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वसीयत

वसीयत

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लम्बे समय से ‘मोटर न्यूरोन’ बीमारी से पीड़ित गुड्डी का पूरा शरीर धीरे धीरे पैरालाईस हो गया था. आज सुबह उसकी मृत्यु हो गई थी. घर में कोई मातम नहीं था. सिर्फ एक ख़ामोशी सी पसरी हुई थी. उसका इस दुनिया से चले जाना ही शायद उसके लिए मुक्ति थी.

समीर के हाथ में उसकी एक पुरानी सी डायरी थी जो कि उसको गुड्डी के तकिए के नीचे से मिली थी.

"प्यारे भईया मैं इस दुनिया से जा रही हूँ. जब आपको यह पत्र मिलेगा तब मैं शायद इस दुनिया में नहीं रहूंगी. मैं जिंदा नहीं रहना चाहती. ऐसी जिंदगी से क्या फायदा? न मैं बोल सकती हूँ न मैं सुन सकती हूँ. मेरा जिस्म धीरे धीरे पैरालाईस होता जा रहा है. आप मुझसे एक वादा करो. मेरे मरने के बाद मुझे दफनाना नहीं. आप मेरे शरीर को जला देना. हर वह चीज़ जो आपको मेरी याद दिलाये वह आप मेरे साथ ही जला देना. मेरी किताबे, मेरे कपड़े, मेरे खिलौने. मुझसे जुड़ी कोई भी चीज़ घर में न रखना. यह जिस्म एक मिटटी है. इसको एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है. मेरे जाने का अफ़सोस मत करना. अम्मा बाबा का ख़याल रखना. जिंदगी में आगे बढ़ना. मेरे जिस्म की राख़ को गाँव के खेतों में उड़ा देना. –तुम्हारी बहन गुड्डी"

समीर की आखो में आसूं थे वह गुड्डी से जुड़ी हर एक चीज़ को एक एक करके घर के आगन में आग के हवाले कर रहा था. उसकी किताबे, उसकी गुड़िया, उसके कपड़े. समीर के हाथ में उसकी डायरी थी. एक पल के लिए उसने उसको देखा और फिर आग के हवाले कर दिया था. लेकिन कागज़ के उस टुकड़े से नज़र न बचा पाया जो डायरी से सरकता हुआ उसके पैरों पर गिरा था.

शायद किसी हिंदी अख़बार की कटिंग थी. “ उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद जिले में तीन व्यक्तियों ने कब्र से लाश निकाल कर किया सामूहिक बलात्कार.”                                                    


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