Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

4  

Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

युवा आँगर

युवा आँगर

11 mins
621


उत्तर प्रदेश का जनपद वाराणसी ऐतिहासिक नगरी है भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है ऐसा सनातन मान्यताएं है ।।काशी में मृत्यु होने पर मोक्ष मिलता है, यहाँ विश्व का एक मात्र मुमोक्षु गृह है जहाँ देश के विभिन्न कोनो से लोग आते है और अपने मरने का इंतज़ार करते यह एक अनोखा आस्था का अद्भुत सत्य वाराणसी से ही जुड़ा है वारणसी ही एक ऐसा शहर है जहां श्मशान की

आग सदैव जलती है और यहां के डोम राजा को काशी का गौरव होने का दर्जा प्राप्त है ।।एक कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र काशी में ही डोम राजा की चाकरी किया था वही मंकर्णिक घाट है बाद में राजा हरिचंद्र के नाम से एक नया श्मशान भूमि ने जन्म लिया भारतीय इतिहास की नारी गौरव रानी लक्ष्मी बाई का जन्म स्थल भी गंगा किनारे वाराणसी में ही हुआ था कथा एव उपन्यास उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेम चंद्र जी का जन्म स्थान लमही वाराणसी है हिंदी साहित्य के हस्ताक्षर जयशंकर प्रसाद जी की जन्म भूमि कर्म भूमि वाराणसी ही है मशहूर शहनाई वादक उस्ताद विस्मिल्लाह खान साहब की जन्म कर स्थली भी यही है कितने घराने संगीत के वारणसी से संबंधित है पण्डित छन्नू लाल मिश्रा एव विरजु महाराज जी की जन्म कर्म भूमि भी वारणसी है।। द्वादस ज्योतिर्लिंग में काशी विश्वनाथ ग्यारहवा ज्योतिर्लिंग है जो काशी की महत्ता को गौरवान्वित करता है धार्मिक मान्यता है चूंकि काशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है अतः काशी में कोई प्राकृतिक या दैवी प्रकोप नही आ सकता आत्मा से परम् आत्मा की जीवन यात्रा के शाश्वत सत्य सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध मान्यताओं के अनुसार विष्णु के नौवे प्रत्यक्ष अवतार द्वारा अपने पांच शिष्यों को प्रथम उपदेश यही सारनाथ में दिया गया था भारत की आजादी के माहानायकों में एक पण्डित मदन मोहन मालवीय ने अपनी कर्मभूमि वारणसी को चुना और शिक्षा का विश्व प्रसिद्ध विश्वद्यालय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की पवित्र गंगा नदी के तट पर बसा यह पौराणिक शहर अपनी विविधताओं के लिये जाना और पहचान जाता है इस शहर के मुख्य द्वारपाल कालभैरव जी है ।।वारणसी भारत की स्वतंत्रता आंदोलन का भी मुख्य केंद्र रहा है कबीर पंथ की स्थापना करने वाले महान संत कबीर दास जी का जन्म एव कर्म स्थली भी वारणसी है उन्होंने तो अपने जन्म के विषय मे लिखा है ( काशी का वाशी ब्राह्मण नाम मेरा प्रवीना एक बार हरि नाम न लीन्हा पकरी जुलाहा कीन्ह) तो महान भक्त कवि गोस्वामी तुलसी दास जी को रामचरित मानस की प्रेरणा काशी से ही प्राप्त हुई काशी भारत की प्रमुख सांस्कृतिक नगरी और शिक्षा का प्रमुख केंद्र माना जाता है काशी की माटी से ना जाने कितने इतिहास एव ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को जन्म दिया है महाभरत पुराण के अनुसार अम्बा, अम्बे ,अम्बालिका काशी नरेश की पुत्रियाँ थी जिन्हें स्वयम्बर से जीत कर भीष्म पितामह लाये और अम्बे अम्बालिका का विवाह अपने भाईयों विचित्रवीर्य और चित्रांगद से करा दिया अम्बा ने भीष्म से विवाह करने की जिद की मगर भीष्म द्वारा प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण इनकार करने के कारण अम्बा ने चिता में आग लगाकर प्राण त्याग दिया और जन्म पर जन्म लेती गयी अंत मे भीष्म के अंत का कारण बनकर शिखंडी के रूप में जन्म लिया और महाभारत युद्ध की एक प्रमुख पात्र बनी। काशी के इतिहास और उसके पौराणिक एव वर्तमान महत्व को वर्णन करना आसान नही है वहा से न जाने कितने इतिहास मिथको एव कहानियों ने जन्म लिया है ।।काशी की जिस ऐतिहासिक घटना को कहनिबद्ध करने के लिये माँ सरस्वती से प्रार्थना करता हूँ वह काशी के ग्रामीण और शहरी दोनों परिवश पृष्ठभूमि परिस्थितियों से संबंधित है निश्चित तौर पर लेखनी की यथार्थता प्रदान करके वर्तमान को सार्थक संदेश देने का प्रायास करने जा रहा हूँ सम्भव है मेरी धृष्ठता हो लेकिन अपनी

जानकारियों को वर्तमान के समक्ष प्रस्तुत करने से याथार्त को प्रेरणा पराक्रम का अवसर प्राप्त होता है वारणसी जनपद मुख्यालय से लग्भग बीस किलोमीटर गंगापुर के अंतर्गत मोतीपुर गांव है ।। मोतीपुर गांव में भूमिहार परिवारों की बाहुल्यता है जिनका मुख्य व्यवसाय खेती है मोतीपुर के सबसे बड़े काश्तकार या यूं कहें जमींदार थे नारायण कृष्ण सिंह जिनका रसुख रुतबा बहुत दूर दूर तक फैला हुआ था जमींदार अर्थ था क्षेत्र विशेष के जमीन का एक मात्र स्वामी और क्षेत्र की पूरी जनता रइएयत यानी प्रजा नारयण कृष्ण सिंह एक

प्रभावशाली और प्रतिष्ठा सम्पन्न जमींदार थे ।।जमीदार होने के अपने दायित्वों का निर्वहन नारायण कृष्ण सिंह बड़ी विनम्रता और सहृदयता से करते कभी कभी दूसरे जमीनदारो को नारायण कृष्ण के नर्म और मानवीय व्यवहार से परेशानी होती क्योकि उनकी जमींदारी के दायरे की रइयत उनसे नारायण कृष्ण का उदाहरण देकर रियासत की मांग करती जब दूसरे जमींदारो द्वारा इस बाबत कोई बात कही जाती तो नारायण कृष्ण यही कहते हम भी मनुष्य है और हमारी रइयत भी मनुष्य उतनी ही कठोरता जायज है जितने में मानवता शर्मसार ना हो और मर्यादा बनी रहे मगर समस्या यह थी कि अंग्रेज जमींदार को आर्थिक आय का मूल स्रोत मानते यानी दूध देने वाली गाय और गाय तभी दूध देगी जब उसे स्वस्थवर्धक आहार मिले मतलब स्पष्ट है कि देश गोरों का गुलाम था ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था गोरों को भारत की संस्कृति से कोई लेना देना नही था उनका एक मात्र उद्देश था कि गुलाम मुल्कों से ज्यादा से ज्यादा धन दौलत उगाही की जाय एव ब्रिटिश राज कोष को भरा जाय इसी एक मात्र उद्देश की पूर्ती के लिये गोरे अपनी राजस्व श्रोत को रियासत और जमींदार दो वर्गों में बाँट रखा था किसी रियासत से निर्धारित आय से कम राजस्व की वसूली पर गोरे रियासत और जमींदार पर शिकंजा कसते और जमींदार रियासते विवस बेबस अपनी ही जनता का खून चूसने को बाध्य होते।नारायण कृष्ण को भी गुलामी की चाबुक की मार की इस वेदना का दर्द हुआ करता फिर भी वे नर्म नजरिये के जमींदार थे नारायण कृष्ण के चार बेटे थे कृष्ण चन्द्र,कृष्ण कुमार,राघव कृष्ण और नारायण सभी बेटे पड़ने लिखने में एक से बढ़कर एक थे नारयण कृष्ण को भी अपने बेटों पर फक्र रहता नारायण कृष्ण कभी कभी गोरों की शासन की क्रूरता से अवश्य बिफर जाते और न चाहते हुये भी मानवता के विरुद्ध अपनी जमींदारी की जनता से कठोरतम व्यवहार करने को विवश हो जाते उस समय मानव ही भगवान और मानव ही जनवर से बदतर बन जाता जबकि सब ईश्वर की सृष्टि में ईश्वर के ही बनाये हुये कोड़े की मार ,बैलों की जगह इंसान द्वारा हल जोतना ,आधे पेट भोजन पर तेली के बैल जैसे सुबह शाम दिन रात मरना पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम मुल्क की नीयत बन गयी थी बेटी बहुओं की कोई इज़्ज़त नही थी भेड़ बकरियो की तरह जब गोरों या ऊनकी शासन प्रणाली के गुर्गों को जरूरत होती उनकी अस्मत रौंद उनको जीवित इंसान के रूप में जानवर बनाकर छोड़ देते इंसान की परिभाषा पहचान बहुत स्पष्ठ थी गोरे अंग्रेज या रियासतदा या जमींदार ही इंसान थे बाकी सब जानवर जिंदगी सिसक सिसक कर घिस घिस कर चलती और अपमान जलालत और दुर्दशा दुर्गति में दम तड़फ तड़फ कर मन मे दबी आकांक्षाओं की चिंगारी के

साथ दम तोड़ देती। प्रकृति का प्रकोप गरीबी अभाव की जिंदगी और गुलामी का दंश जिसके माध्यम अपने ही लोग होते नारायण कृष्ण के चौथे बेटे नारायण को आम जन की दशा देखकर मन मे घुटन होती और उनका बाल मन इसे उखाड़ फेखने के सपने संजोता ।।नारायण कृष्ण के तीन बेटे तो तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों पर कोई ध्यान नही देते उनका मानना था कि इंसान अपने हिस्से के कर्म का भोग भोगता है उसमें ना तो शासन या रियासत और जमींदारी प्रथा का कोई दोष नही है जबकि नारायण की सोच इसके ठीक विपरीत थी उसका मानना था सभी इंसान एक समान है और जो भी अंतर है वह भी इंसानो की देन है जो निहित स्वार्थ और अहंकार के द्वारा सृजित एव जनित है। नारायण के मन पर एक घटना का जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा भयंकर सूखे के कारण कृषि उत्पादन इतना भी नही हुआ था कि आम जन अपना और परिवार का पेट पाल सके यह सच्चाई गोरों रियासतो और जमीदारों सभी को मालूम था फिर भी मालगुजारी वसूले के प्रति बहुत कठोर रवैया रियासतो एव जमींदारों ने अपना रखा था नारायण कृष्ण भी मजबूरी में अपने क्षेत्र की जनता से राजस्व की वसूली के लिये कड़ाई करनी पड़ी एक दिन सुबह सुबह जमींदारी के आठ दस लोंगो को नारायण कृष्ण ने बुलाया और निर्धारित मालगुजारी न अदा कर सकने की स्थिति में सजा के रूप में अंग्रेजो की बेगारी करनी होगी चप्पू चलाना होगा या रोज एक मन अनाज पीसना होगा कोई अपनी मातृ भूमि छोड़ दूर नही जाना चाह रहा था सबने प्रतिदिन एक मन अनाज पीसना स्वीकार किया उन दस लोंगो में रमेश दमे का मरीज, लाखा टी बी का मरीज और महेश मिर्गी का मरीज मुकर्रर सजा के मुताबिक एक मन अनाज पीसना बहुत कठिन कार्य था यह सजा दो महीने के लिये थी सजा शुरू हुई और रमेश खांस खांस पानी पीता दम तोड़ गया तो लाख खून की उल्टी करता मर गया और महेश मिर्गी 

मजबूरी में खुदा को प्यारा हो गया नारायण को बचपन से ही इस प्रकार की दानवीय अहंकार के मानवीय संस्कृति से घृणा थी उसके मन मे इसे समाप्त करने की छटपटाहट थीं।

नारायण जब मैट्रिक में पढ़ रहा था उसके मन मे दबी चिंगारी धीरे धीरे ज्वाला का स्वरूप धारण कर रही थी और उचित अवसर की तलाश में था और अवसर उंसे मिल ही गया अवसर था पिता का विरोध उन दिनों खेतिहर मजदूरों को बारह पैसे प्रतिदिन मजदूरी एव दोपहर में जलपान या स्थानीय भाषा मे पनपियाव दिया जाता था और सुबह से शाम तक जानवरो से भी बद्तर कार्य कराया जाता था नारायण कृष्ण यानी नारायण के पिता ने अपनी जमीदारी के मजदूरों को खेती कार्य करने हेतु हर वर्ष की भांति बुलाया और जो मजदूरी निर्धारित थी वही भुगतान करते नारायण इस बार गाहे बगाहे मजदूरों के बीच उठता बैठता और उनके सुख दुख को जानने और जीने की कोशिश करता उसकी आत्मा उंसे धिक्कारती एक दिन उसके किशोर मन ने इस क्रूर मजदूरी प्रथा को समाप्त करने की प्रतिज्ञा कर ली लेकिन उसके मन मे दुविधा यह थी कि वह क्या करे शुरुआत कहा से करे बहुत जद्दोजहद के बाद नीर्णय किया कि इसकी शरुआत अपने घर से ही करेगा नारायण ने अपने पिता नारायण कृष्ण से बात करने को ठानी और पिता से उसने पूछा भगवान क्या है? नारायण कृष्ण ने कहा भगवन ही सर्व शक्तिमान है ब्रह्मांड और प्राणि का निर्माता नियंता है ।फिर नारयण से पिता से पूछा आपमे और आपके जमींदारी की आम जनता में में कोई समानता है ?नारायण कृष्ण बोले वह भी इंसान है हम भी इंसान है ।।पुनः नारायण ने खेत मे कार्य कर रहे मजदूरों की तरफ इशारा करते पूछा उन मजदूरों और आपमे क्या फर्क है? अब नारायण कृष्ण का माथा ठनका उनका बेटा आज इस तरह के सवाल क्यो कर रहा है उन्होंने बेटे नारायण से पूछा बेटे ये प्रश्न क्यो कर रहे हो? नारायण बोला पिता जी मैं चाहता हूँ की आप अपने खेत मे कार्य करने वाले मजदूरी बढ़ा कर दो आने से आठ आने प्रतिदिन कर दे क्योकि ईश्वर ने हमे आपको और मजदूरों को बनाया है अतः इंसान को भगवान बनने का ना तो अधिकर है ना ही कोई जरूरत अतः आप मेरे निवेदन को स्वीकार करके अपने प्रिय पुत्र के प्रेम में मजदूरों की मजदूरी आठ आने करने की कृपा करें पिता नारायण कृष्ण ने बेटे नारायण को समझाने के लहजे में कहा बेटे तुम्हे नही मालूम कि मेरे द्वारा मजदूरी बढ़ाये जाने के कारण पूरे क्षेत्र और एक एक जमींदारों रियासतो पर मजदूरों का दबाव मजदूरी बढाने के लिये पड़ेगा और मुझे पूरे समाज से जलालत अपमान नारायण बोला कि आपको मेरी बात स्वीकार है या नही? पिता नारायण कृष्ण ने कहा बिल्कुल नही।। फिर क्या था नारायण उन्ही के सामने दरवाजे पर आमरण अनशन पर बैठ गया और बोला पिता जी अब तो आप या तो मजदूरों की मजदूरी बढ़ाएंगे या मेरा दाह संस्कार क्योंकि जबतक आप मजदूरों की मजदूरी नही बढाएंगे मैं पानी तक नही पियूँगा चाहे मर क्यो न जाऊ पिता नारायण कृष्ण को लगा कि किशोरावस्था में मन जज्बाती होता है जो भूख प्यास को बहुत देर तक बर्दास्त नही कर सकता बोले देखते है बेटे तुम कितने दिन अनशन करोगे नारायण चुपचाप बैठ कर पिता की बात सुनता रहा कोई जबाब नही दिया अब नारायण कृष्ण अपने काम मे तल्लीन नारायण पर ध्यान न देने का निर्णय कर लिया एक दिन बीतते बीतते पूरे इलाके में बात आग की तरह फैल गयी कि नारायण कृष्ण का बेटा नारायण मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने के लिये पिता के विरुद्ध ही मोर्चा खोल रखा है और महात्मा गांधी की अनुयायी की तरह शांत भाव से।। माँ दमयंती और भाइयों ने समझने की बहुत कोशिश की मगर नारायण पर कोई प्रभाव नही पड़ा नारायण को आमरण अनशन पर बैठे पूरे पांच दिन हो चुके थे जिद्दी नारायण मरणासन्न हो गया नारायण कृष्ण पर पत्नी पुत्रो रिश्ते नातो का दबाव नारायण की बात मानने के लिये बढ़ गया और पिता नारायण कृष्ण को बेटे नारायण की जिद्द के आगे झुकना पड़ा और मजदूरों की मजदूरी बढ़नी पड़ी।।काशी के ग्रामीण अंचल गंगापुर मोतीपुर के किशोर नारायण द्वारा अपने ही परिवार पिता के विरुद्ध आंदोलन छेड़ कर काशी की गौरवशाली परंपरा इतिहास में एक नए अध्याय का स्वर्णाक्षरों में लिखित

पन्ना जोड़ दिया।।नारायण की इस किशोरावस्था उपलब्धि की चर्चा सर्वत्र हो रही थी नारायण में भी हिम्मत और आत्म विश्वास का सांचार हुआ पिता नारायण को अपनी हार में भी जीत नज़र आ रही थी नारायण मैट्रिक के बाद इंटरमीडिएट फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त किया और छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि लेने लगे और राजनीति का शुभारंभ भी बनारस हिंदूविश्वविद्यालय से प्रारम्भ कियानारायण समता मूलक समाज सिंद्धान्त समादवाद विचारधारा से बेहद प्रभवित थे नारायण स्थानीय स्तर के छोटे छोटे आंदोलनों का नेतृत्व करते करते कब राष्ट्रीय स्तर पर

स्थापित हो गए उनको स्वय भी नही पता चला जयप्रकाश के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रमुख कर्णधारों में नारायण को अपने प्रिय स्वतंत्रत देश ऊँन्नीस माह जेल में बिताने को बाध्य होना पड़ा नारायण ने अपने जीवन मे ईमानदारी की उच्च आदर्श प्रस्तुत किया नारायण अपने जीवन काल मे एक जीवंत मिथक बन चुके थे और समाजवादी होते हुये उन्होंने कभी मूल्यों मर्यादा और व्यवहारिक संस्कृतियों से कोई समझौते नही किया काशी की पवित्र माटी में भारत की गुलामी के काल मे जन्मा और तीस वर्ष तक गुलामी को करीब से देखा परखा उसके दंश दर्द को दिल से महसूस किया जब नारायण की उम्र इकत्तीस की हुई मुल्क आजाद हो चुका था नारयण ने आजादी के बाद देश की राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन के अनेकों कार्य किया और भारतीय राजनीति और काशी की पावन भूमि का दैदीप्यमान सितारा एक सारगर्भित इतिहास को नई पीढ़ी की सोच समझ प्रेरणा के लिये जीवंत छोड़ गया।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational