उमंग की विषम रात
उमंग की विषम रात


श्यामा देवी धीमें कदमों से अपने सबसे लाड़ले और छोटे बेटे के कमरे की ओर आते हुए ऊँचे स्वर में कहतीं हैं, उठ बेटा, उठ जा देख तेरे दोनों भाई ऑफिस चले गये, साढ़े आठ बजने वाले हैं, सूरज भी कितना ऊपर चढ़ आया है, और कितना सोयेगा, उमंग बेटा उठ जा। माँ की आवाज सुनकर हम्म हाँ ..करके उमंग फिर नींद की चादर ओढ़ लेता है। श्यामा देवी बेटे के सिराने आकर बैठ जाती हैं और अपने कन्हैया की नींद तोड़ने का सुख लेती हैं।
उमंग के सिर पर हाथ फेरते हुए – उठ बेटा वरना दीप्ति बहू आती होगी तुझे तो वही जगा पाती है। प्रतिदिन उमंग के कमल रुपी नयन तो माँ के आँचल में ही खिलते हैं। अरे मम्मी छोटी भाभी को क्यों भेजती हो वो ..वो तो बिना कुछ बोले-कहे अपना ब्रह्मास्त्र चला देती हैं, जब भी जगाने आती हैं, गिलास में पानी लायेंगी और पूरा उड़ेल देती हैं मुझ पर, न चाहते हुए भी ये सोने का बिस्तर छोड़ना ही पड़ता है। बड़ी भाभी अच्छी हैं वो सिर्फ़ दो चार आवाजे देती हैं और चली जाती हैं, लेकिन आज बड़ी भाभी मुझे जगाने नहीं आयीं ? श्यामा देवी – हाँ.. शिखा कुछ काम में लग गयी होगी।
मम्मी जी ये क्या आज तो तुम्हारे लल्ला पहले ही जाग गये और मेरा ब्रह्मास्त्र तो बेकार ही चला जायेगा दीप्ति ने कमरे में प्रवेश कर चुटकी लेते हुए कहा। ये इतना नौटंकीबाज हो गया है, इतनी देर से जगा रही हूँ पर उठता ही नहीं तू अपना अस्त्र चला ही दे बहू - श्यामा देवी ने विनोद भाव से कहा। दीप्ति अपनी सासू माँ के पास बैठकर उमंग से कहती है – देवर जी सुबह जल्दी उठना सीखो और मंदिर जाया करो। जब मम्मी जी तुम्हें जगाने आतीं हैं तब तक पापा जी हम सबको दो-चार सुना चुके होते हैं। आज शिखा दीदी से कह रहे थे कि तुम तीनों के लाड़-प्यार ने आदतें बिगाड़ दी हैं।
उमंग अंगड़ाईयाँ लेते हुए – मेरी प्यारी नटखट भाभी ये कोई पहली बार थोड़ी कहा है, पापा तो हर रोज कहते हैं , क्या करूँ सुबह जल्दी उठकर ? कौन सा मुझे कॉलेज जाना है या फिर ऑफिस ? ग्रेजुएशन किये हुए एक साल हो गया मुझे, अगर काम करने का जिक्र भी करता हूँ तो आप सब नाराज हो जाते हैं, और बात रही मंदिर जाने की हर सुबह मम्मी, बड़ी भाभी और तुम्हारे दर्शन ही सभी देवियों के दर्शन हैं मेरे लिए, स्वदीप भैया तो साक्षात् राम हैं और दीपक भैया लक्ष्मण। जब सारे देव और देवियाँ घर में ही वास करते हैं तो मैं कस्तूरी मृग बन बाहर क्यूँ भटकूँ।
हाँ जानती हूँ तुमसे बातों में कौन जीतेगा देवर जी, अब बिस्तर का त्याग करो और नाश्ता करलो।उमंग बिस्तर छोड़ देता है माँ और भाभी के साथ दैनिक कार्य में व्यस्त हो जाता है।
इस प्रकार से उमंग की हर सुबह की शुरुआत अपनी माँ और भाभियों के दर्शन से होती है इस मनोहर दृश्य को देखने के लिए सूर्य देवता भी अपने उज्ज्वल नेत्रों को उमंग की खिड़की पर प्रतिदिन रख दिया करते हैं। और रखे भी क्यों न ! वर्ण में राम और चंचलता में कृष्ण है उमंग। श्यामा देवी की आँखों की रौशनी, भाईयों, और भाभियों के लिए खिलौना और पिता सत्यप्रकाश के चेहरे की रौनक है उमंग। कर्म से अध्यापक रह चुके सत्यप्रकाश स्वभाव से विनयशील हैं। श्यामा देवी की ममता और सत्यप्रकाश के संस्कारों ने पूरे परिवार को एकता की अटूट गांठ से बांध रखा है। स्वर्ग है स्वर्ग है ..सत्यप्रकाश जी आपने अपने घर को साक्षात् स्वर्ग बनाया है, उठने बैठने वालों से प्राय: ऐसे शब्द सुनने को मिल जाते हैं। इस मशीनी युग में भी संस्कृति और रीतिरिवाजों की गांठ ढ़ीली नही होने दी है। पड़ोसियों के लिए किसी कहानी के पात्र जैसे ही हैं इस घर के सदस्य। उमंग के स्वभाव से पूरा मोहल्ला परिचित है जब बोलता है तो ख़ुशियों के फूल खिलते हैं, इक्कीस वर्ष का होकर भी जब बच्चों में मिल जाये तो ख़ुद को भूल ही जाता है। उसकी हंसी – ठिठोली करुण रस के होठों पर भी खिलखिलाहठ उत्पन्न कर दे। समय का चक्र दिन-मास को हर्ष विनोद से अपने साथ धीमी गति से लिए जा रहा था।
प्रकाश को अंधेरे में बंदकर निशा को कर्तव्यों की चाबी देकर सूर्य देवता अपने शयन गृह पश्चिम दिशा में प्रवेश कर चुके हैं। सभी को सुख देने वाला पक्षियों का कोलाहल भी शान्त हो चुका है। दीपक ऑफिस से घर लौट आया है लेकिन उमंग और स्वदीप अभी तक घर नहीं लौटे हैं श्यामा देवी को चिंता हो रही है।
श्यामा देवी – आज अभी तक स्वदीप नहीं आया है और ये उमंग भी न जाने कहाँ निकल गया, दोपहर से ही गायब है। इस लड़के को भूख प्यास की तो चिंता ही नहीं है।
शिखा – मम्मी जी आते ही होंगे कभी-कभी काम ज्यादा हो जाता है न ऑफिस में...लेकिन देवर जी पता नही कहाँ रह गये ?
सत्यप्रकाश- बैठा होगा किसी के यहाँ, आजायेगा थोड़ी बहुत देर में। स्वदीप की मम्मी अब उमंग को भी विवाह के अटूट बंधन से बांध दो तब न जाया करेगा इधर – उधर।
घर की दोनों बहुओं शिखा और दीप्ति ने भी ससुर जी की बात पर हामी भरते हुए श्यामा देवी से कहा - हाँ मम्मी जी अपने कन्हैया के लिए एक राधा ले आओ।
श्यामा देवी दीपक से – जा बेटा उमंग को देख तो आ ..
ठीक है कहकर उमंग को ढूढने निकल जाता है दीपक
दीपक भी न जाने कहाँ रह गया पंद्रह-बीस मिनट हो गये अभी तक न लौटा – श्यामा देवी ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा।
शिखा और दीप्ति भी चिन्तित हैं – न जाने दोनों लोग कहाँ रह गये ?
इतनी देर कभी नहीं हुई स्वदीप और उमंग को – मन ही मन सत्यप्रकाश सोच रहे हैं।
घड़ी की चाल के साथ चिन्ताओं की रेखायें भी हर प्राणी के माथे पर बढ़ती जा रहीं थीं। कभी घड़ी, कभी दरवाजे को देखलेते हैं चारो लोग। जैसे चातक हर आने-जाने वाले काले-सफ़ेद बादलों को देख कर पानी की आस करता है वैसे ही घर के चारो सदस्य दरवाजे से गुजरने वाले व्यक्तियों में अपने तीनों की आहट सुनने को आतुर हैं। परिवार की इस कठिन परिस्तिथि में घड़ी ने 9:15 मिनट बजाकर सरल कोण बना दिया है।
दरवाजे पर आहट सुनायी दी, दीपक हारे मन से ख़ाली हाथ लौट आता है, पापा पूरे मोहल्ले में कहीं नही मिला उमंग। जहाँ – जहाँ वो बैठता है सब जगह देख लिया कहीं नही है।
आँखों में बंधा सब्र का बांध आँसुओं ने तोड़ दिया है श्यामा देवी विलाप करने लगती हैं कैसा होगा मेरा उमंग.. कहाँ गया मेरा बच्चा .. शिखा और दीप्ति सासू माँ को सँभालती है ...दोनों की आँखों में आँसू छलक आते हैं – मम्मी जी रोइए मत ..आ जायेगा हमारा उमंग।
सत्यप्रकाश का मन भी व्याकुल हो उठा है। दीपक तू अपने भैया के ऑफिस फ़ोन लगाकर पता कर कहाँ रह गया, वो क्यों नही आया अभी तक ..|
दीपक फ़ोन करने ही जा रहा था कि स्वदीप का फ़ोन आता है,
दीपक – भैया तुम कहाँ हो ? और उमंग भी अभी तक घर नहीं आया है मम्मी का रो रोकर बुरा हाल है
स्वदीप का स्वर रुंधा हुआ है आवाज भी ठीक से नहीं निकल रही है
स्वदीप- दीपक तुम सब लोगों को लेकर सेवा सदन अस्पताल में आजाओं ..उमंग...उमंग मेरे साथ ही है।
भैया की बात सुनकर दीपक सन्न रह जाता है और कुछ पूछ पाता, फ़ोन कट जाता है। आनन् – फानन में दीपक सबको लेकर अस्पताल पहुँचता है। अस्पताल पहुंचकर रिसेप्शन से पता चलता है कि उमंग बर्न वार्ड में भर्ती है। चारो लोग बर्न वार्ड में पहुंचते हैं जहाँ उमंग भर्ती है। मानों लक्ष्मण के आज शक्ति लग गयी है और राम को विलाप के सिवा कुछ और नहीं सूझ रहा है स्वदीप के चेहरे पर बार बार आते आंसू यही कह रहे थे।
श्य
ामा देवी की सिसकियाँ तब चीखों में बदल जाती हैं जब अपने कलेजे के टुकड़े को अस्पताल के बैड पर देखती हैं। शिखा और दीप्ति भी मूरत हो जाती है अपने लाड़ले उमंग को देखकर। हे ईश्वर ये क्या हो गया। उनके मुँह से यही निकलता है।
दोपहर में मुझे उमंग का फ़ोन आया कि भैया मैं सेवा सदन अस्पताल में भर्ती हूँ। और फिर किसी लड़की से बात हुई उसने सारी बात बताई मैं तुरंत यहाँ पहुंचा। उस समय भी कहाँ बोल रहा था उमंग | डॉक्टर ने बताया 12-16 घंटे लगेंगे होश आने में। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी थी। आधा चेहरा बुरी तरह झुलस गया है और दोनों हाथों पर भी फफ़ोले पड़ गये हैं – स्वदीप ने अपने आँसू पोंछते हुए बताया।
वो लड़की और उसके माँ –बाप भी उपस्थित है बेहद दुखी है। लड़की की आँखों से भी आँसू किसी झरने की तरह झरते जा रहे हैं।
स्वदीप बेटा ये सब हुआ कैसे ? सत्यप्रकाश ने रुंधे हुए स्वर में पूछा
हमारा उमंग तो मन मौजी है आज बाजार की तरफ घूमने निकल आया होगा। ये लड़की बताती है कि कई दिनों से एक लड़का इसके पीछे पड़ा हुआ था इसने विरोध किया तो आज इसके ऊपर तेजाब डालने के लिए इसके पीछे पीछे भाग रहा था लेकिन तब तक उमंग ने देख लिया और इसे बचाने के चक्कर में हमारा उमंग इसके आगे आगया और उसका आधा चेहरा जल गया। इस बार आँखों में उतरते आँसुओं के सैलाब को रोक नहीं पाया था स्वदीप, फर्श पर मोती जैसे गिर रहे हैं उसके आंसू।
श्यामा देवी ख़ुद को धीर नही बंधा पा रही हैं। मेरे पूर्णिमा जैसे चंद्रमा को ग्रहण लग गया शिखा बहू, ये ईश्वर भी कितना निर्दयी है मेरे बच्चे को कैसे घाव दिये हैं जरा भी दया नहीं आयी उसे। उस लड़के का सर्वनाश हो जाये। श्यामा देवी की रुवासी में अब गालियां और कोसना भी शामिल हो गया है। कभी शिखा के कंधे पर सिर रखकर रोती हैं और कभी दीप्ति के , दोनों के कंधे माँ के आँसुओं से भीग चुके हैं। कैसे समझाये माँ को, वो दोनों तो ख़ुद को नहीं समझा पा रहीं हैं शिखा और दीप्ति ने अपने बच्चे की तरह प्रेम किया है उमंग को , कभी ख़ुद को महसूस नही होने दिया कि वे निसंतान हैं।
सत्यप्रकाश और दीपक की आँखे भी कभी आँसुओं को पीलेती और कभी छोड़ देती उन्हें लुड़कने के लिए।
एक दूसरे को सांत्वना देने का उद्योग करते हैं पर किसी की आंखे बहना नहीं मानती हैं।
ये काली रात बीत जाती है इस परिवार के आँसुओं में। सूरज निकल आया है पर लगता है उमंग की खिड़की से उदास लौटकर आया है , आज इसके प्रकाश में तेज नही है। मोहल्ले वालों को जब उमंग के बारे में पता चला तो दौड़े चले आये हैं उसे देखने के लिए, अस्पताल में भीड़ लग गयी है, उमंग के चाहने वालों की।
श्यामा देवी का गला बैठ गया है रो रोकर , बैठे हुए स्वर में उमंग उठ जा बेटे , ऑंखें खोल ...
दीप्ति जा तू अपना ब्रह्मास्त्र ले आ, ये सुबह को ऐसे नहीं उठता है। श्यामा देवी के होठ कंप कंपाने लगते हैं स्वरों के साथ। मम्मी जी ...दीप्ति ये कहकर रोने लगती है।
दीपक के हृदय में उस लड़की और उसके परिवार के लिए नफरत ने जन्म ले लिया है, इसकी वजह से मेरे भाई की ये दशा हुई, हम सब की सुबह इस खिले फूल से चेहरे को देखकर होती थी पर कैसे मुरझा गया है मेरे भाई का चेहरा, सब इसी लड़की की बजह से ....मन ही मन कह रहा है दीपक
उमंग को शायद उस जलन की इतनी पीड़ा न हो रही होगी जितनी पीड़ा इस पश्चाताप की आग में जलने से हो रही है लड़की एक कोने में गुनहगार सी खड़ी ख़ुद से कह रही है
अचानक से कमरे में मम्मी शब्द की चीख गूंज जाती है , अब जलन का अहसास होने लगा है उमंग को होश आने लगता है। कमरे में उपस्थित सब लोग सिहर जाते हैं और श्यामा देवी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हाँ उमंग ...मेरा बेटा मैं तेरे पास ही हूँ। उमंग आँखे खोल लेता है, माँ, भाभियों, भाईयों और पिता की सूखी आँखे देखकर ख़ामोश हो जाता है। पीड़ा की चीखों को अपने अन्दर दफ़न कर लेता है। उसकी आँखों में आँसूं आजाते हैं।
पर श्यामा देवी जानती हैं जले का दर्द, पड़ोस के कमरे से एक दूसरे मरीज की पूरी रात चीखे कम नहीं हुई थी , वो जानती हैं कि उन्हें देखकर उमंग ने अपनी पीड़ा को हृदय में समाहित कर लिया है।
उमंग बेटा तुझे जलन हो रही होगी। रो मत , दीपक मेरे बच्चे को कुछ दवाई ले आ .... श्यामा देवी ने अपने आंचल से उमंग के आँसू पोछते हुए कहा।
उमंग – नहीं मम्मी, ये आँसू जलन के नही ..ये तो इसके बात के हैं, कि पहली बार मेरी बजह से तुम सबकी ऑंखें नम हैं। ये बात सुनकर हास्य रस की आँखे भी आँसुओं में भीग कर तर हो गयी हैं।
उमंग - मम्मी वो लड़की तो ठीक है न ?
श्यामा देवी ने उस लड़की को तो देखा भी नहीं था बेटे की पीड़ा में उन्हें तो ये भी नहीं पता है कि वो लड़की पूरी रात यहीं थी।
हाँ वो बिल्कुल ठीक है – स्वदीप ने आगे आकर कहा
वो मरे जिये हमें क्या ? सब उसी का किया धरा है ? उसी की वजह से ये हालत हो गयी तेरी और तू उसकी सलामती पूछ रहा है – श्यामा देवी ने गुस्से में कहा।
उमंग – मम्मी गुस्सा क्यों करती हो उसका दोष नहीं है। दोष तो उस लड़के का है...मम्मी जरा सोचो अगर मेरी बहिन होती उसकी जगह तो क्या मैं उसको इस तेजाब की जलन में झोंक देता नहीं न ..बस इसे भी मैंने बहिन मानकर ही बचाया है। कम से कम किसी के काम तो आया। मम्मी मैं तो ये सोचता हूँ काश उस लड़के के माता पिता भी तुम्हारे जैसे होते तो शायद वो ये न करता। जिन संस्कारों से तुम दोनों ने हम तीनों भाईयों को सींचा है अगर वैसे ही हर माँ – बाप अपने बेटों को सींचे तो किसी बहिन का चेहरा झुलसेगा नहीं, किसी बेटी की इज्जत तार – तार नहीं होगी।
लड़की और उसके माता पिता ख़ामोशी से उमंग की बाते सुन रहे थे, इस हाल में भी कितनी अच्छी बाते कर रहा है। लड़की और उसके माता पिता हाथ जोड़ कर श्यामा देवी के आगे खड़े हो जाते हैं, कुछ कहने के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं पर आँखे अभी भी निरंतर रिस रहीं हैं। लड़की को देखकर श्यामा देवी उससे उसका नाम पूछती हैं। वंदना प्रति उत्तर में लड़की ने कहा। श्यामा देवी के इस प्रश्न से साफ़ होजाता है कि उन्होंने उसे और उसके परिवार को माफ़ कर दिया है।
स्वदीप डॉक्टर को बुला लाता है और फिर उमंग को मलहम पट्टी की जाती है। उमंग पंद्रह दिनों तक अस्पताल में ही भर्ती रहता है धीरे – धीरे घाव भरने लगते हैं , बीच – बीच में वंदना भी उसे देखने आ जाया करती है अब वो बहिन बन गयी है उमंग की। उमंग अब घर लौट आया है जख्म भर चुके हैं लेकिन जले के निशान कहाँ जाते हैं। दिन बढ़ते गये और मलहम पट्टी कम होते गये इस प्रकार कई महीने बीत गये। घर में फिर वही ख़ुशी की उमंग दिखने लगी है।
सत्यप्रकाश और श्यामा देवी को बेटे के चेहरे पर दाग लगने का मलाल तो है लेकिन एक बेदाग बेटी मिलने की दोगुनी ख़ुशी भी है। इस बार राखी के त्यौहार पर वंदना ने उमंग के साथ – साथ स्वदीप और दीपक के भी राखी बांधी है।
इस घटना के एक साल गुजर जाने के बाद दीप्ति के पिता अपनी छोटी बेटी का रिश्ता उमंग के लिए लाते हैं, और उमंग का विवाह हो जाता है अब उमंग भी अपने बड़े भैया के साथ ऑफिस जाता है।
श्यामा देवी के हृदय में बेटे की शादी को लेकर चिंता भी अब समाप्त हो चुकी थी। सत्यप्रकाश पहले की तरह ही अब अख़बार को दिन में चार – पांच बार पढ़ कर समय व्यतीत करते हैं। लेकिन उमंग की उस विषम रात को कभी भुला नहीं पायेगा ये परिवार।