Deepak Dixit

Drama

3  

Deepak Dixit

Drama

ऊपर की कमाई

ऊपर की कमाई

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बीयर की चुस्कियों के साथ मैं और राजेश अपने मनपसंद रेस्टोरेंट में टाइम पास कर रहे थे क्योंकि हमारी फ्लाइट तीन घंटे देरी से जाने वाली थी। काफी दिनों से मैं ऐसे ही किसी मौके की तलाश में था जहाँ एक दोस्त की हैसियत से उसे सही समझाइश दे सकूं। यूं तो राजेश का घर मेरे घर के पास ही था और उसके यहाँ मेरा खूब आना जाना था पर न तो उसकी पत्नी सुधा और न ही अपनी पत्नी के सामने ये सब बातें करना चाहता था।

 "राजेश, क्या तुम्हें अंदाज़ा है की लोग तुम्हें और रीता को लेकर क्या क्या बातें कर रहे हैं आजकल?"

"भाई तू लोगों की छोड़ , अपनी बात कर ", उसने सुनते ही कहा।

"तो ऐसे ही सुन फिर दोस्त। तेरी अच्छी खासी गृहस्थी है और इतनी अच्छी जीवन संगिनी मिली है, क्यों कांटे बो रहा है खुद ही अपने हाथ से ? 

माहौल अब गंभीर हो चुका था। राजेश समझ गया था कि मैं उसके और उसकी पड़ोसन रीता के साथ चल रहे उसके प्रेम प्रसंग के मुद्दे को एक भला चाहने वाले दोस्त कि हैसियत से कुरेद रहा था और आसानी से हार मानने वाला नहीं था। राजेश मेरा बचपन का लंगोटिया यार था और हम लोग हर तरह कि बातें एक दूसरे से कर के हलके हो लिया करते थे। 

उसने एक दार्शनिक अंदाज में भूमिका बनाते हुए कहा," यार , तुझे तो मालूम ही है सुधा से मेरी शादी किन हालातों में हुयी है। ये एक तरह का समझौता ही था, न ही इसमें को प्रेम प्रसंग था और ना ही भावनाओं का कोई ज्वार। फिर उन दिनों मेरे आर्थिक हालत बेहद ख़राब थे और पूरा का पूरा दिन ही झुंझलाहट में बीत जाता था। सुधा ने आकर घर को बड़े अच्छे ढंग से संभाल लिया और फिर हमारे दिन भी पलट गए। सुधा से मुझे आज कोई शिकायत भी नहीं है। पर जब से रीता हमारे पड़ोस में रहने आयी है उसे देखते ही न जाने मुझे क्या हो जाता है। यूं तो हमारी और भी पड़ोसन है और सुधा की भी कितनी ही सहेलियों के साथ मेरी बातचीत होती रहती है पर रीता के साथ कुछ अलग ही बात है। लगता है हमारी फ्रीक्वेंसी मैच हो गयी है। उसके साथ रहना , उससे बातें करना मुझे बेहद अच्छा लगता है। उसके बारे में सोचने भर से ही कई बोतलों का नशा हो जाता है।

“पर आखिर आखिर जो सुख तू रीता में ढूंढ रहा है वह भाभी में क्यों नहीं ढूंढ सकता, मेरे भाई?”, मैंने कहा

"यार, तनख्वाह में वो मजा कहाँ जो ऊपर कि कमाई में है। जो मजा रंगबिरंगी पत्रिकाओं को पढ़ने में है वह स्लैबस कि बोरिंग किताबों में कहाँ? फिर सुधा तो उसे अपनी बहन मानती है तो मुझे लगता है इस हिसाब से वह मेरी साली हुयी और साली तो आधी घरवाली होती है न?"

मुझे उसके पक्ष में भी कुछ सच्चाई नज़र आ रही थी पर फिर भी अपनी तरफ से उसे आगाह करना मेरा फ़र्ज़ था एक अच्छा दोस्त होने के नाते। मैंने कहा," भाई मैंने बहुत से घरों को जरा सी बेवकूफी से बर्बाद होते देखा है , तू भी संभाल जा , वक्त रहते। किसी शायर ने कहा है - वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुश्किल, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर भूलना अच्छा…..।”

इस पर उसने कहा, “सबको एक ही तो जिंदगी मिलती है दोस्त। क्यों न उसे अपनी खुशी से जीयें ?”

अब मुझे लगने लगा था कि मैंने तो अपना काम ईमानदारी से कर दिया अब आगे इस आदमी कि हरकतों के ऊपर है कि अपनी जिन्दगी को किस मोड़ पर ले जाना चाहता है। पर सुधा भाभी पर मुझे बड़ी दया आ रही थी। बेचारी बेहद अच्छी और सीधी साधी औरत थीं और एक ऐसी इंसान जो हमेशा सबका भला ही सोचता हो और अपने परिवार को स्वर्ग बनाने में जिंदगी खपा देता हो। पर वह नहीं जानती थी की मेरे दोस्त राजेश के दिमाग में क्या खिचड़ी पक रही थी। मुझे लगा जैसे एक निरीह बकरी एक कसाई के हाथों कटने जा रही थी और वह पागल उस कसाई को ही अपना सर्वेसर्वा मालिक मानती हो। या फिर जैसे कोई बेखबर और भोली जनता किसी अधिकारी या मंत्री के पास अपनी छोटी बड़ी फरियाद ले कर जा रही हो और उस अधिकारी/नेता को रिश्वत लेने के सिवा कुछ सूझता ही न हो। मन ही मन राजेश के परिवार में होने वाली किसी अनहोनी की कल्पना से मैं डरने लगा, पर ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था।

इस बात को कई दिन बीत गए और मैं व्यावसायिक व्यस्तताओं के चलते राजेश से मिल न सका। एक दिन जब फुर्सत मिली तो उसके घर पर जा पहुंचा बतियाने। दोनों पति पत्नी सहज और खुश लग रहे थे। बातों बातों में रीता का जिक्र आया तो सुधा भाभी बोलीं," भाई साहब नाम न लो उस औरत का। उसने हमारे साथ बड़ा धोखा किया। अब हमारे साथ उनके कोई सम्बन्ध नहीं हैं। आगे की बातों से समझ आया कि दोनों सहेलियों (सुधा भाभी और रीता) में किसी छोटी सी बात को लेकर मनमुटाव हो गया था और दोनों ने आपस में बोल चाल बंद कर दी थी। 

उस दिन के बाद राजेश और रीता को लेकर कहे जाने वाले किस्से भी सुनायी देना धीरे-धीरे बंद हो गए। मैंने जब पूरी बात का विश्लेषण किया तो समझ में आया कि सुधा भाभी इतनी भी अबला और निरीह नहीं थी। वो तो अब तक सब जानते हुए भी सह रही थी इस देश की जनता की तरह पर साथ ही अपनी किसी लुहार की सी चाल चलने की तैयारी कर रही थीं राजेश की सुनारों वाली सौ चालों के जवाब में। और फिर उन्होंने वह चाल चल दी। अपने पर रीता के बीच में बिना बात का झगड़ा करा कर उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि न तो रीता का उसके घर में आना हो सके और न ही राजेश का वहां जाना। किसी ने खूब कहा है,'आदमी के शरीर में लाखों नाड़ी होती हैं पर सिर्फ उसकी बीबी ही जानती है कि कब कौन सी नस कितनी देर तक दबाना है।"


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