मन की बात
मन की बात
आज एक अलग सी शाम है
दो दिल साथ चल रहे हैं
मुश्किल है कुछ कह पाना।
पर मेरे मन की आरज़ू
शब्द बन निकालने को बेताब है,
दोनों मन मीठी उलझन से भरे
पहल कौन करे ये सवाल है।
मैं खुद से कहने लगा
अब तक मेरी बात रही
मेरे मन में कह भी न सका
इस उलझन में।
सामने खड़ी है वो मेरे
तो अब क्यो ये हाल है,
वो कहने लगी तुम ना जाहिल हो
प्यार था तो कह दिया होता
क्यो हाल बेहाल है।
मैंने कहा यूं तो मुझको भी तुम में
खुद का अक्स लगता है,
पर मन की बात कहने में
थोड़ा वक़्त लगता है।