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Arun Singh

Thriller

3  

Arun Singh

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सपनों का मायाजाल part 2

सपनों का मायाजाल part 2

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नवीन एक महीने खूब मेहनत करके इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है। आज भी नवीन को डरावने सपने आए। सपने में कोई नवीन से फिर से कह रहा था की हम आ रहे हैं, और उसके बाद उस आवाज़ ने नवीन को जकड़ लिया। नवीन उस जकड़न से छूटने की कोशिश कर रहा था लेकिन नवीन पुरी तरह असफल रहा। कुछ देर बाद नवीन की नींद खुल जाती है, और वह चैन की सांस लेता है।

नवीन अपनी मां से परेशान हो कर कहता है की आज किसी ने मुझे नींद में जकड़ लिया।

नवीन की मां मुस्करा कर जवाब देती है की यह सब बाबा जी के सतसंग का असर है।

कुछ दिन ऐसे ही बीत जाते हैं अब तारा भी नवीन से बात करना शुरु कर देती है क्यों की नवीन अपनी परीक्षा में अच्छे अंकों से पास हुआ और अब वह इंजीनियरिंग करने की सोच रहा है। नवीन और तारा की दोस्ती भी खूब जमती है 

रात को नवीन का पिता जी चंद्र मोहन घर आते हैं और अपनी पत्नी कोमल को आवाज देकर एक खुशखबरी सुनाते हैं की नवीन को सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल गया है।

कोमल खुश हो कर कहती है अब नवीन की जिंदगी में खुशियां आ जाएंगी। नवीन पढ़ लिख कर ऑफिसर बनेगा और हमारा नाम रोशन करेगा।

नवीन आज सुबह से ही घर से गायब था परिवार वाले नवीन के बारे में आस पड़ोस और रिश्तेदारों से बात कर रहे थे की क्या किसी ने आज नवीन को देखा है।

नवीन अपनी ही दुनिया में खोया हुआ बाबा जी के सतसंग में जा पहुंचा और सेवादारों से कहने लगा की मुझे बाबा जी से गुरु मंत्र लेना है। 

सेवादार - ठीक है आज शाम 5 बजे आपको गुरुमंत्र मिल जायेगा लेकिन हमारे गुरु जी के कुछ नियम भी है आपको उनका पालन करना होगा नहीं तो आपका नाम खंडित हो जाएगा और आप सतलोक नहीं जा पाएंगे।

नवीन - मुझे यम नियम का पता है मूर्ति पूजा नहीं करनी है और बाबा जी को सुप्रीम गॉड मानना है। बाबा जी के अलावा किसी भी साधु संत की बात नहीं सुननी है। 

नवीन गुरु मंत्र लेकर एक बोतल में बाबा जी का चरणामृत लेकर खुशी खुशी घर चले गया। आज लग रहा था मानो उसे संसार की सबसे बड़ी खुशी मिल गई हो। जैसे अब नवीन के जीवन का लक्ष्य पूरा हो गया हो।

घर में प्रवेश करते ही नवीन की मां ने उसे बहुत डांटा की आज बिना बताए तू घर से कहा चला गया तुझे कुछ पता भी है की हम तेरे लिए कितने परेशान हो रहे थे। 

चंद्र मोहन गुस्से से भरकर नवीन को धमकाता है की दिनभर कहां घूम रहे थे थोड़ा घर की होश नहीं है तुम्हें आज खाना पीना हो गया है या अभी तक भूखे हो।

नवीन अपनी खुशी को छुपाते हुए जवाब देता है आज शहर में बाबा जी का सतसंग लगा था, दोस्त ने जबरदस्ती मुझे वहां ले गया। वहीं भंडारे में खाना खा लिया और आज बाबा जी से नाम दीक्षा भी ले ली।

कोमल गुस्से से आग बबूला हो जाती है की कैसी नाम दीक्षा बाबा जी से नाम दीक्षा लेकर तुम इस घर में नहीं रह सकते अभी निकल जाओ यहां से और यदि तुम यहां रहना चाहते हो तो बाबा जी की दीक्षा छोड़कर किसी दूसरे धार्मिक गुरु से दीक्षा लेनी होगी। 

बाबा जी की विचारधारा नवीन के परिवार वालों की धार्मिक भावना से मेल नहीं खाती थी इसलिए नवीन के घर वाले अब नवीन के भविष्य को लेकर चिंतित हो जाते हैं, और नवीन को समझाने की भरपूर कोशिश करते हैं। 

नवीन भी अपने विचारों से एक कदम पीछे नहीं हटता और घर छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है।

चंद्र मोहन अपनी पत्नी और नवीन के बीच सुलह कराने की बहुत कोशिश करते हैं लेकिन उन दोनों में से कोई अपने कदम पीछे नहीं हटाता। 

नवीन चिल्लाते हुए जवाब देता है की जो मुझे रात को नींद में परेशान करते हैं उनका क्या मैं उनसे मुक्ति पाने के लिए बाबा जी की शरण में गया हूं। 

नवीन की मां नवीन को समझाते हुए जवाब देती है की उसका समाधान और पंडित और साधु संत भी कर सकते हैं। तुम्हें बाबा जी का चरणामृत पीने की कोई जरूरत नहीं है। तुम चाहो तो हम आज ही किसी विद्वान ब्राह्मण को बुलाकर उसका समाधान कर लेंगे। 

लेकिन नवीन एक बात को भी सुनने के लिए तैयार नहीं होता और घर छोड़ने का विचार बना लेता है। 

नवीन घर को छोड़कर किसी धर्मशाला में एक दिन के लिए रुक जाता है और अपने नित्य नियम पूरे करके बाबा जी का चरणामृत पाकर आनंदित हो जाता है। 

अगली सुबह नवीन के पिता जी नवीन को दूंढते हुए धर्मशाला में आते हैं और नवीन को अपने साथ घर चलने को कहते हैं।

चंद्र मोहन प्रेम से नवीन को समझाते हुए कहते हैं की कोई बात नहीं तूने गुरु मंत्र ले लिया तो ठीक है मैने तेरी मां को समझा दिया है तू हमारे साथ घर में ही रह सकता है। 

नवीन भी घर जाने के लिए तैयार हो जाता है दोनो घर पहुंचकर नवीन के लिए एक अलग कमरा साफ कर देते हैं जहां उनका स्टोर रूम था। नवीन की मां अब भी नवीन के विचारो से सहमत नहीं थी लेकिन मजबूरी में वह नवीन की बात मान लेती है।

चंद्र मोहन ने नवीन को घर तो ले आया लेकिन अब वे नवीन को परिवार से अलग थलग कर दिया नवीन स्टोर रूम में ही खाना खाता और वहीं अपने नित्यकर्म करके चरणामृत पीता। 

नवीन ने बाबा जी से नाम दीक्षा ले ली यह खबर आग की तरह नवीन के पड़ोसी और रिश्तेदारों के घर पहुंच जाती है। सब दोस्त और शुभचिंतक नवीन से दूरी बना लेते हैं क्यों की बाबा जी के धार्मिक विचार बहुत ही भिन्न थे।

कुछ दिन ऐसे ही बीत जाते हैं और नवीन भी अकेले परेशान हो जाता है। नवीन की दोस्त तारा नवीन के साथ खड़ी दिखाई देती है जो नवीन को समझाती है की घर वालों से नाटक करो की मैं बाबा जी की नाम दीक्षा छोड़ रहा हूं।

नवीन भी अकेलेपन से तंग आकर घरवालों से नाम दीक्षा छोड़ने के लिए कहता है की मैं बाबा जी का चरणामृत और किताबे उन्हें वापस देकर आता हूं।

क्रमशः 


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