सत्य की खोज
सत्य की खोज
मैंने भगवान से पूछा- "हम सभी आपकी मूरत क सामने खड़े होकर भजन गाते हैं, दीप जलाते हैं, आपको पूजते हैं, आपसे प्रार्थनाएँ करते हैं, सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए। क्या आप सच में यही हैं ? सत्य क्या है ? क्या आप हमें दर्शन दे सकते हैं ? हम आपके दिव्या स्वरुप के दर्शन करना चाहते हैं।"
मुझे अचानक मेरे भीतर एक आवाज़ आयी- "मेरे दोस्त मुझे ध्यान से सुनो। मैं तुम्हारे भीतर ही हूँ, तुम मुझे किसी भी रूप में याद करोगे मुझे बहुत प्रसन्नता होती है। यदि मैं तुम सबके सामने अभी प्रकट हो जाऊँगा तो मनुष्य खुद का वजूद भूल कर मुझ पर निर्भर हो जाएगा। मेरा उद्देश्य तुम्हें निर्बल बनाना नहीं है।
मैंने मनुष्य को बनाया जिससे वो अपने कर्म करे। सुख और दुःख दोनों भोगे। जितने भी लोग मुझसे सिर्फ सुखी जीवन की प्रार्थना कर रहे हैं, मैं इन सभी भक्तों को ये सीख देना चाहता हूँ कि सुख और दुःख दोनों जीवन में आएंगे। जीवन कभी एक समान नहीं होता।
मेरा सन्देश:
जिस तरह प्रकृति के नियम होते हैे- दिन और रात दोनों अपने समय पे आते हैं, उसी तरह मनुष्य के जीवन में अगर अँधेरा आया है तो एक न एक दिन सूरज की किरणे भी आएँगी। यदि मैं चाहता तो महाभारत के महा युद्ध में अपने सुदर्शन चक्र से एक झटके में युद्ध समाप्त कर देता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया।
मैंने अर्जुन द्वारा इस मानव जाति को एक सन्देश देने का प्रयास किया है। जिससे मनुष्य खुद पे विश्वास करके अपने फैसले खुद ले सके। मेरे मित्र स्वयं को पहचानो। समस्या से मत भागो उसका हल निकालो, मैंने तुम्हारी रचना की, तुम सोचने और समझने क लिए बुद्धि दी, इस्तेमाल करो, देखने क लिए आँखें दी, अपने लक्ष्य की और ध्यान दो। मैं को भटकने मत दो, अच्छा देखो।
सुनने के लिए कान दिए, अच्छा सुनो और अच्छे कर्म करो। पैर चलने के लिए दिए, पलायन करके डर के भागने के लिए नहीं। मुख दिया, किसी की आत्मा दुखाने के लिए नहीं, लोगों को सही वचन बोलकर आगे बढ़ावा देने के लिए, हमेशा अच्छे वचन बोलो, अपनी इन्द्रियों को वश में करना सीखो, मेरे मित्र वरना तेरा जीवन व्यर्थ है।
मैंने तुम्हारे शरीर को किसी न किसी कारण से हे बनाया है, इसका सही इस्तेमाल करो।
क्या तुम्हें मेरी रचना पे विश्वास नहीं ? मेरे दोस्त जो तुम हो वही तो मैं हूँ।"
इन्हीं आवाज़ों ने मेरी आँखे खोल दी और मेरे अन्धकार को समाप्त कर दिया। मुझे एक अजीब सा सुकून मिला। ऐसी शान्ति मुझे पहले कभी नहीं मिली।
कहानी से सीख:
सत्य तो मैं ही हूँ। मैं हर पल ईश्वर से जुडी हुई हूँ, भगवान् मुझे मंज़िल ज़रूर दिखा सकते हैं लेकिन रास्ता चुनना मेरा कर्म है। मेरे आत्मविश्वास में ही ईश्वर बसा हुआ है, मेरा जवाब मेरे बाहर नहीं मेरे भीतर ही मिलेगा।