वृद्धाश्रम।
वृद्धाश्रम।
उसने ही कहा था "बिप्लब, घर की कचड़ा साफ करना कोई भी गुनाह नहीं है।"बूढ़ा बूढ़ी दोनों इस घर की सब से बड़ा कचड़ा हैं। अनीता के बात में आकर कल बिप्लब अपने मां बाप को लेकर वृद्धा आश्रम में छोड़ कर आया है।
जिसके घर में बहू, ताल से ताल मिलाकर सास ससुर के साथ झगड़ा कर पाती है, उस घर के बेटा को घर की तामझाम में मुंह खोलने का कोई जरूरत नहीं। क्यों मुंह खुलेगा?? ऐसा बेटा हीरा कहलाता है।
जिधर, बीबी के बात में आकर, कान में फुसलाई बात सुन कर बेटा बातों बातों में मां बाप को हड़काता रहता है, उधर बहू की मर्यादा खत्म होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। बहू नहीं तो बेटी कहलाती है। अंदर की बात किसी को पता रहती है??
सास ससुर के सामने अच्छा भाव मूर्ति होते हुए भी, अनीता की गुप्त मंत्रणा के कारण बिप्लब अपनी मां बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ कर आया है।
उस दिन सब लोग गाड़ी से बृद्धाश्रम गए और निकलने के समय अनीता गाड़ी के अंदर ही बैठी रही थी। आंसू के दो बूंद निकल गए। उसके सास और ससुर जब गाड़ी से निकल रहे थे, अनीता का दिल पिघल गया। शायद कोई अनीता को देख लेगा, इसलिए सब लोग वृद्धाश्रम के पहले फाटक अतिक्रांत करने के बाद गाड़ी से उतरी थी। अनुगमन करते हुए वह फाटक तक जब पहुंची, तबतक सास ससुर और स्वामी ने वृद्धाश्रम की ओर निकल चुके थे।
अनीता खुद को दोषी ठहरा रही थी। शंका अनुभव कर रही थी। वह कहीं पकडी नहीं जाएगी तो?? अनजाना भय उसके शरीर के अंदर दौड़ रहा था। खुदको इतना बड़ा अपराधी मान ली थी कि, वह खुद को माफी भी नहीं कर पा रही थी।
कोई एक अनजान सोच में खो खो कर सिक्युरिटी गेट तक पहुंच गई थी अनीता। वृद्धाश्रम का बूढ़ा दरबान आंखों से दो धार अश्रु निकालते हुए अपने सहकर्मी युवा दरबान को बोल रहा था:- "मै उस समय कटक के एक अनाथाश्रम मे नया नया दरबान के रूप में नौकरी में भर्ती हुआ था। सुधांशू बाबू हमारे सुपरिटेंडेंट जी को ले कर ऑफिस की तरफ घुस गए। कुछ समय दोनों कुछ लिखाई पढ़ाई में व्यस्त रहे। उसी दिन लाया हुआ एक शिशु पुत्र को सुधांशू बाबू के हाथ सौंप ते हुए, बोले; मेडिकल में जाना। नर्स, डाक्टर जो जितना भी पैसे मांगे दे देना। उन लोगों को सिर्फ बोलना, भाभीजी की चेतना आने नके बाद कहना, ये लड़का उनका ही बेटा है। भाभीजी को पता नहीं चलेगा कि उनकी मरा हुआ बेटा पैदा हुआ था।
ये व्यक्तिगत बात केवल मैं खड़ा हो कर सुन रहा था। सौ रुपए का एक नोट मेरे जेब में डालते हुए सुधांशू बाबू मुझे बोले, ये बात किसी को भी बताना नहीं। सुपरिटेंडेंट साहब ने कहा अरे सुधांशू, ये लड़का नया जोइनिंग। इसे कुछ भी पता नहीं, उसको क्यों पैसे दे रहै है ? हंसते हंसते सुधांशू बाबू चल दिए। वो बात मै उसी दिन भूल गया था।
संयोग से वृद्धा अवस्था में आज सुधांशू बाबू को देखते हुए वही पुरानी यादें सब एक एक करके सामने नाच रही हैं।
ये बात सुनने के बाद अनीता के पांव के नीचे से मिट्टी खिसकने लगी। उसे आज नींद कैसे आयेगी...??
सुधांशू बाबू उसके ससुर, और बिप्लब उनके पालित पुत्र। अनीता की आंखो को नींद छुएगी कैसी??
सुबह हुई। ड्राईवर को गाड़ी निकालने का आदेश देते हुए अनीता ने खुद को तैयार किया। बिप्लब को गाड़ी में बैठाकर वृद्धाश्रम की ओर निकल पड़ी।
फाटक के पास गाड़ी पार्किंग किया। बूढ़े दरबान के पास बिप्लब को खड़ा करके वृद्धाश्रम की ओर अनीता ने तेजी से प्रवेश किया। बूढ़े दरबान के साथ बिप्लब बातचीत कर रहा था.... थोड़ी दूर से अनीता देख रही थी, बिप्लब की आंखो से आंसू की दो धार निकले जा रहे थे।
पिताजी का एक हाथ मां और दूसरे हाथ को अनीता पकड़ कर ला रही थी। अनीता का दूसरा हाथ में एक सूटकेस भी था। भीगी आंखों से बिप्लब देख रहा था अनंत खुशी की लहर विराट रूप से उसकी और चलकर आ रहा थी।
