यादगार सफ़र
यादगार सफ़र
अब तो वो सरकारी नौकरी की इम्तिहान उत्तीर्ण कर चुकी थी। वो भी पहली ही बार में, यही सब सोचते वो बस में चढ़ गई, थोड़ा इधर उधर देखा और एक सीट के पास जाकर उसने पूछा "सुनिए क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूं?"
उस अजनबी ने बिना कुछ कहे अपना बैग सीट से हटा दिया।
निया बैठी और मैथिली( बिहार में बोली जाने वाली एक भाषा) में फ़ोन पे किसी से बात करने लगी, की तभी अचानक उस अनजाने ने उसकी तरफ देखा मुस्कुराया
उसे यूं देखते निया थोड़ी शर्मा गई की तभी अजनबी ने पूछा
अजनबी- बिहार ?
निया - (मुस्कुराते हुए) हाँ, मधुबनी!
अजनबी- मैं भी!
बस फिर क्या दोनों में इस तरह बाते होने लगी मानो दोनों एक दूसरे को जानते हो, आज शायद दोनों को किस्मत मिलवाना चाहती थी तभी तो दोनों को उतरना भी एक ही जगह था।
अजनबी - वैसे मुबारक हो जॉब लग गई वो फ़ोन पे आप बोल रही...
निया - थैंक्स
अजनबी- पार्टी!?
निया- बिल्कुल!
फिर दोनों पूरे रास्ते बात करते गए जैसे की, कैसे निया को लम्हा अपनों के साथ जीने में मजा आता है, ओर वो लम्हों को कैद कर के रखना पसंद करता, उससे फोटोग्राफी का शौक है तो कभी कभी लिख भी लेता हे थोड़ा बहुत , और न जाने कितनी बाते दोनों ऐसे बात कर रहे थे मानो दोनों जानते हो एक दूसरे को अजनबी न हो कोई अपना सा।
तभी अचानक बस रुकी और दोनों पहुँच गये दोनों ने ये तय किया कि वो अपना काम खत्म करके ठीक यही मिलेंगे।
काम खत करके वे मिले और निया ने ट्रीट दिया अब जाने के टाइम उस अजनबी ने पूछा- नाम?
निया- देखो मिस्टर अजनबी अगर किस्मत में हुआ तो जान ही जाओगे, वर्ना...!।
दोनों अपने घर आ गए निया ने देखा की उसके पास उस अजनबी की एक निशानी उसके कैमरे का लैंश रह गया, और उस अजनबी के पास कुछ शब्द जो वो निया से मिलने के पहले नहीं बोलता था। दोनों ने एक मुस्कान के साथ अपनी ज़िंदगी के किताब में इस कहानी को प्यार से बंद कर के रख दिया ।जरूरी तो नहीं हर कहानी को एक हसीन अंत मिले कभी कभी हसीन अंत के चक्कर में कुछ ऐसा हो जाता हे जो हमने सोचा भी नहीं हो। शायद कुछ किस्से ऐसे ही होते है।