वड़वानल - 41

वड़वानल - 41

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''Marker fall in." चीफ चिल्लाया, आठ–दस सैनिक - सभी गोरे – दौड़कर आगे आए।

‘ये सब काले गए कहाँ ?  ये सारे मार्कर्स तो गोरे ही हैं।’  चीफ़ मन ही मन सोच रहा था। ‘साले,   कालों की डिवीजन के मार्कर्स नहीं हैं,   मतलब...’

''Marker from communication Branch.''

''Marker from seaman branch...''

चीफ़ पुकार रहा था मगर कोई भी आगे नहीं आया।

‘‘अबे, आज फॉलिन के लिए कोई भी नहीं आया। चल, हम भी खिसक लें।’’   सीमन ब्रान्च का एक सैनिक दूसरे से कह रहा था।

‘‘और अगर कोई पकड़ ले तो ?’’

‘‘अरे  अब  कौन  पकड़ने  वाला  है ?  हिम्मत  है  क्या  गोरों  की ?’’  और  वे  दोनों पीछे के पीछे लौट गए,   उनका अनुकरण अनेकों ने किया।

''Marker from Communicatain Branch... Any body from the Communicators. Come on, hurry up...'' चीफ़   चीखे जा रहा था।

मगर   कोई   भी   आगे   नहीं   आया।

''Markers attention...'' चिढ़े हुए चीफ ने मार्कर्स को ड्रेसिंग दी। अपनी–अपनी जगह पर खड़ा किया।

''At the order Carry on divisions will fall in on their respective markers.'' चीफ़ पलभर को रुका। उसने दायें-बायें देखा। हिन्दुस्तानी सैनिकों की संख्या बढ़ने के स्थान पर और भी कम हो गई थी। विवश होकर   उसने   अगला आदेश दिया, ''Carry on.''

रोज़  इस  आदेश  के  मिलते  ही  परेड  ग्राउण्ड  सैनिकों  की  भागदौड़  से  जीवित हो उठता।  आज  यह  भागदौड़  नहीं  थी।  गोरे  सैनिक,  हिन्दुस्तानी  पेट्टी  ऑफिसर्स और चीफ़ पेट्टी ऑफिसर्स को छोड़कर बाकी सारे हिन्दुस्तानी सैनिक बैरेक में वापस लौट गए थे।

रोज़मर्रा के रूटीन के अनुसार लाइन ड्रेसिंग हुई,    कॉलम ड्रेसिंग हुई। डिवीजन ऑफिसर्स ने अपनी–अपनी डिवीजन्स का निरीक्षण किया और वे कमाण्डर किंग की राह देखने लगे। 

 ''C.O. Talwar arriving, sir.'' किंग की स्टाफ कार के नज़र आते ही लुक आउट चिल्लाया।

'Very good !'' परेड कमाण्डर ले. कमाण्डर स्नो ने जवाब दिया।

''Parade attention.''

जैसे ही किंग की कार आकर रुकी L.P.M. दौड़कर आगे बढ़ा और उसने अदब से कार का दरवाजा खोला। किंग की हर भावभंगिमा में एक गुरूर था। उसकी हर हरकत यही प्रदर्शित करती थी कि वह इस बेस का सर्वेसर्वा है।

वह सैल्यूटिंग डायस पर खड़ा हो गया। उसने परेड पर नज़र डाली। ‘आज परेड ग्राउण्ड खाली क्यों है... इन ब्लडी इण्डियन्स को सबक सिखाना ही होगा। आज तक ऐसा नहीं हुआ था; फिर आज ही... इन कालों ने...’ सन्देह मात्र से ही वह बेचैन हो गया। परेड कमाण्डर द्वारा दिये गए सैल्यूट को उसने यन्त्रवत् स्वीकार   किया।

‘‘आज   सैनिक   कम   क्यों   हैं ?’’   किंग   का   सवाल।

परेड कमाण्डर के पास जवाब तैयार था। वह हर डिवीजन के सैनिकों की हाज़िरी,   गैरहाज़िरी के बारे   में बताने लगा।

''I don't want details. I want reasons. The real reasons. Why Indian ratings are absent.'' किंग की चीख–पुकार  साफ  सुनाई दे रही थी.

''Sir, I think...''

''I don't want your rough guess. Tell me the facts !'' किंग चीख रहा था। मगर स्नो गर्दन झुकाए चुपचाप खड़ा था। किंग समझ ही नहीं पा रहा था कि करना क्या चाहिए। उसे सोचने के लिए समय चाहिए था।

''Dismiss the Parade and get lost from here.'' किंग   स्नो   पर   बरसा।

दन्-दन् करते हुए किंग डायस से नीचे उतरा। उसकी हर गतिविधि से मन की बेचैनी झलक रही थी। किंग के मन का तूफान उमड़ने लगा, वह यह अन्दाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था कि असल में हुआ क्या   होगा।

''I shall **** the bastards.'' वह अपने आप से पुटपुटा रहा था। हिन्दुस्तानी सैनिकों के प्रति घृणा उसके चेहरे पर   साफ़ नज़र आ रही थी।

स्नो भी समझ नहीं पा रहा था कि करना क्या है। परेड डिसमिस करने का आदेश मिलने पर भी   वह परेड के सामने स्तब्ध खड़ा था। 

‘‘अरे,  तू सोच रहा था ना कि परेड के लिए नहीं गए इसलिए हमें रेग्यूलेटिंग ऑफिस में बुलाएँगे और सजा देंगे, मगर किंग ही साला परेड छोड़कर भाग गया और लेफ्ट. कमाण्डर स्नो पागल जैसा खड़ा है।’’  पाण्डे खुशी से सुमंगल सिंह से कह रहा था।

‘‘अरे,  आख़िर  में  जीत  हमारी  ही  होगी।  आज  तो  किंग  परेड  छोड़कर  भागा है। कल जब हमारा दबाव बढ़ेगा तो साला देश छोड़कर भाग जाएगा।’’ सुमंगल ने कहा।

‘‘भारत माता की जय ! वन्दे मातरम् !’’  दास नारे लगाता हुआ बैरेक में घुसा।

‘‘सारे जहाँ से अच्छा...’’ नारे लगाते हुए दास को देखकर यादव ने अपनी सुरीली आवाज में गाना शुरू  कर दिया और देखते–देखते पच्चीस–तीस सैनिकों ने उसकी आवाज़ में आवाज़ मिला दी।

‘‘हमें सतर्क रहना होगा। अंग्रेज़ शायद हम पर हमला करके हमें गिरफ्तार कर लेंगे और हमारा विद्रोह यहीं ख़त्म हो जाएगा। इस बात को ये लोग क्या नहीं समझते ?’’  दत्त ने पूछा।

‘‘महात्माजी पिछले कई सालों से उनके अपने मार्ग से स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जब अंग्रेज़ों ने उन्हें घास नहीं डाली तो हमारे बहिष्कार की वे क्या परवाह करेंगे ?’’   गुरु ने वास्तविकता सामने रखी। ‘‘शक्तिशाली अंग्रेज़ों से यदि टक्कर लेनी है तो हमें एक होना पड़ेगा।’’ मदन ने संघर्ष की दिशा बताई।

‘‘हमने चाहे No food, No work यह नारा दिया हो,  मगर खाने का प्रश्न महत्वपूर्ण नहीं है, प्रश्न है स्वतन्त्रता का; अंग्रेज़ों के यहाँ से जाने का। हम इसी के लिए संघर्ष करने वाले हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल कुछ लोगों ने हमारे बारे में यह कहा है कि हम ‘अंग्रेज़ों के फेंके हुए टुकड़े निगलकर परतन्त्रता की नींव मजबूत करने वाले हैं। इस कलंक को धोने का मौका हमें मिला है और हमें उसका लाभ उठाना चाहिए।’’  खान ने कहा।

‘‘भले ही हमने हड़ताल कर दी हो, No food, No work  का नारा दिया हो, परेड के लिए फ़ॉलिन न हुए हों, मगर फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम आख़िरकार सैनिक हैं। हमें अनुशासित रहना ही होगा। लड़ाई कोई भी हो, चाहे वह स्वतन्त्रता–संग्राम ही क्यों न हो, फिर भी सैनिकों को अनुशासित रहना   चाहिए।हमें   यह   बात   उन्हें   समझानी   होगी।’’ 

दत्त   का   सुझाव   दास,   गुरु,   यादव,   मदन   और   खान   को   पसन्द   आ   गया और   वे   सैनिकों   को   इकट्ठा   करने   के   लिए   बैरेक–बैरेक   घूमने   लगे।

‘‘दिल्ली की हवाईदल की दो यूनिट्स में हुआ विद्रोह और इसके दो ही दिन बाद ‘तलवार’ के सैनिकों का यह अनुशासनहीन व्यवहार––– कहीं षड्यन्त्र तो  नहीं ?’  परेड ग्राउण्ड से बेचैन मन से लौटा किंग सोच रहा था।  ‘परसों हवाई दल में हुआ, आज नौसेना में, कल भूदल में... क्रमानुसार...फिर से एक बार 1857….बेसुध सैनिक,     गोरों के निरंकुश बर्ताव का हिन्दुस्तानी सैनिकों द्वारा गोरे अधिकारियों, उनकी मैडमों और बच्चों पर गोलीबारी करके  लिया गया बदला... शायद इस समय भी वैसा ही...’’  विद्रोह की यादों से वह सिहर गया। ‘ख़तरा मोल लेने का   कोई मतलब नहीं,   रॉटरे को सूचित करना ही होगा।’

ड्राइवर की राह न देखकर वह खुद ही गाड़ी चलाने लगा और तूफ़ानी गति से उसने स्टाफ कार ‘तलवार’  से बाहर  निकाली।  ट्रैफिक  की  परवाह  न  करते हुए वह फ्लैग ऑफिस बॉम्बे के कार्यालय की ओर निकला।

‘कल तो सब कुछ शान्त था, फिर अचानक… ये सब कैसे टपक पड़ा ? रॉटरे से क्या कहना है ? खाने की वजह से… रिक्वेस्ट्स की वजह से…. या कोई और कारण ?’   उसने कसकर कार को ब्रेक लगाया।   ‘सामने   से   आ   रहा   ट्रक...थोड़े में ही बचा वरना... ?’’ सिर्फ इस ख़याल से ही उसके पसीने छूटने लगे। ‘अब विचार नहीं करना है।’ उसने निश्चय किया।

‘ग़लती ही हो गई मुझसे ! दत्त को छोड़ना नहीं चाहिए था और रिक्वेस्ट्स लेकर आए हुए सैनिकों को सलाखों के पीछे कर देना था। बहुत बड़ी ग़लती हो गई––– रॉटरे क्या कहेगा ? परिस्थिति का सामना करना ही होगा।’ ज़िद्दी मन घटित हुई घटनाओं से बाहर आने को तैयार ही नहीं था। विचार–चक्र घूम ही रहा था।

‘’हिन्दुस्तानी सैनिक बेचैन हैं। उन्हें दिया जा रहा खाना,  उनका वेतन,  उन्हें दी जा रही सहूलियतें और उनके   साथ किया जा रहा सौतेला बर्ताव - ये सब सतही कारण हैं। उन्होंने भूमिगत क्रान्तिकारियों से सम्पर्क स्थापित     कर लिया है। कम्युनिस्टों जैसे ख़तरनाक पक्ष का समर्थन उन्हें प्राप्त है। हवाईदल और नौदल इन दोनों सैनिक शाखाओं में विद्रोह होने की सम्भावना प्रबल है जब ऐसी सूचना सभी कमांडिंग ऑफिसर्स को दी गई थी, तो फिर भी तुमने सैनिकों को गालियाँ दीं, जो जी में आया वह कह डाला; दत्त का इतिहास मालूम होते हुए भी तुमन उसे सेल में न रखते हुए बैरेक में...।’’

‘‘सर, मेरा ख़याल था कि दत्त पर नज़र रखकर उसके साथियों को पकड़ सकूँगा।’’ पूरा घटनाक्रम सुनने के बाद क्रोधित हुए रॉटरे को बीच ही में ही रोककर किंग अपनी सफ़ाई पेश करने लगा।

''Shut up ! मुझे तुम्हारी सफ़ाई नहीं चाहिए।’’  रॉटरे को और ज़्यादा गुस्सा आ गया, ‘‘वे रिक्वेस्ट्स तुम्हें मेरे पास फौरन भेज देनी चाहिए थी। एकाध छोटा सा मेमो देकर मैं उनका समाधान कर देता। वर्तमान परिस्थिति में यही सबसे ज़रूरी था। आज जब सारी परिस्थिति हाथ से निकल चुकी है तब मेरे पास आए हो। मेरा ख़याल है कि अब तुम्हारी मदद करना मुश्किल है।’’ रॉटरे के दिमाग़ में गुस्सा भर गया था। वह क्रोध से लाल हो रहा था। बोलते–बोलते उसने किंग की ओर पीठ फेर ली और गुस्साए सुर में बोला,  ‘‘इस समय दस बजे हैं,  मैं तुम्हें दो घण्टे की मोहलत देता हूँ। यदि बारह बजे तक सैनिकों को शान्त करके परिस्थिति सामान्य न कर सके तो मुझे तुम पर कार्रवाई करनी पड़ेगी। समझ में आया ?   Now get lost from here.''

रॉटरे की धमकी से किंग का चेहरा एकदम उतर गया था। वह  बहुत घबरा गया था।

‘‘बशीर... बशीर।’’  अपने  चेम्बर  में  घुसते  हुए  वह  चीखा।  रोज  सुबह  गहमागहमी वाली   उस   इमारत   में   आज   वीरानी   थी।

‘‘बशीऽर...।’’   उसने   फिर   पुकारा   मगर   जवाब   नहीं   आया।

''Bastard, शायद यह भी उनमें शामिल हो गया है।’’    वह बशीर को गालियाँ देते हुए बुदबुदाया।

किंग की चिल्ला–चोट सुनकर ऑफ़िसर ऑफ दि डे स. लेफ्टि.  कोहली भागकर उसके चेम्बर में आया।

‘‘आज   सुबह   बेस   पर   क्या   कोई   खास   बात   हुई   थी ?’’

‘‘नहीं  सर।’’

‘‘फिर   ये   लपटें   एकदम   कैसी   उठीं ?’’

‘‘कल   रात   को   और   आज   सुबह   मेस   में   कुछ...’’

‘‘कल   ऑफिसर   ऑफ   दि   डे   कौन   था ?’’

‘‘स. लेफ्टि.  रॉड्रिक्स।’’

‘‘उसे फ़ौरन मेरे सामने पेश करो।’’

किंग ने कोहली से कहा और भागदौड़ शुरू हो गई। दो ही चार मिनटों में रॉड्रिक्स किंग के सामने हाज़िर हो गया।

‘‘कल मेस में जो कुछ हुआ उसकी सूचना मुझे क्यों नहीं दी ?’’  किंग रॉड्रिक्स पर बरसा।

‘‘मुझे आपका इतवार नहीं खराब करना था, सर; सैनिकों की खाने के बारे में शिकायत, इस बात को लेकर उनका दिमाग गरम हो जाना - ये सब हमेशा की ही समस्या है,  इसलिए मुझे वह महत्त्वपूर्ण नहीं लगा।’’  रॉड्रिक्स ने जवाब दिया।

''You, bloody idiot, I am captain of the ship. who are you to decide?' किंग चीख रहा था। ‘‘मेरा इतवार बचाया, मगर मेरा भविष्य बरबाद करने का वक्त ले आया, now get lost from here.'' उसने रॉड्रिक्स को करीब–करीब भगा दिया।

किंग ने घड़ी की ओर देखा। साढ़े दस बज रहे थे। मुट्ठी में बन्द बालू की तरह समय हाथ से   फिसल रहा था। ‘कुछ   करना   चाहिए।   ये   सब   टंटा   मिटाना ही होगा, वरना मेरा भविष्य...’ उससे यह कल्पना बर्दाश्त ही नहीं हो रही थी।

‘ये टंटा मिटाऊँ तो कैसे ?’ वह समझ ही नहीं पा रहा था। उसने पाइप सुलगाया।

‘इस परिस्थिति में कौन मेरी सहायता करेगा ?  ये लपटें कौन बुझा सकेगा ?’ उसका विचार–चक्र घूम ही रहा था।

उसकी आँखों के सामने से एक–एक नाम सरक रहा था और थोड़ा विचार करने के बाद वह उस नाम को खारिज भी कर देता था। सारे अंग्रेज़ अधिकारियों के नाम उसने खारिज कर दिये।

‘यदि कोई ऐसा है जो कुछ कर पायेगा तो वो हिन्दुस्तानी अधिकारी ही हैं,’ उसने स्वयं से कहा। ‘नन्दा, कोहली’ इन दोनों नामों पर वह थोड़ा–सा रुका ये दो हिन्दुस्तानी अधिकारी वैसे तो सैनिकों में प्रिय नहीं थे,    मगर पत्थर के मुकाबले ईंट कुछ नरम ही होती है।

‘दोनों हिन्दुस्तानी हैं, गद्दार तो नहीं हो जाएँगे ?’   मन में सन्देह उठा। ‘जिसके मन में फिसलने का डर होता है उसे हर पत्थर चिकना ही प्रतीत होता है। शायद आज की गद्दारी कल का विशेष गुण साबित हो।’

‘कहीं मैं इन हिन्दुस्तानी अधिकारियों को उनका श्रेष्ठत्व सिद्ध करने का मौका तो नहीं दे रहा ?’   मन के सन्देह   ने फिर फन उठाया।

‘यदि मैं ही सैनिकों के पास जाऊँ तो ?’ इस विचार को उसने तिलचट्टे के समान झटक दिया। ‘मैं... जाऊँ... उनके पास ...मैं, सम्राज्ञी का प्रतिनिधि, और गुलामों के पास जाऊँ ?  ये तो रानी का अपमान होगा !’  विचार–चक्र उलटा–सीधा   घूम   रहा   था।

''Good morning, sir !'' नन्दा ने चेम्बर में प्रवेश करते हुए कहा।

''what's good in this bloody morning ?'' किंग गरजा।

‘‘चिन्ता न करें, सर, आपको जो भी मदद चाहिए वो करने के लिए हम तैयार हैं। साम्राज्य के ऊपर आए संकट को हम अपने ऊपर आया संकट मानते हैं। हमने साम्राज्य का नमक खाया है। उस नमक का कर्ज़ हम चुकाएँगे !’’ नन्दा के इस जवाब से किंग कुछ आश्वस्त हुआ।

किंग ने नन्दा और कोहली को उनके काम के बारे में समझाया।

‘‘सर, यदि हम इन सैनिकों की मिन्नत करें तो... यदि आसानी से उनकी माँगें मान लें तो...’’   कोहली   ने शंका व्यक्त की।

‘‘मैं  समझ  रहा  हूँ; मगर  अब  इस  परिस्थिति  में  उन्हें  शान्त  करना  आवश्यक है। वे एक  बार  शान्त  हो  जाएँ  तो  फिर  उन्हें  कैसे  सीधा  किया  जाए  यह  बाद में देखेंगे !’’   किंग   ने   एक   कदम   पीछे   हटने   का   कारण   समझाया।


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