वड़वानल - 6

वड़वानल - 6

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कलकत्ता में वातावरण सुलग रहा था। दीवारें क्रान्ति का आह्वान करने वाले पोस्टरों से सजी थीं। ये पोस्टर्स नेताजी द्वारा किया गया आह्वान ही थे।

‘‘गुलामी का जीवन सबसे बड़ा अभिशाप है। अन्याय और असत्य से समझौता करना सबसे बड़ा अपराध है। यदि हमें कुछ पाना है तो कुछ देना भी पड़ेगा। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा।’’    

‘‘आज़ाद हिन्द सेना हिन्दुस्तान की दहलीज पर खड़ी है। उसका स्वागत करो। उससे हाथ मिलाओ!’’

कलकत्ता की दीवारों पर लगा हर पोस्टर मन में आग लगा रहा था। अनेक सैनिक इन पोस्टर्स से मन्त्रमुग्ध हो गए थे। अनेक सैनिक सोच रहे थे कि अपनी वर्दी उतार फेंकें और स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़ें। मगर पैरों में पड़ी बेड़ियाँ बहुत भारी थीं।

एक दिन सारी अनिश्चितता समाप्त हो गई। रात के आठ बजे ब्रिटिश नौसेना के एक लैंडिंग क्राफ्ट पर सबको भेजा गया।

‘आर्या, आर्या’ हुबली नदी से जहाज़ खींचने वाले कर्ष–पोत की आवाज खामोशी को तोड़ रही थी।

‘‘स्पीड फाइव।’’

‘‘पोर्ट टेन।’’

जहाज़ को डायमंड हार्बर तक ले जाने के लिए जहाज़ पर आया हुआ पायलट ऑर्डर दे रहा था। जहाज़ के पंखे ने ज़ोरदार आवाज करते हुए अपने पीछे पानी का एक बड़ा प्रवाह तैयार किया और जहाज़ कछुए की चाल से आगे बढ़ने लगा।

‘‘कहाँ जाने वाले हैं हम ? कितने दिनों का सफर है ?’’ चटर्जी गुरु से पूछ रहा था।

‘‘ईश्वर ही जाने! मगर एक बात सही है कि सफर लम्बा है।’’ गुरु

‘‘यह कैसे कह सकते हो ?’’

‘‘देखा नहीं, दोपहर को जहाज़ पर कितना अनाज चढ़ाया गया ? मीठे पानी के चार बार्ज पोर्ट की ओर और ईंधन के तीन बार्ज दूसरी ओर थे।’’

‘‘मुझे ऐसा लगता है कि हमें युद्धग्रस्त भाग में भेजने वाले हैं। और यह रणभूमि शायद बर्मा होगी!’’ दत्त अनुमान लगा रहा था। ‘‘सुबह जहाज़ पर बारूद, टैंक्स, तोप लगी जीप्स भी लादी गई हैं।’’

हुबली नदी पार करने के पश्चात् जहाज़ ने अपनी दिशा बदल दी। जहाज़ की दिशा को देखते ही सभी समझ गए कि जहाज़ बर्मा की ओर जा रहा है।

‘‘हमें बर्मा क्यों ले जा रहे हैं ?’’ मेस में बातें करते हुए यादव ने पूछा।

‘‘मेरा ख़याल है कि सरकार की ये एक चाल है।’’ गुरु समझाने लगा।

बर्मा में आजाद हिन्द सेना का ज़ोर है। वहाँ अगर उनके सामने हिन्दुस्तानी सैनिकों को खड़ा कर दिया जाए तो आज़ाद हिन्द सेना के सिपाही लड़ने से कतराएँगे।’’

आज़ाद हिन्द सेना का नाम सुनते ही दास के कान खड़े हो गए और वह बोलने के लिए तत्पर हुआ।

‘‘अरे बाबा, ऐसा होने को नई सकता’’ वो अपनी बंगाली हिन्दी में कह रहा था। ‘‘तोम को नाय मालूम परशो सुभाष बाबू बोला था हॉम हिन्दुस्तान की आजादी लेकॉर ही रहेंगे। अगर हमॉर रास्ता रोकने की किसी ने भी कोशिश की चाहे फिर ओ हिन्दुस्तानी ही क्यों न हो, उसे गद्दार समझकर हॉम हॉमारा रास्ते से हटा देंगे।’’

‘‘मतलब, इसमें ख़तरा भी है। समझो, अगर यहाँ से गए हुए सैनिकों को कोई आज़ाद हिन्दी मिल गया और...’’

यादव की कल्पना से गुरु रोमांचित हो गया। उसका दिल मानो जीवित हो उठा। मेस में आते हुए किसी के पैरों की आहट सुनाई दी और उसने विषय बदल दिया।

‘‘मेस में कितनी गरमी हो रही है! शायद बारिश होगी!’’

‘‘फिर अपर डेक पर जाकर बैठ।’’ यादव।

‘‘अरे वहाँ हमें कौन जाने देगा ? हमारे लिए तो वो Out of Bound है।”

‘‘अरे, बेशरमी से जाकर बैठ जाना। भगायेंगे तो नीचे आ जाना। कल रात को तो मैं अपर डेक पर सोया था...’’

‘‘और सब ले. रॉजर ने जब लात मारी तो इतना–सा मुँह लेकर नीचे आ गया।’’ दास ने फिसलकर हँसते हुए यादव का वाक्य पूरा किया।

और उसी दिन दोपहर को सारा आकाश काले बादलों से घिर गया जैसे असावधान शत्रु पर आक्रमण करने के लिए चारों ओर से असंख्य सैनिक इकट्ठा हो जाते हैं। बिजली ने रणभेरी बजाई और बारिश शुरू हो गई। बारिश जैसे हाथी की सूँड़ से गिर रही थी। दस फुट दूर की चीज भी दिखाई नहीं दे रही थी। जहाज़ करीब–करीब रुक ही गया था। बारिश की सहायता के लिए भूत जैसी चिंघाड़ती हवा भी आ गई। उस विशाल सागर में वह जहाज़ एक तुच्छ वस्तु के समान लहरों के थपेड़े खा रहा था। सारा सामान अपनी जगह से धड़ाधड़ नीचे गिर रहा था। जहाज़ के हिचकोले लेने से उल्टियाँ कर–करके आँतें खाली हो गई थीं और मुँह को आ गई थीं। पेट में मानो भारी सीसे का गोला घूम रहा था। पूरी मेस डेक उल्टियों से गन्दी हो गई थी।

‘‘ये सब कब खत्म होगा ?’’ मेस डेक में निढाल पड़ा रामन पूछ रहा था।

‘‘होगा। ख़त्म होगा। ये संकट भी ख़त्म हो जाएगा–––’’ गुरु

‘‘कब ? सब की बलि लेकर ? इससे तो मुकाबला भी नहीं कर सकते।’’ रामन कराहा।

‘यदि सारे सैनिक ब्रिटिशों के अत्याचारों से इसी तरह परेशान हो गए तो क्या वे ब्रिटिशों के विरुद्ध खड़े होंगे?’ उस परिस्थिति में भी गुरु के मन में आशा की किरण फूटी।

हवा के ज़ोर के आगे इंजन लाचार हो गया। जहाज़ हवा के साथ भटकने लगा। कैप्टेन ने परिस्थिति की गम्भीरता का मूल्यांकन करते हुए आगे के दो लंगरों के साथ शीट एंकर (बड़ा लंगर) भी पानी में डाल दिया। मगर जहाज़ स्थिर नहीं हो सका।

सात घंटे बाद हवा का तांडव खत्म हुआ और लोगों की जान में जान आई। ब्रिज पर अधिकारियों की भीड़ जमा हो गई। नक्शे फैलाए गए, तारों का अवलोकन किया गया, स्थान–दिशा निश्चित की गई और नये जोश से जहाज़ आगे चल पड़ा।

‘‘अपने सिरों पर लादकर हमने दूध के, फलों के, मटन के डिब्बे जहाज़ के स्टोर में पहुँचाए। मगर आज तक उनमें से एक भी चीज हमें नहीं मिली।’’

सूखे–सूखे फड़फड़े चावल पर रसम् डालते हुए यादव बड़बड़ाया।

‘‘अरे बाबा, वो सब गोरों के लिए हैं। तुम्हारे–हमारे लिए नाश्ते में बासी ब्रेड के टुकड़े और नेवी ब्रांड पनीली चाय। दोपहर को यह बॉयल्ड राइस का भात और इंडियन सूप अर्थात् रसम् और रात को फिर ब्रेड और कम आलू ज़्यादा पानी की सब्जी।’’ दास ने जवाब दिया।

‘‘गोरे लड़ने वाले हैं ना ? इसलिए उन्हें हर रोज मटन, फल–––’’ गुरु।

‘‘अरे तो क्या हम उनके कपड़ों की निगरानी करने वाले हैं ? मालूम है कि लड़ाई हो रही है, पंचपकवान नहीं माँगते, मगर खाने लायक और पेटभर खाना तो मिले!’’ यादव पुटपुटाया और गुस्से में उसने बेस्वाद खाने की थाली पोर्ट होल में खाली कर दी।

लगातार ग्यारह दिनों की सेलिंग! सभी उकता चुके थे, थक चुके थे, बेहाल हो चुके थे। सभी को ऐसा लग रहा था कि कब जमीन देखेंगे। मास्ट पर बैठा हुआ सागरपक्षी गुरु ने देखा और वह समझ गयाµजमीन निकट आ गई है।

जहाज़ पर उत्साह का वातावरण फैल गया।

अँधेरा घिर आया था। जहाज़ की गति कम हुई। धीरे–धीरे एक सौ अस्सी अंश घूमकर जहाज़ ने बन्दरगाह की ओर अपनी पीठ कर ली और पीछे की ओर सरकने लगा। जहाज़ स्थिर खड़ा हो गया। पिछला दरवाजा खोला गया। एक प्लेटफॉर्म बाहर निकला और हिन्दुस्तानी नौसैनिक लैंडिंग के लिए तैयार हो गए।

प्लेटफॉर्म जहाँ समाप्त हो रहा था, वहाँ दो फुट गहरा पानी था और किनारा बीस फुट दूर था। अपने सिर पर लदे बोझ को सँभालते, लड़खड़ाते हिन्दुस्तानी सैनिक किनारे पर पहुँचे। इसके बाद बड़ी देर तक जहाज़ से तम्बू, रसद, आवश्यक शस्त्रास्त्र, साधन आदि उतारे गए। सब काम समाप्त होते–होते रात के बारह बज गए। सारे लोग समुद्र के जल से पूरी तरह भीग चुके थे, चुभती हवा से बदन में कँपकँपी हो रही थी।

"Hey, you, notorious black chap, come here.'' गोरा अधिकारी रामन को बुला रहा था।

''Yes, sir.'' कँपकँपाते हुए रामन ने सैल्यूट मारा.

''Did You see me?''

''Yes, Sir.''

''Why You Failed to Salute Me?''

''Sir, I...''

''No arguments. Right turn, double march.''

और उस अँधेरे में बीस मिनट तक रामन दौड़ता रहा।

तीन मील गड्ढों वाले रास्ते पर दौड़ने के बाद प्लैटून कमाण्डर लीडिंग सीमन रॉय ने उसे रुकने का हुक्म दिया। रात वहीं गुजारनी थी।

तंबू लगाए गए। गुरु और दत्त ने सामान में से पोर्टेबल ट्रान्समीटर के उपकरण निकाले। ट्रान्समीटर और रिसीवर के खुले भाग जल्दी–जल्दी जोडना शुरू किया। टेलिस्कोपिक एरियल जोड़ी, बैटरी जोड़ी। माइक और मोर्स की जोड़कर ट्रान्समीटर तैयार किया। दत्त ने हेड क्वार्टर की काल साइन ट्रान्समिट करते हुए छह सौ किलो साइकल्स की फ्रिक्वेन्सी ट्यून की। गुरु ने उन्हें भेजने के लिए पहला सन्देश सांकेतिक भाषा में रूपान्तरित कर दिया।

आठ–दस बार हेडक्वार्टर की कॉल साइन ट्रान्समिट करने के बाद भी जवाब नहीं मिला, तब गुरु ने पूछा, ‘‘फ्रिक्वेन्सी तो ठीक–ठीक ट्यून की है ना ?’’

दत्त हँस पड़ा, ‘‘धीरज रख, सब कुछ सही है। जवाब आएगा अभी।’’ दत्त कुछ ज़ोर से ही मोर्स–की खड़खड़ाने लगा।

BNKG—DE—BNKG–I–BNKG—DE—BNKG–I...

और जवाब आया - BNKG—DE—BNKG–K–

दत्त   ने   सांकेतिक   भाषा   में   सन्देश भेजा:

 DE–BNKGI–LANDED SAFELY REQUEST INSTRUCTIONS–K.

दोनों  जवाब  का  इन्तजार  करने  लगे।  उन्हें  ज्यादा  देर  रुकना  नहीं  पड़ा।

जल्दी   ही   जवाब   आया

BNKG–I–DE–BNKG–WAIT FOR FURTHER INSTRUCTIONS COME UP AT 0600–K.

रात  के  तीन  बजे  थे।  सिर  पर  बोझ  उठाए  तीन मील  चलने  के  कारण  शरीर

थकान   से   चूर   हो   रहा   था।   जहाज़    से   बाहर   आए   तीन   घण्टे   हो   चुके   थे   फिर भी ऐसा लग रहा था कि अभी जहाज़  पर ही हैं।इंजन की आवाज दिमाग में घर कर गई थी।  कानों में वही आवाज गूँज रही थी।   थककर चूर हो चुके उन नौसैनिकों को तुरन्त नींद ने घेर लिया।

अभी  अँधेरा ही  था।  गुरु ने घड़ी देखी।  छह बजने में दस मिनट बाकी थे।  उसने जल्दी से दत्त को उठाया।  छह  बजे  हेडक्वार्टर  से  आगे  की  सूचनाएँ आने वाली थीं।  दत्त को उठाने गया गुरु उसकी ओर देखता ही रह गया।

‘‘अरे, ये तेरे चेहरे को  क्या  हो  गया ?’’ गुरु ने पूछा।

आँखें मलते हुए उठकर बैठे दत्त ने चेहरे पर हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ   है ?   शायद   कल   रात   को   किनारे   पर   आते   हुए   कीचड़   लगा   होगा।’’

‘‘कीचड़  नहीं  है।  पूरे  चेहरे  पर  चोंच  मारने  जैसे  निशान  हैं”।

‘‘और  तेरा  चेहरा भी वैसा ही हो गया है। ये बेशक मच्छरों की करामात है।’’ खुले हाथ पर बैठे मच्छर को मारते हुए दत्त ने कहा, ‘‘यहाँ के और सिलोन मच्छरों के बारे में अब तक   तो   सिर्फ   सुना   था।   आज   उनका   अनुभव   भी   ले   लिया।’’

दत्त ने ट्रान्समीटर ऊपर निकाला, जमीन पर रखा। और उसने भाँप लिया कि नीचे कीचड़ नहीं था, पर भरपूर सीलन थी। दत्त ने बिछाई हुई दरी उठाई और   देखता   ही   रह   गया।   दरी   पर   दीमक   लग   गई   थीं।

दत्त ने हेडक्वार्टर से सम्पर्क स्थापित किया और अगले कार्यक्रम के बारे में  सूचनाएँ  प्राप्त  की।  गुरु ने  रिसीवर ट्यून किया। आठ बजे उसे हेडक्वार्टर से संदेश लेना था।

हेडक्वार्टर की फ्रिक्वेन्सी ढूँते हुए उसे बीच में ही शुद्ध हिन्दुस्तानी में दी जा रही खबरें सुनाई दीं और वह उत्सुकता से सुनने लगा।


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