सूखे का निवारण

सूखे का निवारण

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एक बार, एक राज्य में गजब का सूखा पड़ा। पूरे चौमासे में, किसी किसी गाँव में तो बूँदाबाँदी हुई, कहीं वह भी नहीं। फसलें खड़ी की खड़ी सूख गईं। न जानवर को चारा, ना पीने को पानी। राजा को सब ओर से बुरे समाचार ही मिल रहे थे। घबराकर वह अपनी माता से मिलने गए और उन्हे बताया कि राज्य की हालत क्या है। रानी माँ ने बेटे को खूब फटकारा, “कितना विकास कर लिया है बेटे! एक बरस पानी न बरसे तो प्रजा त्राहि त्राहि करने लगती है! अगर तुम्हारी प्रजा प्रकृति के छोटे से व्यवधान से इतनी त्रस्त हो जाए,  तो यह विकास नहीं ह्रास है।“


राजा को माँ से सहानुभूति की उम्मीद थी। ऐसी फटकार पा कर उसे बहुत बुरा लगा। पर जब उसने दोबारा सोचा, तो उसे माँ की बात सही लगी। उसने पूरी रात बैठ कर एक योजना बनाई और सुबह संतुष्ट हो कर सोया।


अगले दिन सुबह, उसने अपने विश्वसनीय हरकारे बुलवाए और उन्हे एक गुप्त प्रयोजन से भेज दिया। अगले सप्ताह तक, राज्य के हर गाँव से 2-2 बूढ़े लोग राजधानी में एक सराय में पहुंचे जहां उन्हे बहुत सत्कार से रखा गया। राजा ने पूरी सराय उनके लिए तय्यार करवायी थी। जब सभी पहुँच गए, तब राजा उनसे मिलने पहुंचे। उन्हे संबोधित कर वे कहने लगे, “आप सब सोचते होंगे, कि सूखे की चर्चा करने के लिए मैंने मंत्रियों या अमात्यों की गोष्ठी क्यूँ नहीं बुलाई? या फिर, गाँव से ही प्रतिनिधित्व चाहिए था, तो ग्राम प्रधानों या पंचों को क्यूँ नहीं आमंत्रित किया? गाँव से सबसे वयोवृद्ध, आप सब लोगों को क्यूँ बुलाया? मेरे  मंत्रियों, अमात्यों, और ग्राम प्रधानों ने यदि अपना कर्तव्य निभाया होता, तो ये सूखा नहीं होता। ये पहली बार नहीं है, जब चौमासे में भरपूर वर्षा ना हुई हो। पर सूखा पहली बार हुआ है। तो बताइए, वृद्धजन, आपकी क्या सोच है, ये सूखा क्यूँ हुआ है?”

सब लोगों ने अपने अपने विचार रखे। राजा को बहुत सारी नई नई जानकारियाँ मिली, और कुछ तथ्यों पर नया दृष्टिकोण भी। कुछ ने कहा, “हमारी जमीन में इतना पानी नहीं है, पर कुछ किसान फिर भी वहाँ धान उगाते हैं। उस से मुनाफा अधिक मिलता है।“ कुछ ने कहा, हमारे गाँव के तालाब की जमीन के पास हवेलियाँ और खेत उग आए हैं। अब वहाँ पानी काम रहता है। सूखा तो एक दिन होना ही था।“ किसी और ने कहा, “हमारे गाँव में बरसाती खोले (नालियाँ) हुआ करती थी, अब लोगों ने उन पर घर बना लिए।“


कुछ गाँव से आए लोगों ने कहा, “हमारे गाँव में साल में दो बार सब नालियाँ साफ की जाती थी, और फिर उनमें फिटकिरी डाली जाती थी। पिछले कुछ सालों से ये साफ सफाई बंद हो गई है। अब गाँव के जलाशयों का पानी मलिन रहता है, उसका उपयोग नहीं किया जाता।“ एक ने बताया, “गाँव की पंचायत नहर, पोखर, और तालाब की जानकारी वाले कारीगरों को उचित मेहनताना नहीं देना चाहती थी। वे गरीब लोग थे। रोजगार समाप्त हुआ, तो उन्होंने अपने बच्चों को बंधुआ मज़दूरी पर लगा दिया। 1-2 पीढ़ियों में ही, उनकी विद्या विलुप्त हो गई। राजा को अपने अन्वेषण पर बहुत गर्व हुआ। वह दुबारा अपनी माँ के पास पहुंचा और उन्हे सब बात बताई। माँ ने सब सुना और पूछा, “बेटे, अब तुम बड़े हो गए हो। इन सब बातों का तत्व निकाल पाओगे, या मुझे बच्चों की तरह समझाना पड़ेगा?”बेटे को अभी तक कोई 1 तत्व समझ नहीं आ रहा था। किन्तु माँ की बात गांठ बांधकर वह वापिस अपने कक्ष में आया। उसने लोगों की कही बातों को बार बार पढ़ा, अपने मन में दोहराया। और फिर, धीरे धीरे, उसे बात समझ में आने लगी। 


अगले दिन, राजा ने अपने सभी मंत्रियों और अमात्यों को बुलाया और उन से सूखे का समाधान मांगा। हर मंत्री इसी की प्रतीक्षा में था। कोई राजा के समक्ष विद्वान दिखने का अवसर खोना नहीं चाहता था। “महाराज, हमें गहरे कुंवे खोदने चाहिए।“ “महाराज, हमें नदियों पर बांध बनाने चाहिए, ताकि आगे से ये समस्या न खड़ी हो।“- जीतने मुंह, उतने सुझाव। राजा मंद मंद मुस्का रहे थे। जब हर कोई अपनी राय दे चुका, तो राजा गरजे – “बस! बहुत हुआ!” सारी सभा में सन्नाटा छा गया। सब राजा का मुंह ताकने लगे।

“ आप सब सोच रहे होंगे, कि इतने कठिन समय में, राजा ने ये सभा पहले क्यूँ नहीं बुलाई? इसीलिए, क्यूंकि मैं यही सुझाव सुनना नहीं चाहता था, और मैं जानता था, कि आप सब ऐसे सुझावों के अलावा कुछ नहीं कर सकते।


सारी सभा को सांप सूंघ गया। किसी को राजा से यह अपेक्षा नहीं थी। राजा दोबारा बोले, “अब मैं आप लोगों से एक प्रश्न पूछता हूँ। ये पहला साल नहीं है जब चौमासे में वर्षा न के बराबर हो। पर सूखे का यह पहला साल है। बताइए, सूखा पड़ा ही क्यूँ?”

किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं था। सब बगलें झाँकने लगे।


राजा फिर गरजे – “सूखा, प्रशासन की विफलता है। हमारा काम था – आपका, और मेरा, इस देश को इतने सुचारु रूप से चलाना, कि प्रकृति हमारी मित्र बने, शत्रु नहीं। सूखा हमारे अपने अपकर्मों का प्रकोप है, किसी देवता का नहीं।


किन्तु बजाए यह सोचने के, कि हम से कहाँ चूक हुई, आप सब मुझे ये बताने में लगे हैं कि मैं अपने राज्य के जल संसाधनों का और भी शोषण कैसे करूँ। और गहरे खुदवाइए, नदियों को अवरुद्ध कीजिए – वाह! कितने उत्तम और ऊंचे विचार हैं आपके!”


कोई कुछ कह नहीं रहा था।


राजा आगे बोले – “अब जो मैं कहने जा रहा हूँ, वह किया जाएगा। आप सब मंत्रियों को उत्तरदायित्व दिया जाता है – पर जैसा कहा जाए, वैसा ही करना होगा। आपकी सोचने की क्षमता मैं देख चुका हूँ। अगर करने की क्षमता उस से बेहतर न हुई तो आप में से कोई भी मंत्री या अमात्य पद पर नहीं रहेगा।


राज्य के सूखे के बहुत कारण मिले, पर उनकी 3 मुख्य श्रेणियाँ हैं –


  1. गलत फसल
  2. अतिक्रमण
  3. रख रखाव न होना


अब, जहां भी धान बोई जा रही है, उस जमीन में पानी 10 हाथ या उस से काम में मिलना चाहिए। जिस गाँव में 10 हाथ में पानी नहीं मिलता, वहाँ धान नहीं बोई जाएगी। इसी प्रकार, यह सूची फसल और उसके लिए कितने हाथ पर पानी होना चाहिए, की है। जो भी किसान इस यज्ञ का पालन नहीं करेगा, उस ग्राम प्रधान पर 11 भाग आय का जुर्माना होगा और उस गाँव को राज्य की ओर से नहीं, उस किसान की ओर से राहत दी जाएगी। किसान यदि स्वेच्छा से अपनी संपत्ति में से राहत न दे, तो उसकी संपत्ति काबिज़ कर ली जाए और फिर उस में से राहत दी जाए। जो अपने आस पास के मनुष्यों के बारे में नहीं सोच सकता, वह किसी दया का पात्र नहीं हो सकता।   


जिस भी गाँव के तालाब या बरसाती खोले पर अतिक्रमण हुआ है, उसे वसंत से पहले पहले हटा दिया जाए, चाहे संपत्ति किसी की भी हो। यदि एक भी बरसाती खोले या गाँव तालाब की भूमि पर घर या खेत पाए गए, तो जिसका अतिक्रमण है उसकी सारी संपत्ति कुर्क कर दी जाएगी और उसके आश्रितों को सरकारी सेवा के लिए 3 पुश्तों तक अयोग्य घोषित किया जाएगा।


तीसरा, रख रखाव न होना – यह सीधे हमारे प्रशासन की गलती है। हर गाँव की हर नाली, हर शहर की हर नहर, हर नाली, साल में 2 बार साफ की जाएगी। अगर किसी नगर में बाढ़ आती है, तो उस नगर के नगर पालक को प्राण दंड दिया जाएगा। उसी समय। यदि किसी गाँव में कोताही होती है, तो ग्राम प्रधान को तत्काल पदनिवृत कर दिया जाएगा और उनके परिवार को 4 पीढ़ी तक प्रशासन सेवा में आने की, या ग्राम प्रधान बनने की अनुमति नहीं होगी। “


सारी सभा में चुप्पी थी। राजा जब अपनी बात कह चुके, तो उन्होंने सारी सभा को गौर से देखा। मंत्री, अमात्य, सलाहकार, सभी कुलबुला रहे थे, पर ऊपर से चुप थे।


राजा अपने स्थान पर बैठ गए।


थोड़ी देर में प्रधान मंत्री अपने स्थान से उठे, और राजा से कुछ कहने की अनुमति मांगी। राजा इसी प्रतीक्षा में थे। उन्होंने अनुमति दी।

प्रधान मंत्री बोले – महाराज, सूखा प्रकृति का प्रकोप है। इसका पूरा श्रेय प्रशासन को देना अन्याय होगा। पूरा प्रशासन पूरे जी जान से प्रजा की सेवा करता है।


राजा मुस्काए और बोले – एक माली अपने बाग को रोज पानी देता था। उसके सारे पौधे सूख कर मर गए। क्या माली निर्दोष है? यह सूखा हमारी आकस्मिक आपदा नहीं, हमारी कड़क चेतावनी है। अगर बात सूखे तक पहुंची है, तो 1 साल में नहीं पहुंची। यह बरसों की कोताही का नतीजा है। और मेरा प्रशासन, अपनी गलती ढूँढने के बदले, प्रकृति को और ध्वस्त करने की बात करता है। यदि राजा होते हुए भी मैं इसकी प्रताड़ना न करूँ, और ऐसे प्रशासन को न सुधारूँ, तो मुझे राजा होने का क्या अधिकार है? यह पहला सूखा है, पर अगर मैंने अभी दृड़ कदम न उठाए, तो बहुत देर हो जाएगी। जो राजा, इतनी बड़ी चेतावनी पा कर भी अपनी असहाय प्रजा को बचाने के लिए प्रबल निर्णय न ले, ऐसा राजा प्रजा के लिए कोढ़ से भी बुरा रोग है। जो प्रशासन अपनी भूल न माने, वह लकवे से भी अधिक अपंग करता है।सब मंत्री समझ गए, कि राजा का निश्चय दृड़ है। उसी साल से राजा की आज्ञा का पालन होना शुरू हुआ और फिर उस राज्य में कोई बाढ़ या सूखा नहीं आया॥“











 


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