सम्मान अस्तित्व का
सम्मान अस्तित्व का




किरन, एक आदमी। एक ऐसा आदमी, जो सजना चाहता है, औरतों की तरह चूड़ियाँ पहनना चाहता है। किरन के परिवार में उसकी एक माँ ही है। उसकी माँ उससे बहुत प्यार करती है और किरन भी अपनी माँ से बहुत प्यार करता है। इनका आशियाना एक छोटी सी गली में है, जहाँ कई सारी रंग-बिरंगी चूड़ियाँ बिकती है।
आज वो यूँ ही बाज़ार में टहल रहा था और उसकी जेब में कुछ रुपया भी था। उसने चूड़ियाँ खरीदने की सोची, आधी अपनी माँ को दे देगा और आधी खुद के लिए रखेगा। उसी शाम वो घर पर अकेला था और बिस्तर पर माँ की एक साड़ी रखी थी। ताउम्र उसका मन, औरत की तरह सजना चाहता था, और आज उसने अपनी मन की बात को अंजाम दे ही दिया। उसने साड़ी पहनी, श्रृंगार किया और बाज़ार से लाई चूड़ियाँ पहनी।
किरन बहुत खुश था और उसे लगा कि उसे ऐसे देखकर उसकी माँ भी बहुत खुश होगी। माँ जब काम करके दफ्तर से लौटी, किरन अपनी माँ के सामने आया। माँ घबरा गयी, उसने किरन को डाँटा-मारा और एकाएक उसे कपड़े बदलने को कहा। किरन निराश होकर, कपड़े बदलने चला गया।
उसने अपनी माँ से पूछा कि उसने ऐसा क्यूँ कहा ? उसकी माँ ने कहा, "किरन तू दोबारा साड़ी नहीं पहनेगा, श्रृंगार नहीं करेगा और चूड़ियाँ नहीं पहनेगा। " किरन ने मुस्कुराते हुए कहा, "माँ, मैं अपने अस्तित्व जान गया हूँ। मैंने अपने होठों पर लाली लगायी है तो क्या हुआ, अपने बदन पर साड़ी लपेटी है तो क्या हुआ और हाथों में चूड़ी पहनी है तो क्या हुआ ?
"तुम क्या अपनी माँ की नाक कटवाना चाहते हो ? उनकी इज़्ज़त की तुम्हें कोई परवाह नहीं ?" माँ चिल्ला उठी।
किरन फिर बोला, "कमाल है माँ, तुझे समाज की फिक्र है, या मेरी, तूने मुझे जन्म दिया है या समाज को और मेरे रगों में तेरा खून है या समाज का। माँ, बस तू मुझे अपना ले, दुनिया को मैं संभल लूँगा। मगर तू ही अगर मुझे ऐसी नज़रों से देखेगी तो, समाज के आगे मैं हमेशा नज़रे झुका कर चलूँगा। माँ कुछ नहीं बोली और उठकर चली गयी।
माँ ने कभी साथ तो नहीं दिया पर अपनी औलाद पर आंच भी नहीं आने दी।
उस दिन के बाद किरन ने बहुत मेहनत की। अलग-अलग कपड़े डिज़ाइन किये और देखते ही देखते, किरन ने खुद की एक ब्रैंड बनाई। लोग कहते हैं की जब कोई अपने आप को साबित करना चाहे, तो कोई भी उसे रोक नहीं सकता, और आज जाना यह लोग सच कहते हैं। एक शाम किरन का फैशन शो था और उसमे उसकी माँ भी आई थी, हज़ारों लोग उनके बेटे के लिए ताली बजा रहे थे। आखिर में जब सारे मॉडल्स आकर चले गए, तब किरन सर ऊंचा रखकर स्टेज पर आया। ना जाने कितने सालों बाद किरन की माँ की आँखों से गर्व के आँसू निकले।
कसूर उस माँ का नहीं था, बल्कि हमारा था। हम आदमी को जानते हैं, हम औरत को जानते हैं, पर जब हम किसी ऐसे शख्स से मिलते हैं जो हमसे थोड़ा सा अलग है तब हम अपनी नज़रे और नज़रिया दोनों बदल लेते हैं। उस माँ का डर, जायज़ था।
वो माँ जिस सच को दुनिया से छुपाना चाहती थी, आज उसी को पूरी दुनिया सराहा रही थी। उसकी लगन ने एक मुकाम हासिल किया, अपनी माँ का सर ऊँचा किया। किसी को को कम मत आंको, हर इंसान में काबिलयत होती ही है। हर इंसान हीरे को परख नहीं सकता वो काम जौहरी ही कर सकता है।