बूंदें
बूंदें
सुनो, ये आहट सुनते हो न तुम मॉनसून की,
तुम देख सकते हो न।
बरसते उस आसमान को,
भीगती इस धरती को,
और उन बूंदों को
जो मिला रही है इन दोनों को।
रूठे हो एक ज़माने से
भूल जाओ ना...
रूठने के वो सबब सारे।
अब के मॉनसून में...
धुल जाने दो
वो सारे गिले
वो सारे शिकवे...
बरसो ना आसमां के तरह तुम
और भीगूँ में ज़मी की तरह...
ये बूंदें व्यर्थ ना हो जायें।
सार्थक इन्हें कर दो ना तुम।