एक अनोखी प्रेम कहानी : भाग 4
एक अनोखी प्रेम कहानी : भाग 4
सपना शिव को अपने घर के अंदर ले गई। सपना की मम्मी खाना बना रही थी। सपना ने आंगन में एक आसन बिछा दिया जिस पर शिव बैठ गया। सपना भिखारी बने शिव के लिए खाना ले आई। शिव मजे से खाना खाने लगा।
"खाना बहुत बढ़िया बनाया है माई। लगता है कि आपके हाथों में कोई जादू है। पेट तो भर गया है पर मन नहीं भरा है। जी करता है कि खाते जाओ खाते जाओ।" शिव ने अपनी होने वाली सासू मॉम की प्रशस्ति पढ़नी शुरू कर दी। "फ्री का खाना मिल रहा है ना तो बढ़िया ही लगेगा। मेहनत मजूरी करके खाना बनाते और खाते तो आटे दाल का भाव मालूम चल जाता।" सपना तुनक कर बोली।
सपना की जली कटी बातों से शिव तैश में आ गया। वह सपना की मां की ओर मुंह करके बोला
"लगता है माई कि आपकी बेटी कुछ परेशान है। इसके चेहरे पे गुस्सा नजर आ रहा है" शिव सपना को देखकर बोला
"सही कह रहे हो भैया, यह कल परसों से परेशान हो रही है"
"तो इससे कह दे माई कि यह जिसके लिए यह परेशान है , वह कल दर्शन दे देगा, समझा दे उसको" शिव ने शिगूफा छोड़ा।
यह बात सपना ने सुन ली तो वह बिफर पड़ी और भिखारी बने शिव से बोली
"क्या बकवास कर रहा है तू ? मैं कोई परेशान वरेशान नहीं हूं। और ये क्या उल्टी सीधी पट्टी पढा रहा है तू मम्मी को ? इसीलिए तेरे जैसे भिखारियों को हम इज्जतदार लोग घर में नहीं घुसाते हैं। अब बहुत हो गया है तेरा नाटक , चल फूट यहां से"। सपना बिगड़ते हुए बोली
"ये क्या बकवास कर रही है सपना ? वो खाना खाने बैठा है और तू उसे इस हालत में जाने को कह रही है ? क्या यही संस्कार दिये हैं मैंने ? चल निकल यहां से। और हां बेटा, वो क्या कह रहे थे तुम कि सपना किसी के लिए परेशान है , तो किसके लिए परेशान है सपना" ?
"अपने शिव के लिए परेशान है वो, माई" शिव ने सपना को देखते हुए कहा। इस बात पर सपना का मुंह खुला का खुला रह गया। वह सोच में पड़ गई कि इस भिखारी को कैसे पता है कि वह शिव को लेकर परेशान है। दो दिन से उससे कोई बात नहीं हुई है और ना ही कोई मैसेज आया है उसका। फोन स्विच ऑफ बता रहा है। क्या करूं मैं ? सपना के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
"कौन से शिव की बात कर रहा है बेटा ? मैं तो किसी शिव को जानती भी नहीं हूं" सपना की मम्मी थोड़ी चिन्तित होकर बोली। मम्मी को चिन्तित देखकर सपना परेशान हो गई कि कहीं उसका भाण्डा ना फूट जाये। अगर ऐसे हुआ तो फिर क्या होगा ?
शिव ने बात संभाल ली। वह बोला "अपने भोले भंडारी बाबा शिव शंकर। इनके लिए परेशान हो रही हैं आपकी बेटी। दो दिन से उन्होंने बात नहीं की है ना इनसे। आप चाहें तो पूछ लें।" उसने फिर से सपना की ओर देखा। अब सपना उसे गौर से देखने लगी।
"क्यों सपना , ये बात सही है क्या ? तेरी भगवान शिव से बातें होती हैं क्या" ?
अब सपना फंस गई थी। अगर ना करे तो भेद खुलने का डर था इसलिए उसने हां कह दी और बोली
"नहाने के बाद हम अपने शिव जी से प्रार्थना करते हैं तो हम दोनों आपस में बतियाते रहते हैं। दो दिन से हमारे शिव जी हमसे बात ही नहीं कर रहे हैं। पता नहीं किस बात पर गुस्सा हैं हमसे" ? सपना शिकायती लहजे में बोली
"आपने उनके नन्हे मुन्नों और मुनिया पर ध्यान नहीं दिया होगा इसलिए वे आपसे खफा हैं। आज आप उनके दोनों पुत्र कार्तिकेय जी और गणेश जी तथा मुनिया अशोक सुन्दरी को मनाओ तो वे भी मान जायेंगे।"
"अरे बेटा , तुम तो बहुत पहुंचे हुए संत लगते हो ? फिर भिखारी कैसे बन गए" ?
"अब क्या बताऊं माई कि इन ढोंगी संतों ने हम जैसे साधु संतों का कितना बेड़ा गर्क किया है ? हम भी पहले साधु संतों की तरह गेरुआ कपड़े पहनते थे। मगर जब से ये आसाराम बापू, राम रहीम जैसे अनेक प्रतिष्ठित संत बलात्कार के आरोप में जेल में बैठे हैं तब से जनता का विश्वास हम संतों पर से उठ गया है। इसलिए अब गेरुए कपड़े पहनना खतरनाक बन गया है। पेट तो भरना पड़ेगा ना, इसलिए भिखारी बन गये हैं। कोई आप जैसा धर्मात्मा मिल जाता है तो हमें भोजन करा देता है नहीं तो भूखे पड़े रहते हैं किसी कोने में" शिव की बातों का बहुत तीव्र गति से असर हो रहा था दोनों पर। सपना की अकल के कपाट अब धीरे धीरे खुल रहे थे। वह भिखारी की आवाज पहचान रही थी। कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी। और शक्ल भी अब पहचान में आने लगी थी। सपना को घोर आश्चर्य हो रहा था। उसके लिए तो ऐसा सोचना भी कल्पना से बाहर लग रहा था। "भगवान शिव" साक्षात सामने बैठे हैं और वह कब से उनका तिरस्कार कर रही है। घोर पाप हुआ है उससे। उसने शिव को पहचान कर दोनों हाथ जोड़कर चुपके से माफी मांग ली। शिव तो बहुत दयालु हैं। अपने भक्तों का पूरा ध्यान रखते हैं। उन्होंने आंख के इशारे से ही जता दिया कि उन्होंने माफ कर दिया है। अब सपना गुडहल के फूल की तरह खिल गई थी।
अचानक उसे याद आया कि आज तो "रोज डे" है। पर मम्मी भी तो सामने बैठी है। वह तुरंत अपने गार्डन में गई और एक गुलाब का फूल तोड़ लाई। उसे शिव को देते हुए बोली
"महाराज आप तो बहुत पहुंचे हुए संत हैं। आप तो त्रिकाल दर्शी हैं। आप कह रहे थे न कि शिव हमसे नाराज हैं इसलिए आप हमारी तरफ से ये गुलाब का फूल उन पर चढ़ा दीजिए और हमारे लिए प्रार्थना कीजिए।" सपना शिव की आंखों में देखकर बोली। आज पहली बार दोनों आमने सामने मिल रहे थे और वह भी इस तरह से। वह एकटक शिव को देखे जा रही थी। भेद खुलने के डर से शिव ने ही हस्तक्षेप किया
"ऐसा कीजिए, एक और गुलाब का फूल तोड़कर हमें दीजिए। हम उसे अभिमंत्रित करेंगे।" सपना तुरंत गई और एक गुलाब का फूल लाकर शिव को दे दिया। शिव ने कोई मंत्र पढ़ा और वह गुलाब का फूल वापस सपना को दे दिया और कहा
"यह अभिमंत्रित फूल है इसे शिवजी को चढा देना फिर तुम्हारा कल्याण अवश्य होगा।" इस तरह दोनों ने एक दूजे को रोज देकर रोज डे मना लिया।
क्रमश :

