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Neeraj Neer

Drama

5.0  

Neeraj Neer

Drama

जावेद

जावेद

8 mins
238


जावेद

          ------- नीरज नीर 

कहानी की शुरुआत तो बहुत पहले हो गयी थी। लेकिन यह भूली हुई कहानी फिर से शुरू हुई बीमा कंपनी के एक खत से। 

मैं शहर में रहकर वकालत कर रहा था, लेकिन अपनी पूरी कोशिश व जद्दोजहद के बाबजूद वकालत में काम कुछ खास बन नहीं रहा था। खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। शहर में रहने का खर्च भी बहुत ज्यादा था। घर में आमदनी का दूसरा कोई साधन नहीं था। माँ बीमार रह रही थी। ज्यादा उम्र होने के कारण पिताजी से अब खेती-बारी संभल नहीं रही थी। इसी बीच जब मैं गाँव गया तो पता चला कि बीमा कंपनी से कोई खत आया हुआ है। 

बीमा कंपनी से खत! लेकिन मैंने तो कभी कोई बीमा ही नहीं कराया है। खैर, खत को खोल कर देखा तो पता चला कि खत मेरे ही नाम से था और बीमा कंपनी के मैनेजर ने एक बीमा क्लेम के भुगतान के संदर्भ में मुझे कार्यालय में मिलने के लिए बुलाया था। मैं रात भर इसी पेशोपेश में पड़ा रहा कि जब मैंने कोई बीमा कराया ही नहीं तो बीमा क्लेम कैसा? मेरे माता-पिता ने भी कभी कोई बीमा नहीं करवाया था। तो यह किसका बीमा था जिसके लिए मुझे बीमा वाले बुला रहे थे? 

मैं बीमा कंपनी के दफ्तर समय पर पहुँच गया। बीमा कंपनी के मैनेजर ने बताया कि मेरे नाम से बीमा का भुगतान आया हुआ है।

“लेकिन किसका बीमा” ? मैंने आश्चर्य जताते हुये पूछा। 

इसके बाद जो मैनेजर ने जो बताया वह मेरे लिए एक साथ सदमा और आश्चर्य दोनों से भर देने वाला था।       

“यह बीमा किसी जावेद ने कराया था”। मैनेजर ने कहा। 

“जावेद ने .... ? तो क्या जावेद की मौत हो गयी”? मैंने घबराकर पूछा। 

हाँ, जावेद की सऊदी अरब में मौत हो गयी और उन्होने दस लाख रुपये का बीमा करवाया था, जिसका नॉमिनी आपको बनाया था। इसलिए आपको दस लाख रुपये मिलेंगे। आप अपना पहचान पत्र और बैंक खाता का सारा विवरण यहाँ जमा करवा दीजिये। 

लेकिन मुझे क्यों ? मुझे क्यों नॉमिनी बनाया? मैं गहरे आश्चर्य में पड़कर पूछ बैठा। 

सो तो मुझे पता नहीं है पर सच यही है कि आप को ही मृतक ने नॉमिनी बनाया था। उसने मुझे नॉमिनी के डिटेल्स दिखाये तो सच में उसमे मेरा ही नाम और घर का पता दिया हुआ था। 

“क्या वो आपका रिश्तेदार था”? बैंक मैनेजर ने पूछा । फिर उसे मेरे नाम का ध्यान आया तो वह समझ गया कि वह मेरा रिश्तेदार नहीं हो सकता । 

क्या वह आपका दोस्त था? बैंक मैनेजर ने उसके बाद पूछा।  

“हाँ वो मेरा दोस्त था” मैंने कहा । 

मैंने जिंदगी में पहली बार उसे अपना दोस्त कहा था। 

---

उसका नाम जावेद था। वह मेरे ही गाँव का रहने वाला था। यद्यपि कि वह मेरा दोस्त नहीं था फिर भी न जाने क्यों वह मुझे अपना दोस्त कहता था। उसने गाँव में सबको कह रखा था कि वह मेरा बहुत ही खास दोस्त है। उसने तो यह भी कह रखा था कि उसने मेरे साथ पढ़ाई की है। मैं तब शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा था। मैं चूंकि गाँव कम ही जा पाता था, इसलिए लोग उसके कहे का यकीन करते थे। मुझे जब इसके बारे में पता चला तो मैंने कुछ लोगों को बताने की कोशिश भी की कि वह मेरा दोस्त नहीं है और उसने मेरे साथ कभी पढ़ाई नहीं की है, वह झूठ बोलता है।  पर किसी ने मेरी बात को सही मानने में कोई रूचि नहीं दिखाई। उल्टा सबने मुझे ही दार्शनिक की तरह सलाह दे दिया कि अगर कोई मुझे दोस्त मानता है तो इसमे गलत क्या है? दोस्त मिलना तो बड़े भाग्य की बात होती है।  

मैं उनके इस बात पर क्या जवाब देता? बात सही भी है कि अगर कोई आपको दोस्त मानता है तो इसमे आपको क्या आपत्ति है? पर मैं कभी समझ नहीं पाया कि आखिर वो ऐसा करता क्यों है? मुझे उसके इस बात से बड़ी खीझ होती थी। 

वह मुझसे उम्र में कम से कम चार पाँच साल बड़ा जरूर रहा होगा। वह कहाँ पढ़ा –लिखा था, मुझे यह भी मालूम नहीं था या कहीं पढ़ा लिखा भी था या नहीं। वह जब भी मुझसे मिलता “क्या हाल है दोस्त?” कहकर मिलता। वह बहुत ही सलीके से हाथ मिलाता एवं अदब से बात करता था। 

गाँव में उत्तर की ओर कुछ दुकानें थी। वहाँ जब भी मैं दुकानों की ओर जाता था, वह मुझे वहाँ एक पान की दुकान के पास खड़ा मिलता था। वह हमेशा मुझसे मुस्कुरा कर मिलता था। 

वह जब भी मिलता अपनी बेरोजगारी की बात करता था। उसकी बात से मुझे पता लग गया था कि वह सरकारी नौकरी के फेर में नहीं बल्कि जो कुछ भी मिल जाए की तर्ज पर नौकरी की खोज में था। वह अरब देशों में भी किसी जुगाड़ की फिराक में था, इसलिए उसने पासपोर्ट भी बनवा रखा था। उसके माता-पिता अनपढ़ थे। पिता पहले मजदूरी किया करते थे। पर उम्र अधिक होने के कारण अब मजदूरी भी नियमित नहीं कर पाते थे। अपने माँ बाप के बुढ़ापे को लेकर वह बड़ा चिंतित रहता था। 

इस बीच मैं कई महीनों के लिए गाँव नहीं गया। गाँव जाकर पता चला कि जावेद सऊदिया चला गया है, सऊदिया यानि सऊदी अरब । खैर वो कहीं चला जाये, मुझे उससे कुछ लेना देना तो था नहीं। मुझे उल्टा अच्छा ही लगा कि वह गाँव से चला गया है। 

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मैंने सारे अभीष्ट कागजात बीमा दफ्तर में जमा कराये और वापस गाँव लौट आया। वापस गाँव आकर लेकिन मुझे चैन नहीं था। जावेद की मृत्यु कैसे हो गयी? उसने मुझे नॉमिनी क्यों बनाया? इन्हीं बातों के गहरे ऊहापोह में पड़े हुये, मैंने उसके सऊदी अरब जाने के माध्यमों को तलाशना शुरू कर दिया। मुझे शीघ्र ही उस एजेन्सी का पता मिल गया, जिसके माध्यम से वह सऊदी अरब गया था। एजेन्सी वाले ने बताया कि वह एक कन्स्ट्रकशन कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी करने गया था। एक दिन सड़क पर जाते हुये एक गाड़ी वाले ने उसे ठोकर मार दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। मैं उसके बूढ़े माँ-बाप से मिलने गया। उनकी हालत बहुत खराब थी। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। उन्होने बताया कि उन्हें सूचना मिली थी कि जावेद की दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी पर उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि उसकी लाश वहाँ से मँगवा सकें। 

थोड़े दिनों के पश्चात पुनः जब मैं गाँव वापस आया तो पता चला कि मेरे नाम का दस लाख रुपये का चेक आया हुआ है।  

चेक आ गया तो इसे बैंक खाते में डालना जरूरी था। बैंक की शाखा, मेरे गाँव से करीब तीन किलोमीटर दूर थी। जाने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं था। मैं पैदल ही घर से निकल पड़ा।  

बैंक खुलते के साथ ही मैं बैंक में पहुँच गया एवं चेक जमा कर दिया। मैनेजर ने बताया कि कल तक बैंक अकाउंट में पैसा क्लियरेंस के बाद आ जाएगा । 

कल होकर मैंने सारे पैसे निकाले और गाँव वापस हो लिया। 

इतने पैसों का मैं क्या करूँ? कई दिनों से मन में यह ख्याल चल रहा था। क्या मुझे सारे पैसे जावेद के वालिदैन को दे देने चाहिए या सारे पैसे मुझे स्वयं रख लेने चाहिए ? या कुछ पैसे मैं उन्हें दे दूँ और बाकी स्वयं रख लूँ? इतने पैसों का जावेद के बूढ़े वालिदैन क्या करेंगे? उनके तो दिन भी गिने चुने बचे हैं। इन पैसों से मेरी कई समस्याएँ एक साथ सुलझ सकती थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाये। जब सारे पैसे उनको दे देने हैं तो मैं इतने झमेले क्यों कर रहा था ? कई दिनों से काम का हर्जा हुआ पड़ा था। इन्हीं ऊधेड़बुन के गहरे भँवर में डूबता उतराता, मैं चला आ रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ। 

बैंक और घर के रास्ते में खेत थे। चैत का महीना था। दोनों तरफ खेत में अरहर की फसल उगी थी। अरहर पक चुके थे। हवा ज़ोरों से चल रही थी, जिससे पके अरहर के पौधों से एक रहस्मयी आवाज उत्पन्न हो रही थी, जैसे बहुत सारे झुनझुने एक साथ बज रहे हों। 

हमारे इलाके में चोरी, छिनतई का कोई खतरा नहीं था। मैंने जब से होश सम्हाला था, ऐसी कोई घटना देखी सुनी नहीं थी।  

रुपयों को एक थैले में डालकर मैं निश्चिंत भाव से चला आ रहा था। गर्मी शुरू हो गयी थी। दोपहर होने के कारण रास्ता बिलकुल सुनसान था। 

अचानक मैंने देखा कि अरहर के खेतों में से एक आदमी निकला आ रहा है। 

कौन है ये आदमी? मैंने मन ही मन सोचा। कहीं कोई चोर-डकैत तो नहीं। 

तब तक वह बिलकुल मेरे सामने आ गया। 

“क्या हाल है दोस्त”? कहकर उसने तपाक से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। 

मेरी आँखें फटी की फटी रह गयी। यह जावेद था। 

“रुपये मिल गए”? उसने पूछा। 

वह मेरी आँखों में आँखें डाले वैसे ही मुस्कुरा रहा था, जैसे पहले मिलने पर मुस्कुराया करता था।

मेरी घिग्घी बंध गयी थी। मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था। 

तुम ?? मेरे मुंह से बस इतना ही निकल पाया। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ मालूम नहीं।

घर वालों ने बताया कि मैं गाँव के किसी व्यक्ति को रास्ते में बेहोशी की हालत में मिला। घर वाले मुझे उठाकर घर लाये थे। देर शाम में मुझे होश आया। रुपये गायब थे। किसी को मालूम नहीं था कि मेरे साथ क्या हुआ था। 

सारी घटना चलचित्र के दृश्यों के समान मेरी आँखों के सामने घूम गयी। 

तो क्या जावेद जिंदा है? मेरे मन में यह विचार उथल-पुथल मचा रहा था। 

कल होकर मैं सुबह-सुबह जावेद के घर की ओर भागा। उसके घर के दरवाजे पर ही उसके वालिद साहब मिल गए। 

मुझे देखते ही उनके आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़े। 

बहुत ही कृतज्ञ भाव दिखाते हुये उन्होने हाथ जोड़ दिये “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया बेटा! आपके कारण अब हमारा बुढ़ापा आसानी से कट जाएगा। आप न होते तो न जाने हमारा क्या होता”। 

“मेरे कारण? लेकिन मैंने क्या किया ? मैंने अकचका कर पूछा। 

हाँ बेटा आपके कारण और किसके कारण? 

आपने ही तो कल दोपहर में मुझे लाकर दस लाख रुपये दिये। आपका अहसान हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे। 

वे घर के अंदर गए और एक झोला लेकर आए। लीजिये बेटा आपका झोला कल वापस करना रह गया था। 

यह वही झोला था, जिसमे मैं रुपये लेकर बैंक से आ रहा था। 

कल सुना आपकी तबीयत खराब हो गयी थी?

अपना ख्याल रखा करें। अल्लाहताला आपको लंबी उम्र बख्शे।


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