‘बाय ’ करता, या हो सकता है मैं उसके साथ चल देता और पूछता कि उसके बाकी सब्जेक्ट्स कौन से हैं। मैं कहता की, “मैं यहाँ नया आया हूँ”...अरे ओ राजरजत सिंह चौहान! अबे कोई बॉलीवुड थोड़ी न है जो तुम अपने आप को गाँव से आया बताओगे तो वो शहर घुमाने लगेगी। अबे ये रियल लाइफ है,ज्यादा लपलपाओ  नहीं, नहीं तो...खैर कल तो मिलेगी ही। 

चप्पल पहने हुई थी, गरीब घर से है क्या?

भक्क ! इसका मतलब है की वो खुले विचारो की है। हाँ, खुले कपड़ों की भी है, कर दी छोटी बात?यू हैव नो राईट टू कमेंट ऑन हर ड्रेसिंग चॉइसेज। बजरंग दलिया कहीं के!

रात सोने से पहले माँ का भी फ़ोन नहीं आया, उसी की तुलना चलती रही, कुछ अलग है इसमें। बाकी कान्वेंट लड़कियों की तरह नहीं है, तोतापरी गैंग से भी नहीं है, जो चढ़ा के लगाए लिपग्लॉस और खुले बालों से हमे ललकारती हैं। एक स्मार्टनेस है जिससे खुद को कैर्री कर रही थी, एक आकर्षण है। राजरजत जी! मुस्कुराइए की आप लखनऊ में हैं। 

आज एक कविता लिख ही देता हूँ, बहुत दिनों से नहीं लिखी, उसी पे लिखता हूँ।  हाय! आई ऍम प्रेरणा, प्रेरणा दिक्षित!

 

"खोया सुरूर-ए-हुस्न मेंना जाने रास्ता कहाँ?

फ़िदा हूँ मैं तो रूप पेपर रूप में वफ़ा कहाँ?

मैं देखता हूँ 'चाँदकोइतरा रहा है कितना वो,

वो अपने मद में चूर हैउसे मेरा पता कहाँ?

अजीब सी है कश्मकशएक आग है सुलग रही,

ये आग अंतरंग हैइस आग में धुंआ कहाँ? (मतलब मामला वनसाइडेड  है)

इक दर्द है चुभन भराऔर प्यास आंख लग गयी,

ना प्यास का ही अंत हैऔर दर्द की दवा कहाँ ?

सो जाओ गधे! २ बज गए है, कल कई सामान खरीदने हैं। अलार्म बंद कर दोवरना तुम्हारा ये नोकिया 2700 क्लासिक, 5 ही बजे टिन टिन करेगा.....


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