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Bhupendra Singh

Tragedy

4  

Bhupendra Singh

Tragedy

वो बेबस आँखें

वो बेबस आँखें

4 mins
542


उस दिन तुम्हारा मिलना मेरे लिए कुछ ऐसा था जैसे मैंने वर्षों की खोई चीज पा ली हो। वह दिन मेरे दिमाग के किसी हिस्से ने बेहद मजबूती से save कर लिया है-22 मार्च । हाँ ये वही दिन था जिस दिन हमारी मुलाकात परीक्षा कक्ष में हुई थी। मेरी क्या गलती थी जब मैंने तुम्हें देखा और बस देखता ही रह गया,कोई भी तुममे खो जाता। तुमने अपनी ओर मुझे यूं एकटक देखता देखकर हंस दी थी। हां !

उस वक्त बस इतना ही हुआ था। तुम तो अपने उत्तर लिखने लगी थीं लेकिन मैं न जाने किन सवालों में खो गया था। मल्टीपल चॉइस वाले प्रश्रपत्र को देखकर मुझे गुस्सा आ रहा था डिस्क्रिप्टिव लिखना होता तो हर पेज तुम्हारे ही नाम से लिख कर भर देता। मैं जानता हूँ कि तुम्हारा नाम जानना भी मेरे लिए मुश्किल था । मेरे से 2 सीट आगे बैठी थी तुम और बीच मे जमाने भर का फासला था। भला कैसे तुम्हारा नाम जान पाता। पहले तुम्हारी सीट के नीचे पेन फेंका ताकि पेन उठाने के बहाने तुम्हारे थोड़ा और करीब आ जाऊं, तुम्हारा नाम जान लूं,तुम्हे महसूस कर लूं लेकिन उस खडूस कक्ष निरीक्षक ने स्वयं पेन उठाकर मुझे दे दिया और मेरे अरमानों में पानी फेर दिया। सुनो। तुम मेरी उस हरकत पर हल्का मुस्कुराई थी न। मैं समझ गया था तभी तो 5 मिनट बाद ही टीचर की आंखों के आगे सबसे छोटी उंगली खड़ी कर इशारा कर दिया था। उसे तब मुझे बाहर जाने की इजाजत देनी ही पड़ी। यही तो मैं चाहता था आखिर तुम्हारा नाम जो जानना था। स्नेहा...उतना ही सुंदर नाम जितना कि किसी लड़की का हो सकता है। प्रश्नपत्र में आये सारे सवालों के जवाब मुझे पता थे बस उनमें गोले भरने थे जबकि तुम्हारा चेहरा देखकर मुझे लगा जैसे कि तुम्हे पेपर कठिन लग रहा हो। मैंने इसका भी तरीका खोज निकाला ताकि तुम्हारी आंसरशीट पर मैं अपने हाथों से गोले भरूँ। अपनी आगे वाली चश्मिश लड़की को मैंने उत्तर दिखाने का लालच देकर उससे आंसरशीट अदला बदली कर ली थी यही क्रम तुम तक जा पहुंचा और फिर मेरी आंसर शीट तुम्हारे हाथों में थी। जबकि गोलाई से बनाये अक्षरों से सजी तुम्हारी शीट मेरे हाथों में। मैं तुम्हारे हाथ से लिखे हुए शब्दों को कितनी ही देर तक देखता रहा था। वह लिखावट उस वक्त मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत राइटिंग लग रही थी।

सुनो। तुम भी तो मेरी आंसरशीट छूकर देख रही थी न। कितना अच्छा लग रहा था उस वक्त। काश कि मैं समय को वहीं थाम सकता।

 मैं जानता हूँ तुम भी मुझे ढूंढने की कोशिश कर रही थी जब पेपर छूटने के बाद मैं बाहर सड़क पर बेताबी से चारों ओर उस चेहरे को खोज रहा था जिसने मेरी heart beat बढ़ा दी थी। सच सच बताना ,तुम मेरे ही इंतजार में थी न। वरना कई ऑटो वाले तुम्हारे सामने से खाली निकल गए थे। तुम चाहती तो चली जाती लेकिन तुमने मेरा इंतज़ार किया। हां मैं भी तो यही कर रहा था। फिर अचानक हमारी नजरें टकरायीं और लगा जैसे हम दोनो की खोज पूरी हो गयी हो। तुम एकदम से शरमा गयी थी न। आखिर लड़की जो हो। भला शर्माती न तो और क्या करती। आखिर मैं तुम्हारा लगता ही क्या था। कोई पूछ देता कि किसे ढूंढ रही हो तो भला तुम क्या जवाब देती। लड़की होना कभी आसान नही होता।

तुमने उस वक्त कुछ नही किया सिवाय एक छोटे से इशारे के,तुम अब जाना चाहती थी क्योंकि उस भीड़ में मुझे खोजने में पहले ही तुमने 30 मिनट बर्बाद कर दिए थे। मैं तुम्हारी मजबूरी समझता था आखिर घर से बाहर गयी लड़की का हर मिनट कीमती होता है। 2 बजे पेपर छूटा तो इतनी देर क्यों लगी? पापा-भैया द्वारा पूछे गए ऐसे सवालों का सामना शायद ही कोई लड़की करना चाहे। मैं तुम्हे देर तक देखता रहा था ऑटो में बैठते और वहां से जाते हुए।

अगला पेपर 26 को था यह हमारा एक साथ होने का अंतिम पेपर भी था जिसका मतलब था कि बात नही की या नम्बर एक्सचेंज नही किये तो आज के बाद हम शायद अब कभी न मिल पाएं।

यह बात शायद तुम जानती थी। तभी तो क्लास में तुम्हारी मूक नजरें बेसब्र हो मुझसे कुछ कहना चाह रही थीं। लेकिन मुझे बाद में पता चला कि आज तुम्हारे बड़े भैया तुम्हे पेपर दिलाने लाये हैं। मैं तो इस इंतज़ार में था कि कब पेपर छूटे और तुमसे मिलकर बातें करूँ लेकिन जब पेपर खत्म होने के बाद तुमने मुझे देखकर भी इग्नोर कर दिया और बाहर निकल गयी तो मुझे धक्का लगा था। गेट से बाहर सिर्फ तुम ही नही निकली मेरी खुशियां, मेरी उम्मीद और रातों में जागकर देखे गए ढेर सारे सपने भी उस मछली जैसे तड़पने लगे थे जिसे किसी ने एकदम से जल से निकालकर बाहर पड़ी गर्म रेत में फेंक दिया हो। हाँ। तुम जा रही थी और मैं बेबस होकर देख रहा था। मैं कुछ भी तो न कर सका। तुम्हारा नम्बर भी न ले पाया। मैंने देखा था उस वक्त तुम्हारी आँखों को। उनमें नमी थी । जब तुमने मुझे मुड़कर देखा था जबकि मेरे भीतर सैलाब जमा था जिसे एक पुरूष होने के नाते अकेले में ही फूटना था। तुम्हारा जाना उतना नहीं खला जितना तुम्हारी उन आंखों को देखना। कितना कुछ कह रही थीं वह बेबस आँखें......


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