**पुकार **
**पुकार **


जर्रा-जर्रा हिन्द की माटी, ऊँची-ऊँची कहे पुकार।
अंग संग रखो नानक बाणी,रोम रोम में देश प्यार।
जिस धरती से जुडी हुई है, अमर कहानी वीरों की।
जिस धरती की कोख़ से जन्मी, गाथा रांझे हीरों की।
जिस धरती पर पली बढ़ी है, बाणी संत फ़कीरों की।
जिस धरती से साँझ पड़ी है, गुरु गोबिंद के तीरों की।
उस धरती पर तांडव कर रही, बुच्च्ड़ खूनी तलवार।
अंग संग रखो नानक वाणी....।
जिस धरती ने ग़ैरों को भी, अपने गले लगाया है।
आदिकाल से दुनियां को, प्रेम का पाठ पढ़ाया है।
हमले का हमलावर ने, जिस पल बिगुल बजाया है।
अगले पल ही शूरवीरों नें, उसको मार भगाया है।
आज मची है उस धरती पर, अफ़रा तफ़री मारा मार।
अंग संग रखो नानक वाणी.....।
जिस धरती के नदियां पौधे, पत्थर पूजे जाते हैं।
पशु पंखेरू जिस धरती पर, मस्ती में इठलाते हैं।
जिस धरती के जंगल उपवन, जीवन को महकाते हैं।
सूरज चाँद सितारे जिसको, निस दिन शीश झुकाते हैं।
घोर मायूसी और लाचारी, हर चेहरा क्यूं है गमखार।
अंग संग रखो नानक वाणी......।
जहाँ पे मंगल तात्यां टोपे, टीपू जेहे सुलतान हुए।
बालमीक रविदास कबीरा, भीमराव विद्वान हुए।
रणजीत शिवाजी झांसी रानी, बिसन सिंह महान हुए।
राजगुरु सुखदेव सराभा, ऊधम भगत जवान हुए।
कांप उठी रूह उस धरती को, देखा करती चीख पुकार।
अंग संग रखो नानक वाणी....।
वतन मेरे के पहरेदारो, अपनी अनख पहचानों तुम।
क्या होते थे क्या तुम हो गए, कहाँ चले ये जानों तुम।
जिस विरसे के मालिक थे, उसको भी तो जानों तुम।
वतन-परस्ती गहना अपना, ऐसा मन में ठानों तुम।
तब ही अपने रंगले देश का, हो सकता है बेडा पार।
अंग संग रखो नानक वाणी, रोम रोम देश प्यार।