समय का खेल

समय का खेल

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मुस्कुराता हुआ चेहरा लिए वह बूढ़ा व्यक्ति सुबह की कड़कड़ाती ठंड में अपने गंतव्य की ओर रुख कर लंगड़ाते हुए चल रहा था।

एक अधेड़ अवस्था की सिक्योरिटी गार्ड ने उससे पूछा कि कितने पूरे किए।

बूढ़े ने छाती चौड़ी करते हुए जवाब दिया, 'चार'

अधेड़ महिला ने आश्चर्य प्रकट किया, 'कमाल है ! मुझसे तो एक ही हो पाया।'

बूढ़े ने तंज कसा, 'करने का जज्बा हो तो हर काम आसान है।'

महिला जोर से ठहाके मार के हँसी, 'वाह रे बूढ़े, सारे बाल पक गए पर तेरी जवानी है कि थमती नहीं।'

अपने उबासी क्रम से निकलने का क्षणिक ज़रिया भाँप, साथी सिक्योरिटी गार्ड भी महिला के साथ शामिल हो बूढ़े की टाँग खींचने में व्यस्त हो गए।

पर बूढ़े को ज्यादा असर हो नहीं रहा था। मालूम पड़ता था कि वह ऐसे व्यंग्य बाणों का आदी हो चुका है। चेहरे को एक अनजान राहगीर की ओर झुकाकर उसने कंधे उचकाते हुए कहा, 'क्या करें, समय का खेल है।'


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