टहलना और टहलाना

टहलना और टहलाना

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वैसे तो वर्तनी-व्याकरण-आऊँ-गाऊँ तौर से देखा जाए तो ‘टहलना’ और 'टहलाना’ में एक 'आ’ की मात्रा का ही फर्क है.. पर चारित्रिक तौर पे तो बप्पा रे बप्पा, इस्राइल और फिलिस्तीन का अंतर है।


टहलना एकाकी प्रक्रिया है.. टहलाना चालाकी वाली।


दो लोग साथ में टहल रहे हों तो उनमें से एक, दूसरे वाले को टहला रहा होता है.. हर आदमी के अंदर का चिम्पांजी उसको यही समझाता है कि कर्ता वही है.. वही टहला रहा है।


अब जैसे पोसुआ कुत्तों को देख लीजिये.. कौन-किसको टहला रहा है, कहना मुश्किल है.. लेकिन कहेंगे यही कि “टहलने निकले हैं..”


नेता जी बियर के झांसे में भीड़ को टहला देते हैं, भीड़ नौकरी का जुगाड़ लगा के नेता जी को टहला देती है।


अकेले टहलने वाले कम हैं.. वो ज्यादा खतरनाक होते हैं.. जासूस, लेखक, फिदायीन, खोजी पत्रकार.. ये लोग किसी के सगे नहीं होते।


साथ टहलने वाले, जो कि मन ही मन एक दूसरे को टहला रहे होते हैं, इस लोक-फेंक-तन्त्र की रीढ़ हैं।


दूबेजी हाईस्कूल फेल लड़की को बीए पास बता के शुक्ला जी को टहला रहे हैं.. शुक्ला जी क्लर्क बालक को पीओ बता के दूबे जी को टहला रहे हैं.. वर-वधू मंडप में टहल रहे हैं।

 
पीएम साहब व्हाईट हाउस के लॉन में टहलते हुए, बिना डेट वाली पैकेज की राशि बता के वोटर को टहला रहे हैं।


वोटर, गड्ढे वाली सड़क से आ रहे छींटे से बच के, फुटपाथ पे चलता हुआ “अगली बार, आप ही की सरकार” बोल के पीएम साब को टहला रहे हैं।


देश का स्वास्थ्य बना हुआ है.. सबको, यूँ ही, साथ में टहलना चाहिए..! 
 

 


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