Subhransu Padhy

Inspirational

4.3  

Subhransu Padhy

Inspirational

।। वीर की देशभक्ति ।।

।। वीर की देशभक्ति ।।

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यह कहानी है रामपुरा गांव की और इस गांव में लोगों के अंदर खून के प्रभाव से ज्यादा देशभक्ति दौड़ती है। इस गांव के ज्यादातर लोग फौजी में काम करते हैं और उनमें से एक है वीर । यह साहब शादी के चार दिन बाद ही अपनी पत्नी सोनम को छोड़कर देश सेवा के लिए निकल पड़े थे। बचपन से ही उन्हें फौजी में जाने का सपना था और उन्होंने फौजी में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा के समय दिन रात एक दिया था। पूरे भारत में प्रवेश परीक्षा में वीर साहब ने तृतीय स्थान प्राप्त किया था। जब ट्रेनिंग के बाद उन्हें मेजर पोस्ट पर पंजाब रेजिमेंट में दाखिला मिला तब से पांच सालों में वह सिर्फ दो बार घर आए थे। हर एक मिशन में जी जान लगाकर वह देश के खातिर किसी भी हद पार करने के लिए तैयार थे। एक मिशन के दौरान घर से फोन आया कि उनका एक बेटा हुआ है, पर वह तो बचपन से ही बड़े फैसले कर लिए थे। बेटे के द्वितीय जन्मदिन में उन्होंने उसे पहली बार आंखों के सामने देखा और अपने गोद में लिया। फिर अगले ही दिन भारत माँ की सेवा के लिए निकल पड़े ।

उनके बेटे के बहुत ज़िद करने के बाद दीवाली में घर आने का वादा किया था। वह मन ही मन सब सोच लिया था इस बार पापा के साथ बहुत सारे पटाखे खरीदूंगा, नए कपड़े और मिठाई का पूरा जमघट लगा दूंगा। वीर साहब उनके मिशन खत्म होते ही दीवाली के दो दिन पहले घर के लिए निकलने वाले थे। पर उसी मिशन में शत्रुओं से युद्ध के दौरान वह अपने साथियों से अलग हो गए थे। शत्रु सेना ने उन्हें पकड़ लिया और पूछताछ करने लगे। अगर भारत के सब खुफिया खबर उन्हें नहीं बताए तो मारने की धमक दी। पर वह कहाँ इस धमक से डरने वाले थे। उनसे सब जानकारी लेने जब उनके सिर पर बंधूक रखकर पूछा गया तो उनके मुहँ से तेज़ आवाज़ में निकला *यह मेरा देश है अगर मेरे देश के तरफ किसी ने आँख भी उठाई तो यह वीर इतनी तबाही मचाएगा जो अकाल और भूकंप भी नहीं मचापाएँगे।* यह बोलकर उन्होंने दुश्मनों पर अकेले ही हल्ला बोल डाला। मौत को सामने देखकर भी उन्होंने बिल्कुल नहीं घबराया।आखिरी साँस तक लड़ते रहे पर भारत की एक भी जानकारी उन्हें नहीं दी। अकेला आदमी उनके पूरे सेना के साथ कैसे लड़ पाएगा।उस मिशन के दौरान वह देश के लिए शहीद हो गए। बेटे को किया हुआ वादा तो निभाए पर खुद नहीं इस बार तिरंगे के साथ घर लौटे थे।घरवाले क्या उस दिन तो खुद भी रोए थे उनके आंगन में। उनका बेटा रोने के बजाय अपनी मम्मी को आश्वाशन देते हुए बोला माँ अब मैं पापा की ख्वाइश पूरा करूँगा । मैं भी फौजी में जाऊंगा और देश के लिए अपने कर्तव्य निभाउंगा। इक्कीस तोपों की सलामी के साथ भारतीय सेना की तरफ से उनका अंतिम संस्कार हुआ और गाँववासियों के लिए वह उदहारण बन गए।


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