Vijay kumar Srivastava

Drama Inspirational

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Vijay kumar Srivastava

Drama Inspirational

सपनों की दुनिया

सपनों की दुनिया

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काग़ज़ पे स्याही से हम महल बनाते हैं। पूरे हो न पूरे हों पर ख़्वाब सजाते हैं। ख़्वाबों से ख़्वाहिश का बड़ा नाज़ुक रिश्ता है। ये ख़्वाब ही तो जग कर ख़्वाहिश को जगाते हैं। आनन्द ने अपनी रचना का पाठ किया। तो प्रसान्त जी बोले, बहुत अच्छा लिखते हो भाई, हमारी दुनिया का शौक रखते हो।

आप की दुनिया ----आनन्द ने पूछा, हां हमारी दुनिया। सपनों की दुनिया, सपनों की दुनिया। अरे भाई हम फिल्मों में काम करते हैं मेरा नाम प्रसान्त है मैं फिल्म डायरेक्टर हूँ---उन्होंने कहा----जिसे सुनते ही आनन्द खुशी से उछल पड़ा---उसे अपने कानों आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उस के जीवन का सबसे बड़ा सपना पूर्ण होने का उसे आमंत्रण मिल रहा था। क्या सोचने लगे? उन्होंने पूछा, जी---जी आप की बड़ी मेहरबानी मैं आपका यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा---उसने बड़े कृतज्ञ भाव से कहा, नो नो माय डियर ये कला की दुनिया है--- यहाँ कोई किसी के मदद से नहीं अपनी मेहनत और मुकददर से कलाकार की मेहनत से उसका नाम होता है शोहरत मिलती है। इस चकाचौंध की दुनिया, सितारों की दुनिया, हां सपनों की दुनिया में सपने पूरे होते हैं।

---वे बोले यह सब कलाकार की प्रतिभा से उसके टेलेंट से होता है।

मुझसे अगले हफ्ते मिलना। तुम्हारी ये कहानी मुझे बहुत पसंद है। मैं इस पर फिल्म बनाऊंगा और तुम्हें रोल भी दूँगा क्योंकि तुम लेखक के साथ थिएटर आर्टिस्ट भी हो, आनन्द को लगा कि उसके पंख लग गये हों वह उड़ रहा हो। वर्षों से उसकी तमन्ना एक फिल्म कलाकार बनने की थी। उसने सपने सजाये थे और आज वह   सबसे पहले यह खुशखबरी अपनी माँ को देना चाहता था।माँ ने ख़बर सुनी तो बहुत खुश हुई वह बोली भगवान तुम्हारे सपने पूरे करे। तुम जाओ। वह तैयारी कर रहा था तभी उसे आकाश वाणी से काव्य पाठ का कांट्रॅक्ट मिला था ।

वह बहुत खुश था । निश्चित तिथि पर वह काव्य पाठ के लिए जाने को तैयार हुआ तभी उसके पिता जी भी उसके साथ चलने को तैयार हो गये थे। उन्हें बीच में ही उतर जाना था। पिता पुत्र साथ बस से चले। रास्ते में अपने गंतव्य पर पहुँच कर पिता जी उतर गये और वह आकाशवाणी काव्य पाठ करके जब लौटा तो, आकाश वाणी के कर्मचारियों नें उसे बताया कि उसके पिता का मोटर एक्सीडेंट हो गया। वह भागा हुआ घटनास्थल पर पहुँचा। तो पता चला कि उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया है। वह पिता की स्थिति को देखकर रो पड़ा। बहुत इलाज हुआ परन्तु मृत्यु का कोई इलाज नहीं होता। भोर होते होते वह चल बसे

पिता की चिता जलाने के बाद पहली बार उसने बहुत मां को सफ़ेद साड़ी में देखा वह फफक फफक कर बहुत देर तक रोता रहा। परिस्थिति बदल चुकी थी। माँ और तीन बहनों का भार सामने था बहने लिपट कर रो रही थीं, उनके लिए पिता भी वही था भाई भी वही था, अब उसे अपनी बहनों के सपने पूरे करने थे माँ की सेवा करनी थी। आनन्द ने प्रसान्त जी को सब कुछ बता दिया वे बोले ----तुम घबराओ मत समय का सामना करो तुम्हारे लिए मेरे दरवाज़े हमेशा खुले हैं चले आना। समय अपनी रफ्तार से गुजरने लगा

वह अपने सपनों को भूल नहीं पाया इसलिए वह थियेटर करने लगा। वह एक अच्छा कलाकार था। लोग उसके नाटकों की प्रतीक्षा किया करते थे। उसके अभिनय की प्रशंसा करते थे। बहनों की शादी, माँ की सेवा उसका कर्तव्य था। वह अपने कर्तव्य में लीन हो गया। उसमें रम गया।उसने अपना सब कुछ अपनी कमाई अपना सर्वस्व उसने परिवार पर निछावर कर दिया दो बहनों प्रिया और सुमन की शादी कर दिया समय गुजरता रहा।


एक दिन वह अपने कमरे में बैठा था, कि तभी उस के कानों में बहुत सुरीली आवाज़ गूँजी उसकी कविता कोई गा रहा था वह पास गया तो देखा उसकी बहन वैशाली गा रही थी उसे विश्वास ही नहीं हुआ। पर उम्मीद की एक किरण उसे दिखाई दी। बहन के रुप में एक बहुत बड़ी टेलेंट उसके सामने थी।

उसने छोटी बहन वैशाली का पूरा सपोर्ट किया। उसके सहयोग और अपनी प्रतिभा के बल पर वैशाली एक उच्च कोटि कोटि की कला कार बन गयी। उस के कार्यक्रम होने लगे वह देश की प्रसिद्ध बन गयी थी।

एक दिन वैशाली के कार्य क्रम में किसी बहुत बड़े बिजनेस मैन फिल्म प्रोड्यूसर के लड़के सुन्दर युवक ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा । वैशाली ने बहुतेरा इनकार किया पर उसकी एक न चली। उसकी शादी हो गयी। वो ससुराल चली गयी। जाते जाते वह बहुत रोई पर करती क्या बेटी के भाग्य में यही होता है। उसे एक दिन अपने जिगर के टुकड़ों को छोड़कर दूर अनजान लोगों के बीच जाना ही पड़ता है। बेटी की विदाई वह खुशी है जिसमें मां की आँखें रोती है।पर दिल हँसता है। बेटी की विदाई के बाद घर सूना हो गया। माँ बेटे अकेले हो गये थे। समय अपनी गति से चल रहा था। बालों की सफेदी से उसकी उम्र झलक रही थी वह भी 50वर्ष का हो गया था।

दस वर्ष बीत गये इस बीच उसकी माँ बहू के सपने देखते देखते स्वर्गवासी हो गयी। अब वह बिल्कुल अकेला हो गया था। वह--- बहुत रोया पर होनी को कौन टाल सकता था। अब वह साठ सालों का नौजवान था। उस के सपने अभी जवान थे वह नौकरी से रिटायर हो चुका था। अब थिएटर ही उसकी जिंदगी थी। तभी एक दिन उस के पास डायरेक्टर प्रसान्त का बुलावाआ गया। वह सब कुछ छोड़ कर अपने सपनों को पूरा करने प्रसान्त के पास की जा पहुँचा। डायरेक्टर प्रसान्त ने उसे कहानी पकड़ाते हुए कहा जब तुमने यह कहानी दिया था, तब तुम जवान थे। अब तुम बूढ़े हो, सो कहानी का नायक मुझे बूढ़ा चाहिए, क्योंकि प्रोड्यूसर का कहना है कि नायक तुम ही रहोगे। लो ये कहानी स्क्रीन प्ले तैयार करो।फिल्म का नाम है" सपनों की दुनिया "समझे? फिल्म की शूटिंग अगले महीने प्रारंभ होगी।

सर ---मुझे प्रोड्यूसर से मिला दीजिए। मैं उनके पाँव छूना चाहता हूँ जो मुझ जैसे बूढ़े पर करोड़ों का दाँव लगा रहे हैं। आनन्द ने पूछा डायरेक्टर प्रसान्त बहुत देर तक सोचते रहे बोले मुझे उन्होंने बताने से मना किया था। मगर मैं तुम्हें बताना ज़रुरी है। सो मैं बता रहा हूँ। वह तुम्हारी छोटी बहन वैशाली है। उसके ससुर और पति फिल्में बनाते हैं वैशाली ने उनसे तुम्हारे लिए फिल्म बनाने को कहा और वे तैयार हो गये। वैशाली तुम्हें बहुत मानती है उसने मुझसे कहा था मेरे भाई ने ---हम बहनों की दुनिया बसाने के लिए अपना पूरा जीवन अपना सर्वस्व हम पर लगा दिया था। अपने सपनों को हम पर कुर्बान कर दिया था। क्या एक बहन अपने भाई की सपनों की दुनिया बसाने के लिए इतना भी नहीं कर सकती? वह रो पड़ा। उसका दिल बहन के इस उपकार से करुणा से भर गया। वह पूरे उत्साह से वह अपने सपनों की दुनिया में खो गया और फिल्म" सपनों की दुनिया "की तैयारी में जुट गया।



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