बराबरी
बराबरी
अयोध्या जी की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा उनके जीर्ण शीर्ण घर को देखकर लग जाता था। सर्दी के दिन थे। सुनहरी धूप खिली हुई थी। अयोध्या जी अपने खस्ता हाल घर के सामने चौकी पर बैठे हुये जनेऊ गूँथ रहे थे।
“गोड़ लागि बाबा” बेचू राम ने अयोध्या जी को देखते ही टहकार लगाते हुये कहा।
“का हाल चाल है रे बेचूआ ? कहाँ जा रहा है, आजकल दिखाई नहीं देता है ?” अयोध्या जी ने पूछा
“ठीक तो है बाबा।” बेचू राम कहते हुये अयोध्या जी की चौकी पर बैठ गया।
ये... ये उठ उठ .... क्या करता है ? मेरे बराबरी में मेरी चौकी पर बैठेगा।
कुछ लिहाज नहीं रह गया है ?
“अब का बाबा, अब तो आप भी आरक्षण वाले बन गए।” बेचूराम ने मुस्कुरा कर कहा।
