मृत्युदंड
मृत्युदंड
दोषी हूँ मैं, दूषित हूँ, मेरी हत्या का अब भय है मुझे
सिद्ध हुआ अपराध मेरा, मिलना मृत्युदंड तय है मुझे
वो आक्रोशित हैं, क्रोधित हैं, ज्ञानी पर उनसा दूजा नहीं
इस देव समूह की जाने क्यूँ, मानव करता कोई पूजा नहींं
शिव चक्षु से भी इनकी शरण में अजय है तू, निर्भय है तुझे
दोषी हूँ मैं, दूषित हूँ, मेरी हत्या का अब भय है मुझे...
मैंने अक्सर उनको देखा था, चौराहों पर ताशों में,
कभी शादी में, बारातों में, कुछ सामाजिक तमाशों में
भावुक यूँ तेरा हो जाना, कुछ और नहींं ये क्षय है तुझे
दोषी हूँ मैं, दूषित हूँ, मेरी हत्या का अब भय है मुझे...
इतिहास है कोई गौरव-सा, कोई गाथा है, प्रमाण सी है
पुष्पों का ज़िक्र क्यूँ करें भला, सोच नुकीले बाण-सी है
तू सौंप दे खुद को चरणों में, किस बात का ये संशय है तुझे
दोषी हूँ मैं, दूषित हूँ, मेरी हत्या का अब भय है मुझे...
ये प्रेम विरह, संताप तेरा, एक व्यंग्य है ये अश्रुधारा
हँसता है जहाँ ये विजयी हुआ, तू देख ज़रा कैसे हारा
दफनाकर ये यादें वादें, चल मांग क्षमा, क्या व्यय है तुझे
दोषी हूँ मैं, दूषित हूँ, मेरी हत्या का अब भय है मुझे
सिद्ध हुआ अपराध मेरा, मिलना मृत्युदंड तय है मुझे