वास्तविक परीक्षा
वास्तविक परीक्षा
बात तब की है जब मैं ग्यारहवीं कक्षा का छात्र था और रोज की तरह मैं उस दिन भी विद्यालय गया था। पहली दो क्लास लगाने के बाद जब तीसरी क्लास शुरु ही होने वाली थी अचानक मेरी नजर एक नोट पर गयी जोकि एक बेंच के नीचे पड़ा था। मैं किसी से पुछ पाता कि ये नोट किसका है इतने में अध्यापक ने क्लास मे प्रवेश ले लिया और मैं बिना कुछ कहे अपनी जगह पर बैठ गया। अध्यापक ने रोजाना की तरह पढ़ाना शुरु कर दिया पर मेरे दिमाग में खिचड़ी बनना शुरू हो गया था। क्लास समाप्त होने के बाद सबसे पूछना सही रहेगा कि ये नोट किसका है या बिना किसी को बताये आपने पास रख लूं, ये सब चल ही रहा था कि दिमाग में एक और बात शुरु हो गयी, कि एक सौ रूपये से मैं क्या कर सकता हुँ? जैसे मैं अपने मोबाइल का रिचार्ज करवा सकता हूं, मेरा पसंदीदा बर्गर खा सकता हूँ, वो भी तीन। ऐसे ही बहुत से विचार आये जैसे आमतौर पर आते ही है सबको, पर इन सब से परे एक दिल की आवाज की नही शिवम, तू पैसे नही रख सकता ये तेरे नही है, ये सब चल ही रहा था और समय कब निकल गया पता ही ना चला। क्लास खत्म होने के बाद अध्यापक क्लास से बाहर गये। मैंने भी किताब अपनी किट में डाली और सबके सामने आया मैं पूछने वाला ही था कि ये सौ का नोट किसका है, इतने में एक लड़की की आवाज आयी शिवम मेरी बात सुनना, मैं चला गया उस लड़की के पास उसने सीधे मुझसे पूछा, कि शिवम मेरा सौ का नोट कहीं पर गिर गया है, क्या तुम्हें मिला है क्या? मेरा जवाब हां में निकला और मैने मेरी जेब में सौ का नोट निकाल कर उस लड़की को दे दिया, उसका धन्यवाद सुनकर खुशी मिली। अब अगली क्लास लेने वाले शिक्षक आ गये थे। मैं भी पढ़ने में खो गया। छुट्टी होने पर घर आ गया और रात को नींद भी अच्छी आयी और वो दिन खत्म हो गया। चार दिन बाद जब मैं स्कूल से घर आकर खाना खाकर काम के लिए निकला।
मैं एक दुकान पर काम करता था, वहां पर किसी के घर सामान देने जाना था। मैं अपनी साईकिल से उनके घर पर जाकर दरवाजा खटकटाया और आवाज लगायी वो आकर सामान लिया और मुझे सामान के पैसे देने लगे उनके पास खुले पैसे ना थे तब मैंने अपना बटुवा निकाला और पैसे देने घर के अंदर गया। जल्दबाजी में मेरा बटुवा साईकिल पर ही रह गया और अंदर से बाहर आने तक कम से कम मुझे दो मिनट का समय लगा और बाहर आते ही मैंने अपना बटुवा एक भिखारी के पास देखा जो उस को लेकर मेरा इन्तजार कर रहा था, कि कोई बाहर आये तो मैं उसको वो बटुवा दे दूं।
उस ने मुझे बटुवा दिया और चला गया मैंने पैसे भी नही गिने थे क्योंकि अगर उसकी नियत मे खोट होता तो वो मुझको बटुवा ही क्यों देता। मैंने बटुवा जेब में रखा और चल दिया। वो जिस घर के पास मिले थे उस घर के बाहर दो रास्ते जाते थे और दोनो बिल्कुल ही सीधे मुझे समझ नही आ रहा था कि कोई पल छपकते ही आंखों से ओझल कैसे हो सकता है, मेरे बहुत ढूंढने के बाद भी वो ना मिले, अंत में, मैं दुकान पर वापस आ गया।
कहानी यहां पर समाप्त हुई पर जो मुझे इससे अनुभव मिला वो बहुत उम्दा! आगे देखिय क्या हुआ,
मेरा अनुभव
ठीक उसी रात खाना खाकर जब मैं सोने के लिए गया मुझे नींद नही आ रही थी। दिमाग में वो आज वाली बात चल रही थी कि क्यों जो भिखारी सब से एक एक रुपये मांगता है उस ने मेरे बटुवा क्यों नही ले गया, जिसमें चार सौ से लेकर पाँच सौ रुपए थे! क्या कारण हो सकता है? इसका दुसरा फिर वो अचानक से गायब कहां हो गये? और वो लड़की ने सीधा मुझसे ही क्यों पूछा, कि शिवम क्या रूपये तुम्हें मिले? जबकि उसको सबसे पूछना चाहिये था पूरी कक्षा से मेरे पैसे गिरे, क्या किसी को मिले हैं क्या?
कुछ तो बात थी इन दोनो घटनाओं के बीच। मुझे उस दिन अनुभव हुआ कि जैसे ईश्वर ने मेरी परीक्षा ली हो और मैं इसमे पास हो गया हुँ और उसका ही फल था, कि आज मेरे चार पाँच सौ रूपये मुझे मिल गये थे, और ये बात सौ फीसदी सच होती मुझे ऐसा लगता कि अगर मै उसके एक सौ रूपये रख लेता तो आज उसका भुगतान मुझे चार पाँच सौ रूपये से करना होता और जो भिखारी था वो भी मुझे भगवान का ही रूप लगे। मुझे बटुवा देकर पलभर में ही गायब हो गये और मुझे बहुत कुछ सिखा गये, कि मेहनत की कमाई कोई लेकर जा नही सकता अगर हम किसी के हक की कमाई नही रखते तो हमारी मेहनत की पूंजी भी कोई नही ले सकता। जैसा करोगे वैसा ही तुम्हारे साथ होगा। दोस्तो! हमेशा ही समाज की बातें ही मत सुनते रहा करो कुछ अपनी जिन्दगी से भी अनुभव लेना सीखिए और याद रखिए अगर हमने किसी का बुरा नही किया तो हमारा कैसे हो सकता है। समाज और दिमाग दोनो गलत रास्ते पर लेकर जा सकते है पर दिल हमेशा आपको वो रास्ता दिखायेगा जो आपके लिए सही होगा। इसलिए हमेशा दिल की सुने अब कुछ लोग इस कहानी अपने ढंग से अपने अपने नजरिये से देखेंगे और कुछ लोग इससे सीख भी लेंगे।
पर मुझे आज भी वह भिखारी ईश्वर का ही रूप लगा और उन्होंने मेरा छोटा सा इम्तिहान लिया था और मैं उसमे पास हुआ।।