जीवन सिंधु
जीवन सिंधु
सिंधु ये जीवन सागर है
कश्ती ये, रूह है तेरी
अँधियारा जो फ़ैल रहा है
परीक्षा है जीवन डगर की।
अंधियारे के बाद उजाले भी आएंगे
और उजाले के बाद,
पुनः अँधियारा
इससे क्यों डरता है तू
ये तो जीवन प्रक्रिया है,
चलती रहेगी।
मन को स्थिर कर
सशक्त हैं भुजाएँ तेरी
उपयोग कर पतवार सा इनको
चीर सिंधु का सीना,
अपनी कश्ती आगे बढ़ा।
क्यों सोच रहा तू किनारे का ?
सफर का सोच,
इसका महत्व बड़ा
भवतारिणी मान इस सिंधु को तू
यात्रा का आनंद उठा।
मन में विश्वास जगा, कर्म कर
छोड़ दे अतिरिक्त सभी,
उस परमेश्वर पर
वही देगा तुझको पर लगा।।