सफर मेरे हिस्से का

सफर मेरे हिस्से का

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आज राजनीति शास्त्र की कक्षा के बाहर लड़कियों का जमघट लगा हुआ था। सारी लड़कियां जगबीर को ऐसे घेरे जा रहीं थीं कि लग रहा था मानो शहद की मक्खियों का झुंड अपनी रानी मक्खी की सुरक्षा कर रहा हो। अचंभित सी नीरु इस दृश्य को देख ही रही थी की भीड़ में से किसी ने हाथ उठाकर उसे इशारा कर अपनी और आने को कहा। लड़कियां थोड़ी इधर उधर हुई कि भीड़ में से जगबीर का जगमगाता चेहरा दिखा।

नीरू के पास आते ही जगबीर ने पूछा.... "व्हाट्स अप नीरू"....?

वाक्य सुनते ही नीरू मानो पत्थर का बुत बन गई और गर्दन को यहां वहां हिलाने लगी उसके लिए तो मानो यह कोई दैवीय भाषा में कहा गया वाक्य था जो बिजली की तरह दिमाग को सन्न कर गया पर समझ में नहीं आया कि क्या कहे। बुद्धिमान सुंदर, सुशील, गुणवंती और संस्कारी कही जाने वाली नीरू के स्वाभिमान को तो जैसे गहरा आघात लगा था यह दो शब्द जैसे उसकी वर्षों की मेहनत पर पानी फेर कर उसे मुंह चिढ़ा रहे थे। नीरू अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल रहती थी। उसके अध्यापक, अध्यापिका उसे बहुत पसंद करते थे। वह अपने स्कूल और कॉलेज के श्रेष्ठ और गुणी माने जाने वाले छात्रों में से एक थी परंतु उसकी अंग्रेजी बहुत कमजोर थी हालांकि वह कोई अपवाद नहीं थी बल्कि उस क्षेत्र से संबंध रखने वाले सभी बच्चों की अंग्रेजी बहुत कमजोर थी और उसमें से जगबीर कभी एक हुआ करती थी। नीरू एक छोटे कस्बे से संबंध रखती थी जहां के लोग अंग्रेजी लिखना पढ़ना इतना नहीं जानते थे। यहां तक कि उनके स्कूल और कॉलेज में भी अंग्रेजी को इतना महत्व नहीं दिया जाता था। रोजमर्रा की दिनचर्या में अंग्रेजी का प्रयोग न होने के कारण वहां के लोग अंग्रेजी बोलना सीख ही नहीं पाए थे और यह उनका कसूर नहीं था।

पर यह क्या...? जगबीर की अंग्रेजी अचानक इतनी अच्छी हो गई थी।

‌‌‌पसीने की बदबू से लथपथ और फूहड़ सी नजर आने वाली जगबीर का अमेरिका जाकर तो जैसे कायाकल्प ही हो गया था। उसे तो जैसे पहचानना ही मुश्किल हो रहा था उसकी बात करने के तरीके के साथ साथ उसके कपड़े पहनने का तरीका यहां तक कि उसका चेहरा भी एकदम परिवर्तित हो गया था। जगबीर से बातचीत निपटा कर नीरू जब घर पहुंची तब भी उसके दिमाग में यह दो ही शब्द कौंध रहे थे...

व्हाट्सएप नीरू ...? व्हाट्सएप नीरू...? इन दो शब्दों ने नीरू के आत्मविश्वास को गहरा धक्का दिया था।

कल तक विश्वास से भरी हुई नीरू को अचानक ही लगने लगा था जैसे कि उसे तो कुछ आता ही नहीं। रह रह कर बस यही जानना चाहती थी कि आखिर इन दो शब्दों का अर्थ है क्या ..? आखिर जगबीर उसे पूछना क्या चाह रही थी...? मगर वह यह सब पूछती भी तो किससे...? कोई अन्य भी उसे इस विषय में कुछ नहीं बता पाता। उस समय तो स्मार्टफोन भी नहीं थे जिसके माध्यम से वह इसका अर्थ जान पाती। उस दिन नीरू के मन में न जाने कैसा अंजाना सा एक डर घर कर गया और धीरे-धीरे उसका विश्वास कम होता चला गया नीरू हमेशा से ही अध्यापिका बनना चाहती थी। यह उसका सपना था लेकिन कम होते विश्वास के चलते वह छोटी-छोटी गलतियां करने लगी यहां तक कि अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद वह एक अध्यापिका के तौर पर किसी स्कूल में साक्षात्कार देने से भी डरती। उसे हमेशा यही डर सताता रहता कि यदि सामने वाले ने उसे अंग्रेजी में कोई सवाल पूछ लिया तो इसका उत्तर नहीं दे पाएगी। फल स्वरुप उसकी वर्षों की मेहनत बर्बाद होने लगी और उसके अरमान उसके डर के तले दबकर अपना दम तोड़ने लगे।

कुछ ही समय पश्चात नीरू के लिए दिल्ली से एक रिश्ता आया और उसकी शादी तय हो गई। नीरू के ससुराल पक्ष के लोग बहुत ही सभ्य लोग थे। उसे एक बहुत ही अच्छा पढ़ा लिखा और संस्कारी परिवार मिला था। सब लोग नीरू को बहुत प्यार करते थे। बड़े शहर से संबंध रखने के कारण अंग्रेजी उन लोगों के लिए रोजमर्रा की बात थी लेकिन आत्मविश्वास की कमी के कारण नीरू किसी से बात करने से भी कतराती थी और लोग अक्सर इसे उसका घमंड और अगर समझ लेते थे।धीरे-धीरे नीरू को इस प्रकार ससुराल पे रहना मुश्किल होने लगा उसे रोजमर्रा की चीजों में दिक्कतों का सामना करना पड़ने लगा यहां तक कि ससुराल में उसकी छवि खराब होने लगी। नीरू हताश होकर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई और वहां जाकर उसने अपने माता-पिता को मैं दिल का हाल बताया।

मां...! ....मेरे ससुराल में सब बहुत पढ़े लिखे हैं और अंग्रेजी उनके लिए रोजमर्रा की बात है.... दिन भर में न जाने कितने ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जिन्हें मैं समझ नहीं पाती और उनके सवालों से बचने के लिए मैं अक्सर उन्हें अनदेखा किया करती हूं और मेरी इसी आदत को भी मेरा घमंड और अगर समझने लगें हैं।

नीरू !..... पढ़ी-लिखी तो तुम भी हो बल्कि बहुत ज्यादा पढ़ी लिखी हो और इसके साथ-साथ तुम्हें घर के सब प्रकार के काम आते हैं तुम समझदार हो तुम जानती हो कि अपने घर को कैसे संभाला और संवारा जाता है।

नहीं,..... मां!.... तुम नहीं जानती केवल पढ़े-लिखे होना ही काफी नहीं होता। अंग्रेजी आजकल की बहुत बड़ी जरूरत है और अंग्रेजी ना बोल सकने वाले इंसान को आज के समय में अनपढ़ माना जाता है और ऐसे लोग मजाक का पात्र बन कर रह जाते हैं।

नीरू....! तुम तो एक अध्यापिका हो.....तुम बच्चों को यह सिखाया करती थीं कि जीवन में कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।.... हमें हर स्थिति का डटकर सामना करना चाहिए।

इस दुनिया में ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका कोई समाधान ना हो। आज तुम ऐसी बातें कर रही हो...? यकीन नहीं होता...!

मां.... आप नहीं समझती... मेरा विश्वास टूट चुका है... ;मैं कमजोर पड़ चुकी हूं.... ;मुझ में अब फिर से उठ खड़ा होने की हिम्मत नहीं...; मैं जब भी कुछ करने का सोचती हूं...मेरा मस्तिष्क मेरा साथ देना बंद कर देता है। ऐसे में मुझे समझ में नहीं आता कि मैं कैसे फिर से अपने पैरों पर खड़ी होऊं।

नीरू...! तुमने सही कहा। तुम्हें अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयास नहीं करना चाहिए....तुम बिल्कुल ठीक कहती हो... तुम कमजोर पड़ चुकी हो.... तुम दुनिया का सामना नहीं कर सकती और ऐसा व्यक्ति जो स्वयं को संभाल नहीं सकता ; वह दूसरों को क्या सहारा देगा....? जो व्यक्ति खुद हिम्मत नहीं रख सकता ;.... वह बच्चों के हौसलों को आकाश तक पहुंचना क्या सिखाएगा। ...... जो अपना भविष्य निर्धारित नहीं कर सकता ;....वह बच्चों को उनके उज्जवल भविष्य के लिए मार्गदर्शित क्या करेगा। .......तुमने सही कहा तुम एक अध्यापिका नहीं हो सकतीं। एक अध्यापक हिम्मत और धैर्य से निर्मित होता है। वह सूर्य की किरण से प्रकाशित होता है तभी वह अपने प्रकाश से दूसरों के जीवन को प्रकाशमान करता है। जिसका स्वयं का जीवन अंधकार से भरा हो वह दूसरों को अंधकार के सिवाय क्या दे सकता है।

मां !... तुम यह क्या कह रही हो... क्यों कह रही हो?


बेटी !...मैं जो भी कह रही हूं , बिल्कुल सही कह रही हूं। दूसरों को दिशा दिखाना तुम्हारा सपना था। दूसरों के जीवन में प्रकाश भरना तुम्हारे जीवन का उद्देश्य था... यदि तुम यह करना चाहती हो तो सर्वप्रथम तुम्हें अपने जीवन का अंधकार दूर करना होगा।तुम्हें अपने धैर्य और साहस को फिर से जागृत करना होगा। तुम्हें उस मंजिल को हासिल करना होगा। जहां पहुंचकर तुम स्वयं पर गर्व अनुभव कर सको... तभी तुम अपने कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से अग्रसर हो पाओगी... वरना तुम्हारी आत्मा तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेगी। तुम उम्र भर इसी ग्लानि में जीती रहोगी कि तुमने प्रयास ही नहीं किया। यह तुम्हारे लिए कोई और नहीं कर सकता।..."तुम्हें अपने हिस्से का सफर स्वयं ही तय करना होगा।"

नीरू का गला आंसुओं से रूंध गया....वह कहने लगी ....

हां.... मां ! तुम सही कहती हो....कुछ समय के लिए मैं दिशाहीन हो गई थी लेकिन अब मुझे पता है कि मुझे किस दिशा में जाना है मेरा पथ प्रदर्शक बनने के लिए धन्यवाद !...

मां ! तुमने सही कहा एक सच्चा पथ प्रदर्शक अपने प्रकाश से दूसरों के पथ को प्रकाशमान करता है वह अपने शिष्यों को एक नई दिशा प्रदान करता है केवल एक मां ही नहीं बल्कि आज एक सच्चा गुरु बनकर तुमने मेरा पथ प्रदर्शन किया है....मुझे सही दिशा दिखाई है। मैं वचन देती हूं....... कि तुम्हारे भरोसे पर खरी उतर कर तुम्हें तुम्हारी गुरु दक्षिणा अवश्य दूंगी।

नीरू ने जल्द ही अपने पति से एक स्मार्टफोन खरीदने की इच्छा जाहिर की और उसके पति ने उसे लाकर भी दे दिया। उसने इस पर ऑनलाइन अंग्रेजी की क्लासेस लेनी प्रारंभ की और उसने अपनी अंग्रेजी ग्रामर को फिर से पढ़ना प्रारंभ किया। रोज रोज अखबार पढ़ने, समाचार सुनने और अपने पति से अंग्रेजी में बात करने का प्रयास करते करते जल्द ही वह अंग्रेजी बोलना सीख गई। उसने एक स्कूल में हिंदी शिक्षक के पद हेतु आवेदन किया और जल्द ही उसे शिक्षिका का पद प्रदान भी कर दिया गया। काबिलियत उसमें पहले से ही थी तो सराहना भी जल्दी ही होने लगी। जल्दी उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मंजिल कितनी समीप थी बस उसने प्रयास करने में ही देरी कर दी। पर चलो कोई बात नहीं वो कहते हैं ना कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते। जब नीरू इस सफर पर निकली थी तब यह सफर उसके लिए अंजाना और डर से भरा हुआ था लेकिन उसने अपनी मेहनत के बल पर जल्दी हालातों को अपने अनुकूल कर लिया। अब यह सफ़र उसे अंजाना नहीं लगता था।


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