*वह चिड़िया*
*वह चिड़िया*
क्लास के बाद मैं जाकर दफ्तर में सुपरिटेंडेंट के टेबल के पास लगी कुर्सी पर बैठ गया। सेवक ने मुझे पानी का गिलास थमाया। क्लर्क बोला,"गुरू जी, आज तो गर्मी ने कहर ढाह दिया है। जान निकले जा रही है। पानी पी पी कर भी हाल खराब है।" सेवक बोला,"अब तो बारस (वर्षा ) होनी चाहिये। पता नहीं,रब्ब बारस क्यों नहीं कर रहा?" मैनें भी कह दिया,"हर मौसम का अपना ही रंग होता है, हमें हर रंग एन्जॉय करना चाहिए। बुजुर्ग कहते हैं कि जितनी ज्यादा गर्मी होती है,उतनी ही ज्यादा बारिश पड़ती है।" "हाँ भई", सुपरिटेंडेंट ने कहा,"बुजुर्गों का तजुर्बा बोलता है।"
जून का महीना। चारों तरफ सुनसान। बाहर लू का प्रकोप। तापमान तकरीबन 40 के पार। पक्षी पेड़ों के अंदर बंद। क्या मनुष्य,क्या पशु, क्या पक्षी, सभी प्यास से व्याकुल। चारों ओर भाँ-भाँ। कमरों में पंखों की हवा भी गर्म।
हमारी बातें चल ही रही थी कि पता नहीं इतने में एक चिड़िया कहाँ से उड़ती हुई अंदर आई और चलते हुए पंखे से टकराकर फर्श पर गिर पड़ी। उसकी आंखें कभी बंद हो जाती कभी खुल जाती। मैंनें उस बेसुध चिड़िया को उठाया।उसे अपनी हथेली पर उल्टा लिटाकर पानी की एक-दो बूंद उसकी चोंच में डाली तथा दो-चार बूंदें उसके चेहरे पर छिड़का दी। उसने भी हरकत-सी की और आंखें खोल ली। मैंने दफ़्तर में पड़ी एक छोटी सी कौली में पानी भरा और चिड़िया की चोंच चार-पाँच बार पानी में डाली और बाहर निकाली ताकि वो पानी पी सके। हमारे में से किसी ने कहा, "इसके बचने की उम्मीद ही नहीं है। इन चिड़ियों का दिल इतना बड़ा कहाँ होता है?" पता नहीं क्यूं, सेवक ने उस चिड़िया की दोनों टांगों पर स्याही लगा दी। मैंनें उस चिड़िया का रिएक्शन देखने के लिये उसे दरवाजे के सामने पड़े एक टेबल पर रख दिया। चिड़िया नें पूर्ण रूप से अपनी दोनों आंखे खोल ली। इधर उधर देखने लगी। चार-पांच मिनट बाद वह चिड़ीया फुर्ती से उड़कर बाहर खुले आसमान में पता नहीं कहाँ चली गई। हम सभी ने भगवान का धन्यवाद किया।
हमनें एक पुराने से बर्तन में पानी डाला। दफ्तर के पास वाले वृक्ष की टहनी से उस बर्तन को रस्सी की सहायता से टाँग दिया,जहां पानी पीने के लिये पक्षियों का आना जाना शुरू हो गया। जिन्हें देखकर हमें आपार खुशी होती। आज भी उस सीन की याद आते ही मन सूकून से भर जाता है।
अगले दिन तकरीबन उसी समय हम फिर दफतर में ही बैठे थे कि पिछले दिन वाली घटना का जिक्र छिड़ गया। सेवक ने कहा,"गुरू जी,आपने उस चिड़िया की जान बचाकर पुन्न कमा लिया।" एक साथी ने कहा,"भगवान नें उसको नया जीवन बख़्श दिया।" दूसरा बोला,"चलो यार,कुछ भी हो,उस बिचारी की जान बच गई।"
इतने में एक चिड़िया, अचानक,बिना किसी डर के,आकर उसी टेबल पर बैठ गई जिस पर पिछले कल मैनें एक चिड़िया को रखा था। "ये तो कल वाली चिड़िया है",सेवक खुशी से झूम उठा। "मैंनें इसकी टांगों पर लगी स्याही से इसे पहचान लिया है"। पिछले कल मैने इसकी टांगों पर, वैसे ही,स्याही लगा दी थी। कुछ देर तक वह चीं-चीं, चीं-चीं करती रही, इधर उधर फुदकती रही फिर दुबारा कहीं उड़ गई। शायद, हम लोगों का धन्यवाद करने ही आई होगी......वह चिड़िया।
--एस.दयाल सिंह--
