Preeti Sharma "ASEEM"

Thriller

3.5  

Preeti Sharma "ASEEM"

Thriller

स्त्री

स्त्री

4 mins
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कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगते ही सब प्रवासी मजदूर अपने- अपने घर चलें गयें। महेश अपने घर जा रहा था बसें भी ना के बराबर चल रही थी। एक बस में बड़ी मुश्किल से छत पर बैठकर वह गांव की तरफ चला लेकिन बस वाले ने चार गांव पीछे ही छोड़कर बोल दिया कि इस गांवों में बस नहीं जाएगी। बस अब हनुमानगढ़ डिपू पर ही छोड़ दी जाएगी।

      सारी सवारियों वहीं उतर गई। चलो कोई बात नहीं 10 -12 किलोमीटर की बात है पैदल चल लेंगे। यह सोचकर सभी यात्री अपना समान उठा कर चलने लगे महेश भी अपने कंधे पर बैग डालकर अपने गांव की तरफ चलने लगा। काफी देर चलने के बाद अब शाम गहरी हो रही थी। उसके साथ चलने वाले ज्यादातर यात्री साथ लगते गांवों में जा चुके थे। उसका गांव अभी आगे था।

     आज पहली बार उसे लगा कि उसका गांव कितनी दूर है। वह धीरे- धीरे चलता रहा अब अंधेरा काफी हो चुका था तभी रास्ते में उसे उसे एक बूढ़ी औरत धीरे-धीरे चलती हुई अपने से आगे दिखी वह बोला......काकी.....तू कहां जा रही हो। उसने बोला बेटा मैं तो यही साथ के गांव में रहती हूं पानी लेकर आ रही थी। तूने कहां जाना इतनी रात हो गई है। वह बोला मैं मांगन खेड़ी में रहता हूं। बस अब तो थोड़ा ही रह गया है। बूढ़ी औरत बोली........आजा मेरा घर पास में ही है। कुछ खा ले फिर आगे चला जाना.......बेटा। या सुबह चले जाना नहीं। हम आप तो पहुंच जाऊंगा। बेटा कुछ खा ले मेरा घर यहां सड़क के साथ ही है। बूढ़ी औरत ने......बहुत ही प्यार से कहा, महेश थक भी गया था उसे भूख -प्यास भी लगी थी। प्यार भरे अनुरोध से वह इनकार ना कर सका और उसने कहा ठीक है काकी। इतना कहकर वह बूढ़ी औरत के पीछे- पीछे उसके घर की तरफ चल पड़ा एक पल के लिए उसके मन में आया कि........वह ठीक कर रहा है क्योंकि बचपन में उसने भूतों की बहुत -सी कहानियां सुनी थी कि वह रात को ऐसे सुनसान सड़कों पर मिल जाते हैं, आपके साथ चलते हैं......... फिर बहला कर आपको अपने साथ ले चलते है बातें ऐसे करते हैं जैसे सचमुच के इंसान हो लेकिन जब आपकी आंख खुलती है तो वह सब गायब हो जाता है उसे एक पल के लिए लगा कि यह अम्मा भी किसी भूतिया कहानी की पात्र तो नहीं....

 अपने मन को समझा के और अपने डर को दूर करते हुए अपने को बोला तू तो बस ऐसे ही सोचता है। लॉक डाउन की वजह से सब लोग अपने -अपने घरों में फंसे हुए हैं लेकिन गांव में अभी तक कोरोना का लोगों को पता भी नहीं है इसलिए अम्मा को भी नहीं पता वह पानी लेने जा रही थी। पानी लेकर आई है। अम्मा ने उसे बिठाया। छोटी सी झोपड़ी में अम्मा अकेली ही रहती थी लेकिन आस- पास दूर तक कोई गांव घर नहीं दिखाई दे रहा था। काकी तू अकेली रहती है। मैंने पूछा, हां बेटा...... तो बाकी इस गांव में कोई नहीं रहता। नहीं सूखा पड़ने के बाद सब लोग आगे वाले गांव में चले गए मेरा घर ही रह गया इतना कहकर अम्मा थाली में मक्की की रोटी और अचार रख ले आई। यह ले खा.......ले। महेश ने रोटी खाई पेट भरने से वह थोड़ी देर बाहर चारपाई पर ही लेट गया चारपाई पर लेटते ही उसकी आंख लग गई बहुत काफी दिनों बाद इतना चलने के कारण वह काफी थका महसूस कर रहा था। सो लेटते ही सो गया। सुबह जब आंख खुली तो उसने देखा एक टूटी चारपाई पर लेटा हुआ है। आस -पास कोई भी नहीं …वह काकी जिसने रात को उसे खाना खिलाया था और जिसके पीछे वह उसके घर तक आ गया था वह कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।व ह झोपड़ा जो रात को ठीक ही लग रहा था दीए की रोशनी में, वह भी सुबह सूरज की रोशनी में टूटा हुआ था। अब उसे समझ आया कि यह सारे का सारा गांव खाली था। यहां कोई नहीं रहता था वह अम्मा भी दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहे थी। वह समझ गया उसने इधर-उधर कुछ ढूंढने की कोशिश की लेकिन......कुछ नहीं। वह हैरान..... अब कुछ- कुछ समझ रहा था। क्या सच में ऐसा होता है। चाहे अम्मा इंसान नहीं....... भूत ही होगी लेकिन फिर भी उसने मुझे खाना और पानी पिलाया। मैं उस वक्त डर रहा था अकेले होने से वह रास्ते भर मेरे साथ रहकर हिम्मत बनी रही। दिल ही दिल अम्मा का शुक्रिया किया और अपना बैग उठाकर अपने गांव की तरफ चलने लगा तभी पानी का घड़ा लिए अम्मा लौट आई। अम्मा....महेश ने हैरानी से पूछा...... तू कहां गई थी अम्मा। और अपने दिमाग में बनाई कहानी पर झेंप रहा था मन में, बेटा मैं पानी लेने गई थी। तू तो रात खाना खाकर सो गया था, फिर मैंने उठाया नहीं कि तू थका हुआ है इतने कोस से पैदल चलकर आया है। बैठ........अब तू कुछ खाकर ही अपने गांव को जाना। नहीं......अम्मा अब मैं चलता हूं। इतना कहकर महेश अम्मा के पांव छू के और उसका धन्यवाद करके अपने गांव की ओर चल पड़ा और अपने मन में जो उसने कहानी बनाई भूतों की उस पर मन ही मन हंसने लगा......सच में....यह मेरा डर ही था। इंसान का डर ही शायद भूतों को गढ़ लेता है।


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