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टी-पाट

टी-पाट

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छनाक की तेज आवाज हुयी और उज्ज्वला कुछ लिखते-लिखते चौंक पड़ी। फिर बोली, “क्या हुआ?क्या टूटा?” अन्दर से डरी सहमी सी आवाज आई, “जी मेम साब, वो-वो कहते-कहते वो चुप हो गयी। उज्ज्वला ने कहा—“रुक आती हूं।”और वो कलम डायरी बन्द करके उठ पड़ी। रसोई की तरफ़ जाते-जाते वह बड़बड़ाती भी रही—“ओ हो, तू तो रोज ही कुछ न कुछ तोड़ती फ़ोड़ती रहती है। आज क्या हो गया?”

 

रसोई में पहुंचने पर सिंक पर नजर जाते ही जैसे उसकी जान अटक गयी। उसका नया टी-पाट सिंक में कई टुकड़ों में बिखरा पड़ा था। कमली एक कोने में डरी हुयी खड़ी थी।

 

“अरे ये क्या कमली? तूने मेरा नया टी-पाट तोड़ डाला?” उज्ज्वला चीखती हुयी बोली।“ तुझको कितनी बार समझाया है कि संभल कर काम किया कर। लेकिन तू पता नहीं किस दुनिया में खोयी रहती है।”

 

  “जी मेम साहब, गलती हो गयी। पता नहीं कैसे हाथ से फ़िसल कर टूट गया।” कमली बड़े मायूस अंदाज में बोली।

 

“तू नहीं जानती कमली आज तूने क्या तोड़ डाला। टी-पाट नहीं तूने आज मुझसे मेरा बहुत कुछ छीन लिया। यह केवल टी-पाट ही नहीं मेरी मां की दी हुयी अन्तिम निशानी थी। बिस्तर पर पड़ी मां ने कहा था कि, “जब तुझे मेरी याद आये तो तू उसमें चाय बना कर पीना। मुझे लगेगा कि तू अपनी मां के हाथ की बनी हुई चाय पी रही है।”

 

उज्ज्वला उसी रौ में बोलती जा रही थी। तू नहीं जानती कमली,“मैंने इसे इतने वर्षों से संभाल कर रखा था। जब मां की बहुत याद आती थी तो उसी में चाय पीती थी। और मुझे ऐसा महसूस होता था कि मां मुझे अपने हाथों से चाय पिला रही हैं।”

 

कमली बोली, “माफ़ कर दीजिये मेम साहब सच में बहुत बड़ी गलती हो गयी। मैं तो इसकी भरपायी भी किसी तरह नहीं कर सकती। मैं जा रही हूं मेम साहब, मुझे माफ़ कर दीजिये।”

 

उज्ज्वला कुछ नहीं बोली। टूटे हुये कांच के टुकड़ों को बस देखती रही। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बह रहे थे। कमली यह दृश्य देख न पाई और सिसकते हुए निकल गयी। मां की यादों में डूबी हुयी उज्ज्वला ने ध्यान नहीं दिया। उसकी तंद्रा तो तब टूटी जब उसके पति प्रकाश ने उसे आवाज लगायी।

 

  वह और आवाजें लगाते इसके पहले ही उज्ज्वला रसोईघर से अपने आंसू पोंछते हुये झट से कमरे में आ गयी।

“अरे, क्या हुआ? ये क्या हुलिया बना रखा है?बैठो-बैठो बताओ क्या बात है।”प्रकाश उसे सहारा देकर पास पड़ी कुर्सी पर बैठाता हुआ बोला।

उज्ज्वला को मौन देख कर उसी ने बात को आगे बढ़ाया—“अच्छा-अच्छा याद आया, सुबह किसी बात को लेकर बहस हुयी थी न। शायद इसी से दुखी हो। अरे यार, मियां-बीबी के बीच ये तो बहस होती ही रहती है। बहस न हो तो समस्या का हल कैसे निकलेगा। मैं तो भूल ही गया था और तुम अभी तक उसी बात को लेकर बैठी हो।”

 

उज्ज्वला ने धीरे से अपनी गर्दन ना में हिलायी। प्रकाश बोले—“अच्छा तो कोई दर्द भरा गीत लिख रही हो जिससे तुम्हारे खुद के आंसू छलक आए। हां,यही बात होगी—पक्का।”

 

   “नहीं भाई –ऐसा कुछ भी नहीं है।” उज्ज्वला और भी रुआंसी होकर बोली।

 

“तो फ़िर बात क्या है?क्या हो गया?”और अचानक से जैसे उन्हें कुछ याद आया और वो मुस्कुराते हुये बोल पड़े,“अरे सबसे बड़ी बात तो मैं भूल ही गया। लगता है आज मां की बहुत याद आ रही हैं, यही बात लग रही है मुझे। बिलकुल पक्की बात।”

 

मां का नाम सुनते ही उज्ज्वला फ़िर रोने लगी।

 

   “अरे-रे फ़िर शुरू हो गयी। अच्छा चलो, एक काम जो सबसे पहले करना चाहिये वो करता हूं।” प्रकाश ने उज्ज्वला के आंसू पोंछते हुए कहा।

 

  “क्या?” उज्ज्वला बोली।

 

“अरे भाई तुम भी बड़ी अजीब हो। अरे जब मां बहुत याद आती है तो सबसे पहले तुम क्या करती हो? बोलो?”

 

पर उज्ज्वला ने कोई जवाब नहीं दिया।

 

“अरे भूल गयी—तुम्हारी मां के दिये हुये टी-पाट में गरमागरम चाय। जिसमें चाय पीते ही तुम्हें बहुत सकून मिलता है—चलो, मैं ही आज उसमें चाय बना कर लाता हूं।” प्रकाश भरसक माहौल को सामान्य बनाने की कोशिश करता हुआ बोला।

 

उज्ज्वला से कुछ बोला न गया। वह प्रकाश के कन्धों से लग कर सिसक पड़ी।

 

“देखो, मैं दो मिनट में चाय लेकर आता हूं।” प्रकाश ने उसे फ़िर समझाया।

 

उज्ज्वला बड़े ही दुखी मन से धीरे से बोली,-“अब मां के दिये टी-पाट में मैं कभी चाय नहीं पी पाऊंगी।”

 

“क्यों? ऐसा क्यों भला?”- प्रकाश आश्चर्यचकित होकर बोला। 

 

“आजा माँ की अंतिम निशानी नहीं रही। वो कमली के हाथों छिटककर टूट गयी।” कहते कहते उज्ज्वला फिर सिसकने लगी।

 

“ओह तो ये बात है” –प्रकाश भी थोड़ा दुखी मन से बोला।

 

पूरे कमरे में थोड़ी देर तक एक अजीब सी चुप्पी बनी रही। ऐसा लग रहा था आवाज दोनों के गले में फंस कर कहीं अटक सी गयी हो। फिर प्रकाश ने खुद ही पहल की बोलने की और उज्ज्वला को समझाने लगा।

 

“देखो उज्ज्वला ---ये सच है कि माँ की दी हुई निशानी बहुत ही अमूल्य होती है—उसका कोई मोल नहीं और न ही अब दोबारा वो मिल सकती है। मैं जानता हूँ कि किसी अमूल्य चीज के खोने का मतलब क्या होता है? और वो भी माँ की दी हुई –ये भी जानता हूँ कि तुम्हें इस बात का बहुत दुःख है---इस बात का दुःख मुझे भी कम नहीं। पर इसकी कोई भरपाई भी तो नहीं हो सकती। तुम जरा ये भी तो सोचो कि इस दुनिया में जब किसी का भी अस्तित्व नहीं रह पाता। इस दुनिया में कुछ भी अजर अमर नहीं है – हम सभी को एक न एक दिन जाना है तो फिर ये तो इन्सान के द्वारा बनायी गयी चीज थी --- वो भी तो नश्वर ही थी न।”

 

उज्ज्वला कुछ न बोल कर बस उसका चेहरा देखे जा रही थी।

 

“उज्ज्वला तुम इस बात को दिल से न लगा लो कि माँ  की दी हुयी निशानी नहीं रही। माँ तो तुम्हारी यादों में,तुम्हारी सांसों में बसी ही हैं। जब भी तुम ऑंखें बंद करके उन्हें याद करोगी –वो हर वक्त तुम्हें अपने पास दिखाई देंगी। तो जब माँ  हर वक्त तुम्हारे साथ हैं, तो टी-पाट के न रहने की बात से मन को दुखी मत करो। अब चलो, हम कल ही बाजार जा कर माँ के ही नाम से नया टी-पाट ले कर आयेंगे और उसी में चाय भी पीयेंगे। चलो डार्लिंग, अब जरा धीरे से मुस्कुरा दो।” और उज्ज्वला भी धीरे से मुस्कुरा दी ।

 

दूसरे दिन जब सबेरे-सबेरे दरवाजे की घंटी बजी तो उज्ज्वला ने घड़ी देखा --- घड़ी आठ बजा रही थी। वो हड़बड़ा कर उठी –ओह, आज बड़ी देर तक सोई –कहते हुए वो दरवाजे की तरफा बढ़ी। जैसे ही उसने दरवाजा खोला सामने कमली हाथों में कोई बड़ा सा पैकेट लिए खड़ी थी।

 

“अरे कमली तुम! आओ अन्दर आओ।” मैंने तो सोचा था कि मेरे इतना डांटने पर तुम काम छोड़ ही दोगी।”

 

कमली बोली,“अरे मेमसाहब ऐसा क्या कह दिया आपने?”और आगे बढ़ कर वो पैकेट उज्ज्वला को पकड़ा दिया ।

 

“ये क्या?” उज्ज्वला ने पूछा।

 

  “मेम  साहब जी—हम लोग भी जी-जान से मेहनत करते हैं दो पैसे कमाने के लिए ही तो, जिससे घर का गुजारा हो सके। हमारे भी बच्चे पढ़ लिखकर आप लोगों की तरह इन्सान बन जाएँ। लेकिन मेम साहब हम लोग किसी के थोड़े किये को बहुत मानते हैं। पर आप लोगों ने तो बहुत कुछ किया मेरे लिए। आपका इतना सामान टूटा मुझसे पर आपने कभी कुछ नहीं कहा। कल मालकिन का दिया हुआ टी-पाट मुझसे टूट गया। वो आपकी माँ की याद थी। आपने फिर भी मुझे ज्यादा नहीं डांटा। मेम साहब हम भी इंसान हैं। और इंसान की पहचान भी वक्त करा ही देता है।” कहते –कहते कमली रोने लगी।

 

“अरे-अरे कमली बहुत हो गया –बहुत रो चुकी अब चुप हो जाओ ।”

 

आंसू पोंछते हुए कमली बोली-“मेम साहब यहाँ से घर जाने पर मेरा भी मन नहीं लगा। बार-बार आपका रोता हुआ चेहरा और टी-पाट आँखों के आगे नाचता रहा। फिर मैं उठ गयी मन में सोचते हुए कि ये अच्छा नहीं हुआ। मैंने कुछ पैसे इकट्ठे किये थे। उन्हें लेकर बाजार गयी और फिर जो अच्छा लगा पैकेट में बंधवा लिया। कहते हुए वह थोड़ा रुकी।

 

तब तक उज्ज्वला बोल पड़ी—“अरे हाँ, ये तुमने मुझे काहे का पैकेट दिया है और किस लिए दिया? जबकि न तो आज मेरा न उनका जन्मदिन है। न ही कोई और कारण। तू बता तो इसमें है क्या?”

 

“अच्छा रुक –मैं ही खोलती हूँ।”यह कहते हुए कुर्सी पर बैठ कर वो धीरे-धीरे पैकेट खोलने लगी। फिर अचानक ही ख़ुशी से बोली—“अरे नया टी-पाट ?” कहते हुए उसकी आँखों से आंसू  निकल रहे थे।

 

  “जी मेम साहब, मेरे पास जो थोड़ा बहुत पैसा था उसी से जो बन पड़ा खरीद लाई। वैसे तो आपका बहुत सा सामान मुझसे टूटा पर माँ का दिया हुआ टी-पाट टूटना मुझे अन्दर से दुखा गया। मेम साहब, बहुत ज्यादा महंगा तो नहीं है पर देखने में यही सबसे अच्छा लगा था सो...”

 

“बस कमली बस। तू मुझे और शर्मिंदा मत कर, ” उज्ज्वला उसे रोकते हुए बोली।

 

“जानती है, आज ही हम दोनों टी-पाट खरीदने के लिए बाहर जाने वाले थे। पर बहुत अच्छा किया जो तू इसे ले आई। थैंक्यू कमली।”

 

“अच्छा, मेम साहब। आपको यह अच्छा लगा, मेरे दिल को सुकून मिल गया है। और कोई भूल चूक हो गयी हो तो माफ़ करियेगा। चलती हूँ, मेम साहब ।” यह कहकर कमली  वापस जाने के लिए पलटी तभी उज्ज्वला ने आगे बढ़ कर उसका हाथ थाम लिया।

 

“अरे कमली, तू जा कहाँ रही है?”

 

“मेम साहब कोई दूसरा काम देख लूंगी।”

 

“अच्छा,”मुस्कुराते हुए उज्ज्वला बोली –“तो तुम्हारी ये मालकिन इतनी बुरी हो गयी है कि तुम अब यहाँ काम तक नहीं करना चाहती?”

 

“अरे नहीं मेमसाहब, आप तो बहुत अच्छी हो और साहब जी भी...बस मैं तो ऐसे ही...”कह कर वो चुप हो गयी।

 

“तू कहीं नहीं जाने वाली कमली। तेरे साथ मैं अपना सुख-दुःख भी बाँट लेती थी। कुछ कह कर अपना मन हल्का कर लेती थी। फिर भी तू जाने की बातें कर रही है। क्या मुझसे नाराज है?”

 

तभी अन्दर से आवाज आई,“अरे ये कौन कहाँ जा रहा है? कौन नाराज़ है? जरा मैं भी सुनूँ ?”हँसते हुए प्रकाश ने कमरे में कदम रखा।

 

 “देखिये न, ये कमली जाने”

 

“अरे मैं समझ गया-समझ गया। और कमली कोई कहीं नहीं जा रहा है। चलो भाई, फ़टाफ़ट गरम चाय नए टी-पाट में पीयेंगे। तू अन्दर जा कर अपना काम कर और गरमागरम चाय।” 

 

“साहब आपने मुझे माफ़ कर दिया। सचमुच आप लोग बहुत अच्छे हैं। भगवान सारी खुशियाँ आप दोनों को दें। कहकर वो चाय बनाने के लिए जाने लगी। तभी प्रकाश ने आवाज दी—“कमली।”  

 

“जी साहब”, कमली अन्दर जाते-जाते फिर पलट गयी। उसका चेहरा फिर पीला पड़ गया।

 

प्रकाश हँसे—“अरे भाई, मैं तुम्हें डांट नहीं रहा हूँ। मैं तो ये कह रहा था कि...वो अब नाटकीयता के मूड में आ गए थे। हाँ, तो मैं ये कह रहा था कि...”

 

“अरे भाई, क्या कर रहे हैं आप? वो बेचारी सहमी खड़ी है। आप क्या कहना चाहते हैं उससे?”

 

“ओहो, तुम भी परेशान हो गयी –मैं तो दोनों का मूड ठीक करने की कोशिश कर रहा था।” प्रकाश ठहाका लगा कर बोला।

 

      “चलिए, अब ठीक। अच्छा तो कमली आज से तुम्हारी तनख्वाह में सौ रुपये की बढ़ोत्तरी की जा रही है।देखो, कुछ कहना मत। हम लोगों को भी तुम जैसे अच्छे लोगों की जरुरत होती है। इंसानियत का यही तकाजा है।”

 

“चलो, लेक्चरबाजी ख़त्म अब हो जाये गरमागरम चाय नए नए टी-पाट में। क्यों मैडम, ”प्रकाश ने कहा। तो उज्ज्वला भी खिलखिला पड़ी और कमली हँसते हुए अन्दर की ओर भागी।


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