Suman Rakesh Shah

Drama

2.5  

Suman Rakesh Shah

Drama

ज़िंदगी ख्वाब या ख्वाब ज़िंदगी

ज़िंदगी ख्वाब या ख्वाब ज़िंदगी

3 mins
681


उस दिन जब से व्हाट्सएप्प पर तेरा मैसेज आया कि तू किसी काम से सूरत आने वाला है...तो मैं मन ही मन इक पूरा दिन जी गई थी।

आज सालों बाद न जाने क्यों ख्यालों मे वो दिन झलकने लगा, तो बहुत दिनों बाद आज डायरी निकल कर लिखना शुरू किया और भूतकाल में डूब गई।

याद है तुझे, वो शाम, कैसे याद होगी तुझे, वो तो बस इक ख्वाब था मेरा,

खुद के लिए एक दिन भी निकलना हो तो पूरा दिन शफल कर लेना पड़ता है, किसी दूसरे के लिए नहीं अपितु ख़ुद की मानसिक शांति के लिए, और फिर तू तो मेरा दोस्त था, कोई एक पल भी खोना नही चाहती थी, किसी और को डिस्टर्ब किये बिना हर पल तेरे साथ जीना था मुझे, स्टेशन से पिक करने से लेकर ड्रोप करने तक ..इसलिए घर के सारे काम, नास्ते से लेकर रात के खाने तक, मम्मी पापा की जरूरतों से लेकर बच्चों का होमवर्क, सुबह कितने बजे उठना होगा, सब याद कर के लिस्ट बना ली, घर की भी थोड़ी सफाई करनी थी, शायद घर आना हो जाये, पल भर में कितना सारा सोच लिया था और क्यों न सोचूँ आखिर कोई दोस्त भी तो नहीं है मेरा तेरे सिवा...कल के लिए मन ही मन कितनी ही प्लानिंग चल रही थी, क्या करूँगी और कैसे,..स्टेशन से पिक कर के तुझे होटल पर ड्रोप कर दूँगी, फिर घर के काम पूरे कर लूँगी।

पहले तुझे जहाँ जाना होगा वो काम पूरे करेंगे फिर हसबैंड की आफिस से उन्हें पिक कर के, खूब सारी बातों के साथ लंच करेंगे... फिर घर पे दोपहर की चाय के बाद फिर से आपको होटल ड्रोप करना था, पास ही में होटल था तो पैदल ही चल दिये, मगर ये क्या, ऐसा लग रहा था जैसे ये होटल इतना जल्दी कैसे आ गया....रोज का 15 मिनट का रास्ता जैसे पल भर मे निकल गया, बातें तो अभी खत्म ही नही हुई ..वहीं लॉन मे बैठ गए, तेरी ट्रेन का समय हो गया था, इसलिये लगोज ले कर स्टेशन गए, मैं उदास थी, पर पुरा दिन साथ बिताने की खुशी चेहरे पर झलक रही थी और फिर हम दोनों को ही लौटना तो था .. घर...अपनी दुनिया में.....तभी फ़ोन पर फिर से बीप बजा था ...तेरा ही मैसेज था,

लिखा था कि तेरा प्रोग्राम रद्द हो गया, तू नहीं आ पायेगा अब.... ख़्वाब बिखर गया, उदासी छा गयी...पर जब खुद के ख्वाब का अंत याद आया तो सोचने लगी, उदास तो मैं तब भी थी, अब भी हूँ .....क्या फर्क पड़ता है दोस्त, वैसे भी मुकम्मल जहान तो बस इक वहम है जो सिर्फ ख्यालों में ही रचे जाते हैं और वहीं बिखर जाते हैं और “जागते रहो” पिक्चर का मुकेश सर का गाया एक गीत याद आ गया- ”ज़िन्दगी ख़्वाब है, ख़्वाब है ज़िन्दगी..ख़्वाब में झूठ क्या और भला सच है क्या ...इतना लिखकर अपनी डायरी बंद कर दी और कुर्सी पर आराम से सिर टिका दिया, चेहरे पर मीठी सी एक मुस्कान थी...मन की बातों को जब भी डायरी में लिखती हूँ तो उसके अंदर छुपी लेखिका जैसे झूम उठती है…।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama