सतरंगी पल
सतरंगी पल


हमारी जिंदगी जब से शुरू होती है तब से पल जुड़ने शुरू हो जाते हैं कुछ अच्छे और खुशनुमा और कुछ मन को कचोटने वाले, पल तो पल होते हैं चाहे अच्छे हो या बुरे इन सब पलों से ही हमारी जिंदगी बनती है सतरंगी। तभी वो हमारे दिल और दिमाग में यादों की एक किताब बनाते हैं। एक सतरंगी याद मुझे आज भी याद है मैं नैनिताल मैं पढ़ती थी साथ मैं एक नौकरी भी करती थी तो शाम का समय था मुझे लगा क्यों ना पैदल ही घर की ओर चलना चाहिए, एक तो पहाड़ी जगह में मुझे मौसम कुछ ज्यादा ही सुहावना लगता था पैदल रास्ते पे काफी मंदिर है, नैनिताल में दर्शन मात्र से मन भक्ति मय हो जाता है।जब मैं दर्शन करके मंदिर से लौटी तो देखा तालाब किनारे बना एक कमरा था उसमें कुछ कुत्ते के बच्चे बन्द हो गये शायद गलती से उनकी मां बहुत परेशान हो रही थी ऐसा प्रतीत हुआ उनकी मां बार बार उनके पास जाती और निराश ही वापस लौट जाती। शाम का समय था अंधेरा भी होने ही वाला था।बस मुझे उस वक्त पे एक ही उद्देश्य नजर आ रहा था कैसे उन बच्चों को बाहर निकाल कर उसकी मां को दे दूं बस। काफी कोशिश के बाद बच्चों को बाहर निकालने में मैंने सफलता हासिल कि तब जा के लगा शायद मैंने अच्छी कोशिश की। मां और बच्चों ऐसे एक दूसरे पे ऐसे लिपट गये जिस को शब्दों में कहा नहीं जा सकता। वो पल मुझे कभी भुलाया नहीं जा सकता। वो सतरंगी याद मुझे हमेशा ही गुदगुदा जाती है ।