यदि इंदिरा गांधी होती तो
यदि इंदिरा गांधी होती तो
हास्य व्यंग्य : यदि इंदिरा गांधी होती तो ...
ऑपरेशन सिंदूर चल रहा था और हम टेलीविजन चैनल पर पाकिस्तान की ठुकाई की खबरें देख देखकर मस्त मगन हो रहे थे और घूंसा तान तान कर कह रहे थे कि और ठोको इस हरामखोर को । ये सांप है , इसे जिंदा मत छोड़ना नहीं तो ये फिर से डस लेगा ।
हमारी श्रीमती जी भी पाकिस्तानी ठुकाई पर बहुत प्रसन्न थीं । जब जब वे ज्यादा प्रसन्न होती हैं तो वे हमारे लिए हलवा बनाकर ले आतीं हैं । आज भी प्रसन्नता के अतिरेक में बोल उठीं
"आज तो मजा आ गया । इन राक्षसों की ऐसी ठुकाई होनी चाहिए कि इनकी सात पुश्तें भी ऑपरेशन सिंदूर को याद रखें" ।
पाकिस्तान की तबाही का मंजर देखकर हम भी बहुत खुश थे । हम भी खुशी से झूमते हुए बोल पड़े
"अभी देखती जाओ मैडम ! इस बार इसका वो हाल करेंगे कि इसका नामोनिशान मिट जाएगा नक्शे से" ।
हमारी बात से वे खुश हो गईं और बोलीं
"आपके मुंह में सूजी का हलवा" !
"सूजी का हलवा" सुनकर हम चौंके । हमने कहा
"मैडम जी , ये कहावत ऐसे नहीं है बल्कि ऐसे है 'आपके मुंह में घी शक्कर" ।
"जानती हूं जानती हूं । लेकिन आपके दिल में एक स्टेंट डल चुका है ना इसलिए ज्यादा घी शक्कर आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं है" । वे मुस्कुराते हुए बोलीं
"और सूजी का हलवा ठीक है" ? हम चकराए से देखने लगे उन्हें ।
"अजी , सूजी के हलवे में सूजी भी तो रहती है ना ! इसलिए वह नुकसान नहीं करता है" । कहते हुए वे मदमाती हुई़ किचन में हलवा बनाने चलीं गईं ।
श्रीमती जी के अकाट्य तर्कों के सामने हमारी बोलती बंद हो जाती है । हमने तो कहीं पढ़ा नहीं कि सूजी के कारण हलवा नुकसान दायक नहीं होता है लेकिन "सुप्रीम कोर्ट" ने जब कोई टिप्पणी कर दी तो बेचारी "नूपुर शर्मा" क्या कर सकती है ? हम नूपुर शर्मा की तरह सुप्रीम कोर्ट यानि कि श्रीमती जी को देखते रह गए ।
इतनी देर में न्यूज चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगी
"ऑपरेशन सिंदूर फिलहाल स्थगित"
इस खबर से हम आसमान से गिर कर धड़ाम से पाताल लोक में गिर पड़े । हमें विश्वास नहीं हुआ । हमें लगा कि यह फेक न्यूज है इसलिए हमने चैनल बदल दिया । उस चैनल पर न्यूज एंकर चीख चीख कर बता रहा था कि दोनों देशों में गोलीबारी रोकने पर सहमति बन गई है ।
इस समाचार से हमें इतना आघात लगा कि हम बता नहीं सकते हैं । हमारे सारे अरमान धरे के धरे रह गए । ऐसा लगा कि लड़ाई नहीं हमारी सांसें ही रुक गई हैं ।
समाचार सुनकर श्रीमती जी ने हलवा बनाना रोक दिया । ये हमारे लिए और भी अधिक दुखदाई था । आज न जाने कितने बरसों के बाद श्रीमती जी के हाथ से बना हुआ हलवा खाने को मिलने वाला था लेकिन सीजफायर ने यहां भी भांजी मार दी थी । हम इससे ज्यादा मायूस हुए ।
"ये क्या हुआ ? कैसे हुआ ? क्यों हुआ ? कब हुआ" ?
अमर प्रेम फिल्म के गीत की तरह से श्रीमती जी ने दनादन प्रश्न ठोक दिए । हम क्या जवाब देते ? हम तो खुद ही बहुत उदास हो गए थे उस समाचार से । हमारे दिल से एक आह के साथ निकल गया
"ये आपने क्या किया मोदी जी ? इन सांपों को मारकर जलाये बिना आतंकवाद रूपी रोग खत्म नहीं होगा । आपने तो केवल दो लठ्ठ मारकर छोड़ दिया । ऐसी ठुकाई से इन सांपों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है । ये बरसों से पिट रहे हैं पर डसना नहीं छोड़ रहे हैं । देख लेना , कुछ दिनों बाद ये लोग फिर से कोई "पहलगाम" या "पुलवामा" कर देंगे" ।
श्रीमती जी भी गैस बंद कर हमारे पास आकर बैठ गईं और मोदी जी को कोसने लगीं ।
इतने में हमारे घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी आ गए । उनके साथ एक सज्जन और थे । देखने में वे कांग्रेसी लग रहे थे मतलब चिकने घड़े लग रहे थे । घाघ आदमी की तरह , खीसें निपोरते हुए मक्कार आदमी जैसे । हमने अपने गेट पर पहले से ही लिखवा रखा है
"कांगी , वामी , नमाज़ वादी, चारा चोर और बंगाली अभिजात्य वर्ग" इस घर से दूर ही रहे ।
हंसमुख लाल जी अपने साथ मिठाई का डिब्बा लाए थे । आते ही उन्होंने हमारे मुंह में एक लड्डू ठूंस दिया और हमें बधाई देने लगे
"अरे हंसमुख लाल जी , इतना खुश कैसे हो रहे हो ? क्या हमारी भाभीजी फिर से "उम्मीद" से हैं" ?
हमारी बात का मतलब समझते ही वे झेंप गए और उन्होंने शर्म से अपना मुंह छुपा लिया । कहने लगे
"आप भी भाईसाहब कैसी बातें करते हो ? अब हमारी बेगम के उम्मीद से होने के दिन हैं क्या ? अब तो बहू बेटियों के उम्मीद से होने के दिन हैं" ।
"तो फिर ये लड्डू किस खुशी में खिलाया है आपने" ?
"ये लड्डू तो सीजफायर पर बांटे हैं हमने" ।
उनकी इस बात पर हमारे मुंह का जायका बिगड़ गया और हमने वह लड्डू वहीं पर थूक दिया
"ये क्या किया आपने ? लड्डू खिलाने से पहले कम से कम बता तो देते" ! हमने गुस्से से कहा
हंसमुख लाल जी कुछ बोलते उससे पहले उनके साथ आए सज्जन बोले पड़े
"आज देश को इंदिरा जी याद आ रहीं हैं" ।
उनकी बात सुनकर हम चौंक पड़े । हमने हंसमुख लाल जी की ओर क्रोधित नजरों से देखा और कहने लगे
"हंसमुख लाल जी ! आप तो अच्छी तरह से जानते हो कि किसी भी कांगी , वामी वगैरह का इस घर में आना मना है फिर आप इस जमूरे को यहां क्यों ले आए" ?
हंसमुख लाल जी हमें शांत करते हुए बोले
"आप ग़लत समझ रहे हैं भाईसाहब ! ये आदमी न तो कांगी हैं और न वामी"
"तो फिर आपिया होगा" ? हमने शंका जाहिर की
"नहीं भाईसाहब , यह आपिया भी नहीं है । जब से दिल्ली का लाल किला उनके हाथ से निकला है , तब से आपिए न जाने किस बिल में घुसे हुए हैं" ।
"तो फिर ये है कौन" ?
"ये चरण दास जी हैं" । हंसमुख लाल जी हंसते हुए बोले ।
मैंने चरण दास जी का चेहरा गौर से देखा तो मुझे उसमें अमर्त्य सेन , महेश भट्ट , जावेद अख्तर , सुरेन्द्र शर्मा , करण थापर , राजदीप सरदेसाई की सूरत दिखाई दी जो कांग्रेस पार्टी के घोषित सदस्य नहीं हैं लेकिन चरण कांग्रेस के ही दबाते हैं । ये आदमी भी वैसा ही लग रहा था । शायद इसीलिए इनका नाम चरण दास रखा होगा इनके अब्बू ने । देखने में वे "खानदानी चरण चुंबक" लग रहे थे ।
"शक्ल से ही लग रहा है कि ये चरण चुंबक दास हैं । इन्हें मेरे घर क्यों ले आए" ?
"ये तो बहुत बड़े कलाकार हैं भाईसाहब" ।
अब मैंने उन्हें और भी अधिक गौर से देखा तो कुछ कुछ याद आने लगा ।
26/11 के बाद कांग्रेस के महान नेता दिग्विजय सिंह ने एक पुस्तक लिखवाई थी "भगवा आतंकवाद" जिसका विमोचन दिग्विजय सिंह ने खुद किया था । उस कार्यक्रम में ये शख्स भी उपस्थित थे । मैंने हंसमुख लाल जी से कहा
"ये शख्स तो "भगवा आतंकवाद" पुस्तक के विमोचन के अवसर पर उपस्थित थे , मैंने टीवी चैनलों पर देखा था" ।
"आप ठीक कह रहे हैं भाईसाहब ! "भगवा आतंकवाद" पुस्तक इन्हीं ने लिखी थी" ।
अब सब कुछ समझ में आ गया था । चरण दास की हकीकत पता चल गई थी । हमने उनसे पूछा
"इंदिरा जी होतीं तो क्या कर लेतीं" ?
"POK वापस ले लेतीं और क्या" ?
"1971 में वापस क्यों नहीं ले लिया था ? तब तो पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिक हमारे कब्जे में थे । हमने तो उनके 93000 सैनिक छोड़ दिए थे लेकिन इंदिरा गांधी हमारे 54 सैनिक भी नहीं छुड़ा पाईं थीं । वे सैनिक पाकिस्तान की जेलों में सड़ सड़ कर मर गए । क्या ये उपलब्धि है इंदिरा गांधी की" ?
हमने गुर्राते हुए कहा ।
हमारी बात पर वे बगलें झांकने लगे । जब कुछ और नहीं सूझा तो कहने लगे
"उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे । पाकिस्तान की शक्ति आधी कर दी थी । ये क्या कम उपलब्धि है" ?
"पहली बात तो ये है कि पाकिस्तान के दो टुकड़े हमने नहीं किए थे , वो तो बांग्लादेश खुद पाकिस्तान से अलग होना चाहता था । पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेशियों पर इतने अत्याचार किए थे कि पूरा बांग्लादेश पाकिस्तान के खिलाफ खड़ा हो गया था । इस कारण पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए थे । चलो हम ये मान भी लें कि इंदिरा गांधी ने दो टुकड़े किए मगर उससे हमें क्या फायदा हुआ ? वो बांग्लादेश जिस पर हमने अरबों रुपए लुटा दिए , आज भी हमें अपना दुश्मन ही मान रहा है । वहां पर भी "उम्माह" का भूत सवार है । 1971 में भी वहां हिन्दुओं का कत्लेआम हुआ था और आज भी वही हो रहा है । क्या अंतर आया तब में और अब में । हिन्दू वहां से पहले भी भाग रहा था और आज भी भाग रहा है । पाकिस्तान के दो टुकड़े करने से हमें क्या मिला" ?
अब उनके पास कोई जवाब नहीं था । हमने एक आखिरी वार करते हुए कहा
"युद्ध के दौरान हमने पाकिस्तान की 13000 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया था जबकि पाकिस्तान ने केवल 1500 वर्ग किलोमीटर पर ही कब्जा किया था । हमें 13000 वर्ग किलोमीटर भूमि लौटानी पड़ीं थीं और हमने POK भी वापस नहीं लिया था । अब बताओ कि हमें इंदिरा गांधी ने क्या दिया था ? बांग्लादेश को तो छोड़ो ये बताओ कि जो प्रधानमंत्री अपनी स्वयं की सुरक्षा नहीं कर सकता वह जनता की क्या सुरक्षा करेगा ? प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया । क्या इसे भी उनकी उपलब्धि मानेंगे ?
भिंडरावाले को किसने इतना बड़ा बनाया था ? अकालियों को मात देने के लिए इंदिरा गांधी ने ही भिंडरावाले को पाला था जो बाद में उसी के लिए भस्मासुर बन गया था । और सुनना चाहते हो कुछ" ?
अब चरण दास जी का मुंह देखने लायक था । हमारा जायका बिगड़ गया था । एक तो सीजफायर की घोषणा , उस पर हलवा कैंसल । तीसरे इंदिरा गांधी का जिक्र ! जला जला कर मार डालोगे क्या ? हमारे रौद्र रूप को देखकर वे दोनों भाग गए ।
श्री हरि
14.5.2025
