स्वाभिमान की जंग
स्वाभिमान की जंग
तुम मुझे हरा पाओ, इतनी तुम्हारी बिसात नहीं।
मेरी सच्चाई को झुठला दे, तेरे झूठ की औकात नहीं।
ये प्यार नही जंग है स्वाभिमान की
उसूलों से जीतूँगी बाकी अपने पास कोई सौगात नहीं।
अकेली ही लड़ने चली हूँ ये लड़ाई,
साथ अपनों की बारात नहीं।
जानती हूँ मुफ्त में इस जहाँ में कुछ नहीं मिलता,
मुझे बस अपना हक चाहिए, खैरात नहीं।