वो पल

वो पल

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मुझे आज भी वो पल याद हैं जो तुम्हें मुझसे सदैव के लिए छीन ले गये। जब कभी यूँ ही तन्हा बैठ कर डूबते सूर्य को निहारता हूँ, तो घोंसलों को लौटते परिन्दों की चहचहाहट याद दिलाती है कि यह वक्त सभी के घर लौटने का है। तभी यकायक ख्याल आता है, कोई अपना है जो कभी घर नहीं लौटेगा, जो चिता की अग्नि में जलकर खाक हो गया। सर्दी की धूप जब आंगन में आती है तो इक खाली पड़ी कुरसी को देख ऐसा लगता है जैसे वो आज भी किसी का इन्तज़ार कर रही हो।

लेकिन ये इन्तज़ार कभी ना खत्म होने वाला है ! किसी तरह दिल को समझाता हूँ और दुआ करता खुदा के चरणों में उनका बसेरा हो, जो इस जहान को अलविदा कह गये...!


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