तस्वीर

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रात के अंधेरे में उसकी नींद खुली तो उसने बगल मे पड़ी घड़ी में समय देखा। रात के ४ बजे थे, और सुबह का अलार्म बजने में अभी कुछ आधा घंटा था। वापस नींद में जाने के खिलाफ सोच कर वह बिस्तर में लेटा बगल मे सोती पत्नी को देखता रहा। ठीक ४ २५ पर, जब अलार्म बजने मे ५ मिनट थे, तो उसने अलार्म बंद किया और तैयार होने दबे पांव कमरे से बाहर को गया। तैयार होने मे कुछ २५ मिनट लगे, और इस बीच टैक्सी उसे एयरपोर्ट ले जाने के लिए नीचे खड़ी हो गयी। जाने का समय आ गया था - ४ दिन का काम था हैदराबाद मे, पर हर दिन घर से दूर जैसे एक सदी के जैसी प्रतीत होती थी। जाने से पहले उसने प्यार से पत्नी के सर पर हाथ फेरा। नींद में वो बोली, "हैव अ गुड ट्रिप। आई लव यू।" शायद उसे यह शब्द सुबह तक याद ना रहे पर उसके पीछे भावना बहुत मीठी थी। सोचते पति ने उसे सर पर चूमा और रात के अंधेरे में ओझल हो गया।

घर पर चार दिन बहुत धीरे बीते। दोनो अकेले रहते थे - और एक को दुसरे की कमी बहुत खलती थी। अंत में उसके वापस आने का दिन आया। आने के जोश में उसने घर को रोज़ के मुकाबले थोड़े और उत्साह और लगाव से तैयार किया। दोपहर होते ही बाजार से उसकी पसंदीदा सब्ज़ियाँ खरीद लाई। शाम ढलते-ढलते नहा धोकर वह रसोई की खिड़की से नीचे देखते उसे लाते ऑटो का इंतज़ार करने लगी। समा जैसे थम गया हो। नीचे खेलते बच्चों की आवाज़ें जैसे उसके आने में बाधा बन रहे हों। चिढ़ कर वह अंदर जा कर बैठ गयी, और घड़ी की सुइयां ताकने लगी। शाम ने रात को जगह दी पर उसका आना नहीं हुआ। एक बार फिर उसने रसोईघर में फ्रिज के दरवाज़े पर लगाया नोट देखा जिसमे उसके जाने और आने का समय और दिनांक लिखे थे। "अब तक आ जाना चाहिए था उसे। ये मरे हवाई जहाज़ वाले भी कभी समय के पाबंद नहीं होते।", अपने आप से बात करती, घर में बेचैन घूमती उसने सोचा। खाने की मेज़ पर बैठे-बैठे जाने कब आँख लग गई। जब सुबह दूध वाले के इमारत में भागने की आवाज़ से उसकी नींद खुली तो तुरंत बिस्तर देखने भागी। सोचा देर रात में वह आ कर सो गया होगा, और मुझे उठाना उचित नहीं समझा होगा। पर वहां कोई नहीं था।

अब वह घबराने लगी। पहले तो एयरपोर्ट पर और एयरलाइन्स के दफ्तर में फोन कर फ्लाइट के आने का समय पूछा। पता चला कि पिछले दिन की सभी फ्लाइट समय के अनुसार ही आई थी - उसके पति को लाती फ्लाइट भी। अपने आप को कोसा की कल रात ही उसने यह पता क्यों नहीं किया। एयरलाइन्स से यह भी पता चला कि उसका पति निर्धारित फ्लाइट पर नहीं था। बेचैन हो उसने उस होटल का नंबर ढूंढा जहाँ उसे रुकना था - पता चला की वह निर्धारित दिन पर वहां से चेक-आउट कर जा चुका था। वहां से निकलने के बाद उसका क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता था। परेशानी से तड़पती पत्नी ने अगली फ्लाइट ली और उसी शहर पहुँच गयी। होटल में जा उस कमरे का निरीक्षण किया जिसमे वह रुका था - कमरा साफ़ किया जा चुका था, और सफाई कर्मचारी ने बताया की वहां रहने वाले एक सज्जन थे, और कमरे में कुछ भी सन्देहजनक नहीं था। होटल के बाहर खड़े टैक्सी वालों से पूछना चाहा कि उनमें से किसी को उसके पति के चेहरे वाला व्यक्ति याद हो। सबने तस्वीर देख याद करने की कोशिश की, पर कोई बता नहीं पाया।

हार मान वह पुलिस के पास गयी। उन्होंने पति का तस्वीर लिया, और गुमशुदा व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज की। रोज़ सुबह पुलिस थाने जा वह खोज मे प्रगति पूछती। पहली कुछ बार तो पुलिस ने नरमी से बताया की अभी कुछ पता नहीं चल पाया है, पर जब सिलसिला हफ्ते भर चलता रहा तो वहां के एक वरिष्ठ अफ़सर ने चिल्लाकर कहा, "मैडम! सिर्फ आपके पति ही नहीं गुम हैं। हम हज़ारों लोगों को ढून्ढ रहे हैं। आपका यहाँ रोज़ आना आपकी और उन सब की खोज मे बाधा बन रहा है। आप घर जाइये। कुछ खबर होगी तो हम आपको सूचित कर देंगे।" मायूस हो घर लौट आई। महीने में एक चक्कर हैदराबाद का लगाती और पुलिस थाने जा कर केस की प्रगति के बारे मे पूछती। वहां काम करने वाले सच्चे लगते थे, और लगता था जैसे पति का पता ना लगने मे उनका कोई दोष नहीं है।

सिलसिला कुछ ८ महीने चलता रहा। फिर एक दिन उसे एक तार आया जिसमे माफ़ी मांगते हुए, पुलिस ने उसे सूचित किया था की कोई सुराग ना मिलने के कारण वह केस बंद कर रहे हैं। चिट्ठी मे पुलिस ने माफ़ी मांगी थी की वह उसकी मदद नहीं कर पाये। उसी शाम पुलिस थाने से फ़ोन आया। अफ़सर ने निजी रूप से माफ़ी मांगी और कामना की कि उसका पति घर सुरक्षित लौट आये। फोन रखने से पहले बोला, "बुरा ना मानें तो एक बात कहूँ मैंने अपने तजुर्बे में एक सार पाया है कि ऐसे केस मे दो में से एक घटना हुई होती है - या तो मर्द किसी और औरत के साथ कहीं फरार हो गया होता है, या फिर किसी दुर्घटना का शिकार हो जीवन से हाथ धो बैठा होता है। आप अपने जीवन की डोर संभालिए और आगे बढ़िए।" उसने बिना कुछ कहे फ़ोन नीचे रख दिया।

देखते ही देखते ३ साल और बीत गए। अब भी वह कभी रसोई की खिड़की पर खड़ी होती तो सोचती शायद वह आ जाए, या कभी अपने आप को कोसती की काश उस दिन मैं सो नहीं रही होती, और उसे ठीक से अलविदा कही होती। पर मन में उसने सच मान लिया था - दोपहर में अक्सर बैठी सोचती की अंतिम घड़ियाँ उसने कैसे काटी होंगी? कितनी तकलीफ़ मे होगा, और किससे मदद मांगी होगी? मगर इन सवालों के कोई जवाब नहीं थे।

इस दौर में एक व्यक्ति से उसे बहुत मदद मिली, दोस्ती और प्रेम मिला। दोनो कठिनाई के इस दौर मे एक दुसरे के करीब आये। धीरे धीरे उसके ग़म के घाव भरने लगे, और एक दिन उस व्यक्ति ने अपना प्रेम प्रस्ताव उसके सामने रखा। आज से पहले उसने कभी अपने को विधवा नहीं माना था - इसलिए सवाल ने उसे एक अटपटे सी सच्चाई का सामना करने पर विवश किया। पर जानती थी कि जीवन में आगे बढ़ना ज़रूरी है। एक मीठे ग़म के साथ उसने प्रस्ताव स्वीकार किया। विवाह से पहले ज़रूरी था कि पति को कानून मृत घोषित करे। इसलिए दोनो पति के माँ-बाप के यहाँ उनकी रज़ामंदी के लिए पहुंचे। सोच रहे थे की कैसे उनसे कहेंगे कि वह आस छोड़ मान लें कि उनका बेटा अब नहीं आएगा। जब उनके घर पर दस्तक की तो घुसते ही देखा कि बेटे की तस्वीर लगी है - उसपर कोई हार नहीं था। दोनो ने अपनी कहानी सुनाई - और बूढ़े माँ-बाप ने दिल पर पत्थर रख उन्हें आशीर्वाद दिया।

विवाह सादा था। वह उसमे कोई हर्ष नहीं चाहती थी। नए पति का घर जीवन की एक नयी शुरुआत थी। अपना सारा सामान समेट वह उसके घर पहुंची। वहां जाने से पहले वह पिछली सभी यादों को समेट - अपनी और अपने पति की सभी यादें कुछ बक्से और कुछ अपने दिल में कैद कर अपने सास-ससुर के घर ले गयी थी। बक्से उनके हवाले करते बोली, "यह मेरी और आपकी अमानत है। मैं कुछ समय तक आपके पास छोड़ना चाहती हूँ।" माँ-बाप ने बेटे की यादों को ख़ुशी से अपने घर में पनाह दी। सब कुछ वहां छोड़ देने के बाद उसने अपने पास केवल एक तस्वीर रखी - तस्वीर में वह और उसका पति मुस्कुराते कैमरा को देख रहे थे।

नया जीवन जैसा सोचा था वैसे ही शुरू हुआ। नया पति वो सब कुछ था जो उसने चाहा था। जीवन को एक नयी शुरुआत मिली।

एक दिन की बात है, रात मे पति और वह सो रहे थे। अचानक पति बिस्तर से उठा और इधर उधर घूमने लगा। ना जाने क्या बेचैनी उसे खाए जा रही थी। इधर उधर घूमने के बाद फ्रिज से पानी की ठंडी बोतल निकाल कर पानी पिया, फिर कुछ देर टी.वी. चला रंगों को स्क्रीन पर घूरा - पर मन स्थिर नहीं हुआ। अंत में उसने निर्णय ले लिया। धीमे से उनके कमरे में गया, और अलमारी के मंझले खाने के तले पर पड़ी अखबार के नीचे पड़ी तस्वीर निकाल लाया। कुछ देर उसे घूरा और फिर रसोईघर में ले जा कर चूल्हे पर उसे जला डाला। फिर वहां से राख़ साफ़ कर बिस्तर पर आ गया। नींद फिर भी ना आई।

अगले दिन मन कुछ अटपटा रहा। खट्टे दिल से दफ्तर गया, और शाम में जब वापस लौटा तो पाया कि पत्नी की तबियत अचानक बहुत खराब है। तुरंत उसे हस्पताल ले कर गया, जहाँ उसे भर्ती कर लिया गया। अगले कुछ दिनों में उसके दुनिया भर के टेस्ट हुए, पर कोई नहीं बता पाया की उसे क्या रोग है। बीमार पड़ने के छठे दिन वह चैन से सोई, और फिर कभी नहीं उठी।


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