वैद्यराज
वैद्यराज
लालमन वैद्य की ख्याति बहुत दुर दुर तक फैली हुयी थी। उनके यहाँ का दृश्य देखकर ही अंदाजा लगता था कि वाकई अभी संसार में दुखियों की कोई कमी नहीं। मुंह अँधेरे से ही उनके यहाँ मरीजों की कतार लगनी शुरू हो जाती थी।
रोज की तरह वैद्यजी मरीजों को देखकर उन्हें दवाइयां खाने की विधि समझा रहे थे। अभी कुछ मरीज अपनी बारी के इंतजार में थे कि तभी उनकी श्रीमतीजी कुछ घबरायी सी आयीं और लालमन जी से बोलीं ” अजी सुनते हो ! बहू की तबीयत और ख़राब होते जा रही है। उलटी रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। मुझे तो चिंता होने लगी है। ”
दवाई की पुड़िया मरीज को देते हुए वैद्यजी ने श्रीमती जी की ओर देखा और बोले ”तुम गाड़ी लेकर बहू को शहर के सरकारी अस्पताल में ले चलो। मैं बस थोड़ी ही देर में इन मरीजों को निबटाकर आता हूँ। जल्दी करो देर ना करो। ”
श्रीमतीजी चली गयीं और लोगों के कानों में वैद्यजी के शब्द बड़ी देर तक गूंजते रहे ‘ तुम गाड़ी लेकर बहू को शहर के सरकारी अस्पताल में ले चलो….!
