Debashis Bhattacharya

Drama Romance

4.9  

Debashis Bhattacharya

Drama Romance

सुमित्रा का पहला प्यार

सुमित्रा का पहला प्यार

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प्यार एक छोटा सा शब्द नहीं हैं, पूरी जिंदगी बिताने के बाद भी इस शब्द का मतलब समझ में नहीं आता और अधूरा रह जाता हैं | प्यार किया नहीं जाता, प्यार हो जाता हैं | कब, कहाँ, किससे और कैसे प्यार हो जाएगा यह कोई पहले से अंदाजा नहीं लगा सकता हैं |


देव और सुमित्रा दोनों गांव के एक स्कूल में पढ़ते थे, पर दोनों के घर एक गांव में नहीं बल्कि अलग अलग गांव में थे | धीरे-धीरे दोनों बोर्ड की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के पश्चात बारह क्लास की पढ़ाई पूरी करने के लिए देव के घर से दो किलोमीटर दूर और सुमित्रा के घर से एक किलोमीटर दूर में स्थित एक उच विद्द्यालय में दोनों दाखिल हुए | अब दोनों के जीवन में यौवन काल बसन्त ऋतु आविर्भाव होने लगे | देव के घर की स्थिति बहुत अच्छा नहीं था, क्योंकि उनके पिता एक सामान्य सरकारी कर्मचारी थे, और सुमित्रा की घर की हालत उससे भी कमजोर थी | देव की यह आकांक्षा थी की ग्रैजुएट होने के पश्चात नौकरी की तलाश में जुटेंगे, जबकि सुमित्रा निर्भर थी उनकी पिता का निर्णय पर, जो खेती में काम करते थे और कब उनकी शादी करा दे भरोसा नहीं किया जा सकता |

आज से पचास सा पहले गांव की हालत अभी जैसे नहीं थी, न ही बिजली-पंखा, न ही मोबाइल और न ही यातायात के लिए बस या गाड़ी | स्कूल-कॉलेज के लिए दूर-दूर तक पैदल चलना पड़ता था | घर आने में थोड़ी सी देर होने पर माता-पिता को हजारों सवालों के जवाब देने पड़ते थे | उस जमाने में प्यार करना, और फिर प्यार में कामयाब होना इतना आसान नहीं था | स्कूल-कालेजों में लड़का-लड़की से मेल-मिलाप बहुत ही कम देखने को मिलता था | प्यार तो तब भी होता था, और आज भी होता हैं, पर उस समय ज्यादातर प्यार हृदय में हँसते-खिलते और इंतजार करते हुए सोचती थी इस दुनिया में मेरे जैसा भाग्यशाली और कोई नहीं अगर मुझे आशिक़/ प्रेयसी मिल जाए, लेकिन मिले तब ना !

स्कूल में हर साल की तरह उस समय वार्षिक खेल-कूद के कार्यक्रम चल रहा था, जब सुमित्रा की सहेली उर्मिला ने कहा, "चल सुमित्रा, आज हम दोनों वार्षिक फुटबॉल प्रतियोगिता देखने ग्राउंड में जाएंगे |" सुमित्रा ने साथ साथ कहा की मुझे अच्छा नहीं लगता | उर्मिला बार-बार कहने लगी की एक बार जा कर देखते हैं, अगर अच्छा नहीं लगता तो हम वापस क्लास में लौट आएंगे | सुमित्रा राजी हो गयी और उर्मिला के साथ मैदान में जा कर एक दूसरे के बगल में कुर्सी पर बैठकर खेल शुरू होने का इंतजार करने लगी | धीरे-धीरे दोनों टीम मैदान में उतरे, बारवीं क्लास के लड़कों ने पिली जर्सी के साथ काली हाफ़ पैंट, और ग्यारवी क्लास के लड़कों ने लाल जर्सी के साथ सफेद हाफ़ पैंट पहन कर खड़े हो गए | उर्मिला ने धीरे से सुमित्रा से पूछा, सुमित्रा, तुझे कौन सी टीम ज्यादा पसंद हैं ? सुमित्रा रंगीन जर्सी के साथ लड़कों को देखते हुए मोहित हो गयी थी और खुशी जाहिर करते हुए कहा ग्यारवी क्लास की टीम मुझे पसन्द हैं, ताकि वह हमारे क्लास को जिताएंगे | उर्मिला ने कहा यह तो मुझे पहले से ही पता था, पर तुझे टेस्ट करने के लिए मैने पूछी थी | खेल शुरू हो गया, उर्मिला ने फिर दूसरा सवाल पूछी, अब बता कौन तुझे अच्छा खिलाडी लग रहा हैं ? उसी समय देव को देखा बॉल के साथ दौड़ता हुआ, बहुत कोशिश किया गोल दागने, पर चूक गया | सभी दर्शकों ने उत्तेजित हो कर खड़े हो गए, उर्मिला को उसके प्रश्नों का जवाब नहीं मिला | उसी समय अचानक बॉल बाउंडरी लाइन के बाहर आ कर सीधा सुमित्रा के ठीक पैर के नीचे रुक गई | सुमित्रा क्या करेगी सोचने लगी, ठीक उसी समय देव सामने आ कर खड़ा हुआ, आंखें फाड़ कर सुमित्रा को देखा और कहने लगा, "बॉल तो दे दो, खेल रुक रहा है |" दो पल के लिए सुमित्रा और देव की नजरे एक दूसरे को कुछ कहना चाहती थी, दोनों को ही आँखों में प्यार की झलक दिखाई दे रही थी | देव कुछ कहे बिना अपने हाथ को आगे बढ़ाकर बॉल को छुने की कोशिश की, तभी सुमित्रा ने आहिस्ता से बॉल को नीचे से उठाकर उसके हाथों में सौंप दिया, देव थोड़ा सा मुस्कराने के बाद दौड़ के चला गया |

दो पल को देव की नजरे और उसका मुस्कराता हुआ मिठास चेहरा सुमित्रा के इतने दिन तक बंद पड़े हुए हृदय की द्वार को अचानक हिला दिया, उसकी हृदय की धड़कने थोड़ी तेज हो गई | एक लड़की दूसरी लड़की की भावना को जानने के लिए लड़के से ज्यादा उत्सुक होती हैं | उर्मिला को इतनी देर तक सुमित्रा से कोई जवाब न मिलने पर उसके कान के पास मुँह ला कर कहने लगी, चल सुमित्रा, अभी हम क्लास में जा कर बैठेंगे, यह खेल इतना अच्छा नहीं हैं | सुमित्रा के मन में तब तक प्रेम की तरंग लग चुकी थी ; कहा, अभी तो खेल बहुत अच्छा चल रहा हैं , खेल को पूरा देखने के बाद ही जायेंगे | उर्मिला कहने लगी, हाँ...जी...हाँ, अब तो तेरी खेल शुरू हो गई ; अभी तू खेल की मैदान में नहीं हैं, देव की दिल में बैठने की सोच रही....हैं न ? सुमित्रा थोड़ी सी शर्मा गई और बोली, उर्मिला, तुझे पीछे पड़ना अच्छी लगती हैं क्या ? खेल में देव ने अच्छा प्रदर्शन करता रहा और गोल दागने पर चारो ओर सभी दर्शकों ने तालियां देने लगे, ताली देते देते सुमित्रा भूल गई की सब चुप हो गए | उन्होंने ताली देना बंद न करने पर उर्मिला जोड्से उनकी हाथ पकड़ ली और कहने लगी, अभी तो बंद कर, मुझे सब पता चल गई | शर्म से सुमित्रा अपना जीव को दन्त से धीरे से काटते हुए....इस.....

कुछ दिनों के बाद स्कूल में वार्षिक पुरस्कार वितरण अनुष्ठान का आयोजन किया गया था जिसमे सभी छात्रों अपने परिवार के साथ मनोरंजन कार्यक्रम देखने उपस्थित हुए थे | छात्रों-छात्राओं एक साथ बैठकर कार्यक्रम देखने लगे, बिजेताओं का नाम प्रधान शिक्षक ने एक-एक करके पुकारने लगे, प्रशंसा पत्र के साथ एक गिफ्ट पैक शिक्षक के द्वारा विजेताओं को दिए जा रहे थे | क्लास में प्रथम स्थान पाने के लिए जब देव का नाम पुकारा, सभी आश्चर्यचकित हो गए, खेल के साथ-साथ उन्हें पढ़ाई के लिए भी पुरस्क़ृत किया गया | देव सभी छात्रों-छात्राओं के बिच में से खड़ा होकर शिक्षक के पास जा कर अपना पुरस्कार को दोनों हाथों से पकड़ कर जब भीड़ के अंदर से आने लगा, अचानक हाथ से क्लास में प्रथम स्थान पाने पर जो प्रशंसा पत्र मिला था वह नीचे गिर गया | खुशी-खुशी आने पर इतना ध्यान नहीं दे पाया | देव काफी शर्मीला प्रकृति का लड़का था | उन्हें बहुत दुःख तो हुआ पर इतना हिम्मत नहीं था की भीड़ में जा कर सभी लड़कें-लड़कियों से कहें की जिन्हें प्रशंसा पत्र मिला वह उनको वापस कर दे | अचानक जहाँ पर प्रशंसा पत्र देव के हाथ से नीचे गिरा वहा पर बैठी थी सुमित्रा, ठीक उनकी गोद पर वही प्रशंसा पत्र गिरा | प्रशंसा पत्र गिरते ही सुमित्रा ने उठा कर देने के लिए शिर को उठायी तो देखी देव काफी आगे चले गए थे | एक बार सोचती रही क्या देव ने उन्हें प्यार का इजहार करते हुए जान-बूझकर उनका प्रशंसा पत्र उनके पास फेंक तो नहीं दिया या फिर गलती से उनका हाथ से नीचे गिर गया ! अगर गलती से नीचे गिरा तो उन्होंने क्यों नहीं उठाया ! ठीक हैं, अगर उन्होंने मुझे यह सर्टिफिकेट नहीं दिया तो जरूर स्कूल में आकर मांग लेगा, फिर भी नहीं मांगा तो मैं यह सोचूंगी की उनका मूझसे प्यार हो गया हैं |

घर में आते ही देव का माता-पिता-भाई खूब अफ़सोस करने लगे की इतना दिन मेहनत करने के पश्चात जो प्रशंसा पत्र उन्हें मिला, उसे ही खो दिया | जब सरल मन की देव कहने लगे की उनके पास वह गिफ्ट तो है जो स्कूल से मिला था, तब उन सभी हँस परे यह कहकर की गिफ्ट तो बजार से कोई भी खरीद सकता है, पर प्रशंसा पत्र को दोवारा नहीं बनाया जा सकता | बेचारा देव क्या करे, अपने आपको धिक्कारने लगा और मन ही मन यह भी सोचा यह सर्टिफिकेट दूसरा कोई लेकर भी क्या करेगा, उस पर तो देवदास दत्ता का नाम लिखा हैं | अगर किसी को मिला हैं तो कुछ दिन बाद स्कूल खुलने के पश्चात जरूर उन्हें वापस लौटाएंगे |

स्कूल खुलने के बाद जब दो-एक सहपाठियों से पूछा तो उन छात्रों ने जवाब दिया की किसी ने नहीं देखा उनका प्रशंसा पत्र को| क्लास की लड़कियों से उस ज़माने में बात करना इतना आसान नहीं था, और कोई लड़की उनका प्रशंसा पत्र को लेकर क्या करेगी !

कुछ सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब देव ने सुमित्रा से उनका सर्टिफिकेट नहीं मांगा तो सुमित्रा ने प्रशंसा पत्र को गले लगा कर दो बार चूम ली और मन ही मन कहने लगी,"देव, मैं जानती हूं तुम मुझे बहुत प्यार करते हो”, तत्पश्चात फिर एक डायरी के अंदर उसे प्यार से रख दी | यह घटना उर्मिला को कुछ दिनों बाद पता चली, सुनकर उर्मिला को बहुत गुस्सा आ गई और वह डांटने लगी यह कहकर की दूसरे का कोई भी व्यक्तिगत सामान को अपनी पास रखना उचित नहीं हैं ; देव का सर्टिफिकेट देव को ही वापस दे देना चाहिए | सुमित्रा को एक बार गलती की अहसास होने लगी, फिर यह भी सोची देव ने उसी से प्यार किया होगा | सर्टिफिकेट को मेरी पास फेंक कर प्यार का इजहार किया होगा, पर कैसे लौटाएंगी समझ में नहीं आयी | मन में डर होने लगी की यदि एक महीने बीत जाने के बाद देव का सर्टिफिकेट उन्हें वापस करने पर वह प्रधान शिक्षक को शिकायत कर देगा तो उन पर पुरे क्लास के छात्रों-छात्राओं और स्कूल के सभी शिक्षकों उन पर टूट पड़ेंगे एवं वह किसी को मुँह दिखाने की काबिल नहीं रहेंगी | उर्मिला ने साड़ी बात सुनकर कही की इस विषय पर तू एक अच्छी से खत लिख और लिफाफा के अंदर डाल कर दे देना | सुमित्रा ने राजी हो कर प्यार से एक चिट्ठी लिखी और लिफाफा के अंदर डाल कर उर्मिला को दे कर कही की यह सर्टिफिकेट जरूर देव को दे देना, मेरी हिम्मत नहीं हो रही हैं की उसका दिया हुआ प्यार उसीको वापस कर दूँ | उर्मिला ने भी कह दी की देव का सर्टिफिकेट देव को ही वापस कर देगी | कभी-कभी इंसान सोचते कुछ, होते और कुछ ; उर्मिला जब स्कूल में देव को लिफाफा देने गयी तो उन्हें पता चली की एक दिन पहले ही देव ने टी सी लेकर स्कूल छोड़कर चला गया दूर कहीं दूसरा स्कूल में दाखिल होने के लिए, क्यों की उनका पिता का दूसरा जिला में स्थानांतरण हो गया था | उर्मिला निराश होकर आयी और लिफाफा को सुमित्रा की हाथ में लौटाई | सुमित्रा की दिल में हथौड़ा पीटने लगा ; बहुत कुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं पायी, हताश हो कर उर्मिला से पूछी अब मैं क्या करू ? उर्मिला ने देखी सुमित्रा की आँखों में प्यार की आँसू | उन्हें उत्साहित करने के लिए कही, कोई बात नहीं हैं, किसी न किसी दिन देव एक बार कम से कम जरूर आएगा, तब दे देना ; मान लो नहीं आया, तब उनका घर का पता, पता करके पोस्ट ऑफ़िस के द्वारा भेज देना | रोज स्कूल के बरामदा से, कभी खिड़की से बाहर की ओर नजरे टिका कर देखती रहती थी कव आ कर देव उनसे मिले | एक दिन….दो….दिन…., एक महीने…..दो महीने गुज़रते गुज़रते साल बीत गए पर देव वापस नहीं आया |

समय किसी का इन्तजार नहीं करता, सुमित्रा की शादी की तिथि पक्की हो गई | उनकी पिता ने एक ऐसा लड़का को पसंद किये जो एक मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव थे |


सुमित्रा की प्यार दिल में ही दफ़न हो गई, मन प्यार की प्यासी रह गयी | जिंदगी में सबसे ज्यादा आनंद मिलती हैं प्यार में, जिसे खो जाने के गम में हताश हो कर कष्ट को चुपचाप सहते हुए अपनी ससुराल की ओर जाने में तैयार हो गयी | शादी के लिए उन्हें जो कुछ मिला था सब कुछ एक स्टील की ट्रंक में रख कर एक बार देख ली की कोई सामान छूट तो नहीं गया | अचानक स्कूल के पुराने पुस्तकों के अंदर वह डायरी दिखाई दी , जल्दी उठाकर कई पन्नों उलटने के बाद देव को लिखी हुई चिट्ठी जो लिफाफा के अंदर थी दिखाई दी | उसे देखकर सोचती रही यह कोई काम की नहीं हैं, एक बार लिफाफा खोल कर प्रशंसा पत्र को देखी और फाड़ने लगी, देव का मिठास मुस्कराते हुए चेहरे आँखों के सामने आने लगा |उस दिन की यादें फिर से ताजा होकर मन में झाँकने लगा ; सर्टिफिकेट को फाड़ नहीं पायी, दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी छाती से लगाकर मन ही मन कहने लगी, "देव, मैं तुमसे सचमुच बहुत प्यार की थी, इस जनम में तुम मेरी हो न सका, फिर भी मैं तुम्हारा यह प्रशंसा पत्र कभी फारूँगी नहीं, कियोंकि इस पर तुम्हारा नाम लिखा हैं | जब-जब मुझे किसी प्रकार की तकलीफ़ होगी, तब मैं यह सर्टिफिकेट पर लिखा हुआ तुम्हारा नाम को देख कर शांत हो जाऊँगी, और मैं परमेश्वर से यह प्रार्थना करती हूं कि तुम्हें सदा खुश रखें | तुमसे मैंने प्यार किया, इसलिए तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी हैं | इस जिंदगी में कभी किसी वक्त अगर तुमसे मुलाकात हो जाये तो तब तुम्हारा यह प्रशंसा पत्र तुम्हें मेरी प्यार से लिखी हुई चिट्ठी के साथ लौटा दूंगी | अब मैं इसे स्टील ट्रंक की सबसे नीचे अपनी शादी की बनारसी साड़ी के अंदर रख देती हूं….” इतना कहकर ट्रंक के अंदर सर्टिफिकेट को रखकर नई दुल्हन बनकर चली गयी दूल्हा के साथ

ससुराल |

सुमित्रा की पति माधव जो एक मैडिकल रिप्रेजेन्टेटिव थे, बहुत मेहनत करके थोड़ा बहुत कमा लेते थे | वो अपने बैग के अंदर एक डायरी रखते थे, जिस पर कब, कहाँ, किससे मिलना हैं उसमे लिखा रहता था | स्वभाव में माधव एक अच्छा इंसान थे, पर उनका गुस्सा जल्दी आ जाता और फिर थोड़ी देर के बाद शांत भी हो जाता था | सुमित्रा धीरे धीरे माधव के अनुसार अपने आप को ढाल ली, और उनके घर की सुख-दुःख में बड़ी भूमिका निभाती रही |

काफी दिन बीत जाने के बाद एक दिन सुमित्रा से बहुत बड़ी गलती हो गयी, जब वह माधव के कपड़े धोने लगी, अचानक गलती से उनका वह छोटा सा डायरी पानी में गिर गया, जब पानी से उठायी तब उस पर लिखे हुए सारे नाम और पता मिट गए | भीगा हुआ डायरी ले कर जब डरती हुई माधव को दिखाने लगी, माधव अपना क्रोध को क़ाबू न कर सका और बहुत गाली देने लगे, सुमित्रा बार-बार माफ़ी मांगने लगी, लेकिन उनके गुस्सा कम नहीं हुआ | आख़िर एक जोड़ से धक्का दे कर कहा, "जाओ, तुम मेरा सामने से अब भी निकल जाओ | मेरा कम-धंधा को चौपट करके खड़ी खड़ी मुँह क्या देख रही हो ! जाओ, निकल जाओ, दोबारा मेरे पास मत आना |" अचानक धक्का लगने से सुमित्रा अपनी आप को संभाल नहीं पाई, और गिर पड़ी, कमर में दर्द होने लगी | माधव घर से निकल गया, और सुमित्रा नीचे गिर कर रो पड़ी | बहुत दुःख होने के कारण, दोपहर में खाना भी नहीं खायी, शाम होने के बाद स्टील ट्रंक को खोल कर साड़ी के अंदर से पुराना सर्टिफिकेट को निकाल कर देखने लगी, लिखा हुआ देवदास के नाम के ऊपर दो चार वार अँगुली से आहिस्ता-आहिस्ता से स्पर्श करने लगी, अचानक आँखों से दो बूँद पानी सर्टिफिकेट के ऊपर गिर गई, सुमित्रा की दिल की धड़कने तेज हो गई और मुँह से धीरे से निकल आई "देव, तुम ठीक तो हो न ?" आँखों की पानी से देव नाम मिट गया और दास दत्ता रह गया ; जल्दी दरवाजा को बंद करके बिस्तर के ऊपर बैठकर एक कलम ले कर बहुत ही प्यार से दास से पहले पुनः देव लिख दी और बार-बार देखने लगी सर्टिफिकेट को देखने से ठीक पहले जैसा लग रही हैं या नहीं..... उसी समय बाहर से दरवाजा को बारबार धक्का देने की आवाज आने लगे | जल्दी उठ कर स्टील ट्रंक को खोल कर उसी जगह साड़ी के अंदर सर्टिफिकेट को छिपा कर रख दी और धीरे से दरवाजा खोली एवं देखते रह गयी बाहर खड़े नतमस्तक माधव और उनकी माँ | माधव की माँ ने कहने लगी "मेरा बेटा ने अपना गलती मान लिया हैं, मैं भी उसे खूब डाँटा, अब तुम भी माफ़ कर दो, हम सब एक ही परिवार में रहते हैं, कभी कभी उल्टा सीधा बात हो जाते हैं, उसे दिल में मत रखो | तुम खाना नहीं खायी तो बेटा भी नहीं खाया, और मैं, माँ हो कर कैसे खा लू, हम तीनों किसी ने खाना नहीं खाये | अब तुम आ जाओ, हम सब मिल कर खाएंगे |" माधव की माँ के चले जाने के बाद माधव धीरे से घर के अंदर आया और बोला, " सॉरी, मुझे माफ़ कर दो |" सुमित्रा तेजी से सामने आ कर माधव को पकड़के गले लगा ली, उनकी आँखों में आँशु थी, आहिस्ता से पूछी, "तुम भी खाना नहीं खाया ?" माधव धीरेसे बोला, " तुम्हारे बगैर मैं कैसे खा लू ?" यह कहकर सुमित्रा को प्यार करने लगे एवं उनकी आँशु को रुमाल से पोंछ दी |

समय के अनुसार जिंदगी की गति बदलते बदलते शादी के बाद चालिस साल बीत गयी, माधव अब एक व्यापारी बन गए हैं, दिन भर उनके मैडिकल स्टोर चलाने के लिए दुकान में ही बैठे रहते हैं | उनका एक लड़का और एक लड़की, दोनों की शादी हो गयी हैं | लड़की सुभद्रा शादी करके मुंबई चली गयी उनकी पति के साथ, और लड़का राघव अपना पिता के साथ मेडिकल स्टोर में ही काम करता रहा | घर में सुमित्रा और उनकी बहू मीनाक्षी दोनों रहती हैं | कुछ दिनों से सुमित्रा की पेट में काफी दर्द महसूस होने लगी, दवाइयाँ से भी कम नहीं हो रही हैं | माधव दुकान का काम-धाम सब कुछ राघव को समझा कर सुमित्रा को साथ ले कर ईलाज के लिए कोलकाता चले गए | दो-तीन दिन बाद सब कुछ चैक अप कराने के पश्चात पता चला की उनकी लीवर कैंसर की बीमारी काफी बढ़ गयी हैं और इस समय कोई इलाज नहीं किया जा सकता | माधव बहुत हताश हो कर घर लौट आये और किसी को ज्यादा कहे भी नहीं | केवल इतना सभी को बोले सुमित्रा जब जो कुछ भी मांगेगी उन्हें दे देना या उससे पूरा करना | आँखों के सामने दिन प्रतिदिन सुमित्रा की हालत बिगड़ने लगी, माधव धीरे से पूछे की वह क्या चाहती हैं | सुमित्रा बोली, " कई साल हो गयी, मैं अपनी पिता के घर गांव में नहीं गयी | अब तो पिताजी या माताजी कोई जिन्दा नहीं हैं, पर मुझे गांव देखने की बहुत इच्छा हो रही हैं | तुम मुझे ले चलोगे मेरी गांव और मेरी स्कूल जंहा मैं बचपन में पढ़ी थी को दिखाने के लिए ? वस, केवल एक दिन के लिए मेरी भाई के पास जो अभी गांव में रहता हैं |" माधव सुमित्रा की हाथ पकड़ कर बहुत ही मुश्किल से खुद को संभाल के जवाब दिए हम चलेंगे |

माधव स्विफ़्ट डिजायर कार को गैरेज से निकाल कर गाड़ी की सह-चालक की सीट पर सुमित्रा को बैठा कर खुद चलाने लगे | कई घंटों की सफर हैं, बीच-बीच में जब सुमित्रा की ज्यादा दर्द होने लगी तब गाड़ी को रोक कर उन्हें दवाइयाँ देने लगे | अब गाड़ी मैन रोड से गांव की रास्ता पकड़ ली, गाड़ी की स्पीड भी कम होने लगी, रास्ता भी ज्यादा चौड़ा नहीं हैं | एक गाड़ी दूसरा गाड़ी को ओवरटेक करना या पास देने में थोड़ा वक्त लग जाता, रास्ता ख़राब होने के कारण माधव गाड़ी को धीरे-धीरे चलाने लगे | अचानक सुमित्रा की तबीयत ज्यादा खराब होने लगी, उल्टी शुरू हुई एवं खून निकल आयी | चुपचाप साइड ग्लास को नीचे खींचकर बाहर मुँह से उल्टी को फेंकने लगी इसलिए की माधव को पता न चले | माधव गाड़ी चलाना रोक दिया और पूछा, "सुमित्रा, तुम्हारी तबीयत तो बहुत ख़राब लग रही हैं ?" सुमित्रा रुमाल से मुँह को पोंछ ली, और कही, " जी नहीं, दवाइयाँ खा रही हूं, कुछ दिनों बाद सव ठीक हो जाएगी |" माधव बहुत चिंतित हो कर गाड़ी स्टार्ट देने लगे, उसी समय एक गाड़ी उल्टा दिशा से आने लगी, वह गाड़ी नजदीक आने पर गाड़ी के अंदर बजता रहा किशोर कुमार का वह गाना "मेरे सपनों की रानी कव आयगी तू, आयी रूप मस्ताना कव आएगी तू, बीती जाए जिंदगानी कव आएगी तू, चली आ, आ तू चली आ....side mirror से सुमित्रा की नजरे जब उसी गाड़ी की चालक की सीट पर टीकी तो आश्चर्यचकित हो कर बड़े बड़े आँखों से देखने लगी.....क्या वह देव तो नहीं हैं !!! देव का याद आ गयी, दिल की धड़कन तेज़ हो गयी, मन ही मन कहने लगी, "देव, तुम ठीक तो हो न ? भगवान तुम्हें सदा खुश रखें |" शिर को बाहर हिला कर अच्छी से देखने लगी, तब तक वही गाना....आ, आ तू चली आ बजती हुई धुंआ निकल कर गाड़ी आगे जा कर ट्रैफिक के अंदर खो गयी | कुछ पल के लिए सुमित्रा की साडी बीमारी ख़त्म हो गयी थी, पास में बैठकर माधव को सब कुछ दिखाई दे रहा था | उन्होंने पूछा, " सुमित्रा, तुम क्या उन्हें जानती हो ?" सुमित्रा बहुत मायूस हो गयी थी, जल्दी खुद को संभाल ली और बोली, लग रही थी की उन्हें कभी गांव में देखी होगी | माधव ने कहा, और थोड़ी देर में जाएंगे | गांव में जाने से पहले सुमित्रा को उनकी पुराना स्कूल दिखाई दी, खुश हो कर माधव को कहा, दो मिनिट के लिए गाड़ी रोकोगे ? माधव खुश हो कर गाड़ी को स्कूल के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया | सुमित्रा जल्दी गाड़ी से उतर कर स्कूल के अंदर जाने लगी तो माधव ने बोला, तुम जाओ, मैं यहां गाड़ी के पास में खड़ा हूं, तब तक एक सिगरेट पी लेता हूं | सुमित्रा बहुत जल्द सीढ़ी चढ़कर दूसरा मंजिल में जा कर उसी जगह में खड़ी हो गयी जंहा से स्कूल में पढ़ने के दौरान देव का राह देखा करती थी ताकि उनका सर्टिफिकेट उन्हें लौटा दिया जा सकें | आज स्कूल छुट्टी हैं, चारो ओर सुनशान जैसा लग रही हैं, कुछ दूर में फुटबॉल मैदान के ओर नजर जाते ही उस दिन का घटना आँखों के सामने छा गयी और देव का स्वर कानों में गूंजने लगी, "बॉल तो दे दो.." मन ही मन मुस्कुराती हुई सुमित्रा ने धीरे से बोली, " आ जाओ, मैं तो तुम्हारे लिए ही खड़ी हूँ |" सिगरेट पीने के बाद सुमित्रा की देरी हो रही सोच कर माधव धीरे से उनकी पीछे आकर खड़ा हुआ तब सुमित्रा की आवाज सुनकर खुश हो कर बोले, "मुझे पता था की तुम मेरा ही इंतजार कर रही हो |" सुमित्रा चौंक गयी....और कहने लगी...हूं...न...मतलब....माधव ने कहा कोई बात नहीं, यहाँ से केवल दो-पांच मिनिट का ही तो रास्ता हैं, तुम्हारी घर जाने की |

घर पहुँचने के बाद कोई पुराने रिश्तेदारों एवं गाँव वालो से मिलने के बाद सुमित्रा की खुशी इतनी हुई की उन्होंने भूल गयी की वह इस दुनिया में वस केवल दो दिन की ही मेहमान हैं | उन्हें हंसी खुशी देखकर माधव का दिल में थोड़ा खुशी की उमंग दौड़ रहा था | कुछ देर बाद जब वापस आने की तैयारी कर रहे थे, उसी समय अचानक उर्मिला अपने पति के साथ वहा पर पहुँच गए | सुमित्रा उन दोनों को देखते ही इतनी खुश हुई की उनकी आँखों में आंशु आ गयी | बहुत दिनों के बाद सुमित्रा से मिलते ही उर्मिला कि दिल में खुशी की लहर बहती रही, इतनी खुश हुई की बगल में खड़े माधव को भी देख नहीं पायी | थोड़ी देर बाद सुमित्रा ने उर्मिला से माधव का परिचय कराने के बाद, उर्मिला अपनी घर में ले जाने की आग्रह करती रही | अंततः सुमित्रा उर्मिला की घर में दो पल गुजरने के लिए माधव को साथ उनके घर गए | कुछ दिन पहले उर्मिला इस गाँव में अपनी पति के साथ आयी थी, और इस मौके पर सुमित्रा से मुलाकात होगी कभी सपने में भी नहीं सोची थी | उनकी घर पहुंचने के बाद देखी की उर्मिला ने बहुत सारे बन्दोबस्त करते हुए सब को चाय पिलाने लगी | सुमित्रा के पास बैठकर उर्मिला धीरे से पूछी उस दिन की वह सर्टिफिकेट को उन्होंने कैसे देव को लौटायी थी| तब सुमित्रा ने कहने लगी की उसके बाद उनकी देव से कभी मुलाकात नहीं होने के कारण वह सर्टिफिकेट उनको नहीं लौटा पायी, और आज तक उनकी पास ही पड़ी हैं | सुमित्रा को पता नहीं थी की उसे क्या बीमारी हैं, फिर भी बोली मेरी तबीयत बहुत ख़राब रहती हैं | सुनकर उर्मिला ने बचन दे डाली की जैसे भी हो, जंहा से भी हो, उन्होंने देव का पता, पता करके एक बार उनकी पास ले आएगी ताकि उनका पुराना सर्टिफिकेट को लौटाया जा सकें | सुमित्रा हंसने लगी और कही, अब तो वह भी भूल गया होगा की उसे कव और कहाँ पुरस्कार मिला था | फिर भी, तुझे पता नहीं उन्होंने वह सर्टिफिकेट तो मुझे दिया था, वह भला कैसे वापस लेगा ? आज भी मैं उससे बहुत ही सावधानी से रखी हूं; उस पर तो मेरी प्यार की पहली चिट्ठी लिखी हुई हैं, उससे तो कभी मिटाया नहीं जा सकती |


दिन प्रतिदिन सुमित्रा की हालत ख़राब होने लगी, पहले जैसा चलने-फिरने, उठने-बैठने में उनकी बहुत ही कष्ट होती हैं | धीरे-धीरे खाना-पीना सब छोड़ दी, बातचीत भी बहुत कम करने लगी, डॉक्टर और दबाई कुछ भी काम नहीं कर रहा हैं | उनकी लड़की सुभद्रा मुंबई से चली आयी हैं, माधव भी रात दिन उनके पास रहने लगे | एक दिन उनकी बोलचाल बंद हो गयी, जब बहुत दर्द होने लगती, तब हाथ को थोड़ी सी हिलाकर पेट में रख कर अस्फुट स्वर से समझाना चाहती ; एक समय दर्द इतना ज्यादा होने लगा की उन्होंने सहन नहीं कर पायी, बार-बार हाथ हिला कर कुछ इशारा करती रही | सुभद्रा जब नजदीक आकर आहिस्ता से पूछने लगी, तब बोली सभी को चले जाने के लिए | धीरे-धीरे सब घर से निकल गए, केवल सुभद्रा अपनी माँ के पास रह गयी, बहुत ही मुश्किल से इशारो से समझाने लगी की स्टील ट्रंक को खोल कर उसके अंदर से उनकी रखी हुई लिफाफा को देने के लिए | सुभद्रा धीरे-धीरे स्टील ट्रंक को खोल कर उनकी माँ की शादी की जोड़ी की अंदर रखी हुई लिफाफा को निकल कर सुमित्रा को सौंप दी | सुमित्रा धीरे से लिफाफा को खोल कर देव का प्रशंसा पत्र को निकाली और आँखे खोल कर देखने लगी | अचानक सब कुछ अँधेरा दिखाई देने लगी, दोनों हाथ कांपने एवं दोनों आंख धीरे धीरे बुझने लगी, तब तक घर के अंदर माधव के साथ उर्मिला और उनके पति एवं एक आदमी आ गए | सुमित्रा की हालत देखकर उर्मिला रोने लगी, अपनी रुमाल से अंशु पोंछकर कहने लगी, "सुमित्रा, सुमित्रा...देख देख कौन आया हैं; मैं तेरे लिए देव को लाया हूं , देख तेरी सामने खड़ा हैं...| सुमित्रा की बुझती हुई आंखें धीरे से खुलने लगी, कुछ बोलने की कोशिश की पर बोल नहीं पायी | हाथ में जो चिट्ठी पकड़ रखी थी, बहुत मुश्किल से उठाकर देव को देने की कोशिश की, देव अपना शरीर को झुका कर दोनों हाथो से सुमित्रा की हाथ से चिट्ठी को जब पकड़ने लगा, सुमित्रा की ओंठ में थोडीसी मुस्कान दिखाई दी और दोनों आँखों से दो बूंद आँसू निकल आई, फिर धीरे धीरे आंखें बुझ गयी और गर्दन हिल गयी यह कहकर “इस दुनिया से विदाई |” देव अपनी प्रशंसा पत्र को देख कर पत्थर बन गए | उससे पलटते ही पीछे की ओर दिखाई दी खूबसूरत एक गुलाब फूल की चित्र, फूल के बीच में सुन्दर हृदय की चित्र बना कर उसमे छोटा छोटा अक्षरों से देवदास लिखी हुई थी, साथ ही दो लाइन की चिट्ठी जो करीब चालीस-वलिश साल पहले लिखी हुई थी |मेरी प्रियतम देव, तुम्हारा प्रशंसा पत्र जब मेरी गोद पर गिरी थी, तब सोची थी की मुझे प्यार मिल गयी, और यही सर्टिफिकेट को मैं अपनी प्यार समझ कर बहुत ही सावधानी से रख दी | मेरी भ्रम थी या नहीं मैं नहीं जानती, पर तुम सदा मेरी दिल में रहोगे | तुम्हारा पत्र लौटाने में देर हो गयी, मुझे माफ़ कर देना |


तुम्हारा आराधिका

सुमित्रा |






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