समीर या आंधी
समीर या आंधी
1947 में भारत आजाद हो गया था। राजे , महाराजे , किंग, नवाब, सामंत, श्रीमंत सब खत्म हो गये लेकिन उनका दंभ खत्म नहीं हुआ। लोगों को अपने आपको नवाब , महाराज , किंग कहलाने में गर्व की अनुभूति होती है। कोई गांजे का तस्कर नवाब बन गया तो कोई हकला किंग बन गया। और भी ना जाने कौन कौन क्या क्या बन बैठे। आज के जमाने में भी हमने लोगों को "शहंशाह" बनते देखा है।
लोग कहते हैं कि ये "मायानगरी" बड़ी रहस्यमयी है। यहां पर जो कुछ उज्जवल , चमकीला , लुभावना , मनमोहक नजर आता है , दरअसल वह सत्य नहीं है , छलावा है , दिखावा है , बहकावा है। सत्य तो इसके एकदम विपरीत है। सत्य यही है कि यह मायानगरी स्वर्ग सी सुंदर ना होकर नर्क सी बदबूदार है। इसकी सड़ांध अब पूरे देश में फैलने लगी है। वैसे सच कहूँ तो सड़ांध तो बहुत पहले ही फैलने लग गयी थी मगर इस सड़ाध का पता जनता को नहीं चले इसलिए उस पर इत्र का छिड़काव कर नकली सुगंध फैलायी जा रही थी। यहां पर सब कुछ नकली है। हंसी नकली , आंसू नकली। चेहरा नकली , दिल नकली। बाल नकली , खाल नकली। और तो और नाम भी नकली निकले। सालों बाद पता चला कि कोई युसुफ नाम का आदमी दिलीप साहब बनकर बैठा है।
इस मायानगरी का हाल भी बड़ा विचित्र है। लोग तो कहते हैं कि यह मायानगरी देश की आर्थिक राजधानी है मगर मुझे लगता है कि यह मायानगरी आर्थिक नहीं आपराधिक राजधानी है। क्या क्या नहीं होता है यहां ? अपराध जगत के किंग , शहंशाह , महाराजा , सुल्तान सब यहीं रहते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि मायानगरी पर इन अपराधियों का ही साम्राज्य है। स्मगलिंग , तस्करी , गैंगवार , हफ्ता वसूली , जिस्मफरोशी , बीयर बार सब कुछ धड़ल्ले से होता है यहां। और वैसे भी कहावत है कि जब सैंया भये कोतवाल तब डर काहे का ? कुछ मीडिया वाले भी बता रहे थे कि कल तक जो "परमबीर" कहलाते थे वे वसूली के चक्कर में अब "भगोड़ेवीर" बन गये हैं। उनका कहीं अता पता नजर नहीं आता है। अपने आकाओं के इशारों पर चलने वाले पुलिस अधिकारी एक दिन जेल की हवा जरूर खाते हैं। निर्दोष को "अंदर" करना और अपराधियों के साथ "पार्टी" यहां का रिवाज है। कोई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनकर किसी उद्योगपति से बड़ी रकम वसूलने के लिए विस्फोटकों से लदी गाड़ी उसके बंगले के सामने खड़ी कर देता है और फिर भी सरकार उसका बचाव करती नजर आती है तो लगता है कि इसके तार कहाँ कहाँ तक जुड़े हुये हैं। इन तारों में करंट कहाँ से आ रहा है ?
रुपहले पर्दे पर अपने हुस्न के जलवे बिखेरने वाली , अपनी मस्त अदाओं से मन मोहने वाली , कंटीली नजर से कत्लेआम करने वाली , मोहक मुस्कान से दिल चुराने वाली तारिकाओं की सच्चाई जब सामने आई तो "थाली में छेद ही छेद" नजर आये। मायानगरी की वो मशहूर आंटी भरी सभा में चीख चीख कर कह रही थी कि इस मायानगरी में सब पुरुष हरिश्चंद्र और महिलाएं सीता जैसी हैं। ये तो कुछ कृतघ्न लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं। अब पता चल रहा है कि उस थाली में अब इतने छेद हो चुके हैं कि वह अब थाली ना होकर "छलनी" लगने लगी है। शराब, गांजा, अफीम , सफेद पाउडर , सेक्स बस यही तो बच गया है वहां पर। फुटपाथ पर सोते लोगों पर गाड़ी चढ़ाने वाले "नायक" बने रहते हैं। देश में जिनको डर लगता है , लव जिहाद के चलते बीवियों को तलाक देते रहते हैं , देश छोड़ने की धमकी देते हैं मगर देश कभी छोड़ते नहीं हैं , आतताइयों के नाम पर बच्चों का नामकरण करते हैं और प्यार का देवता बने रहते हैं। पटाखों पर ज्ञान बघारने वाले चिकन मटन की दावतें उड़ाते रहते हैं। ऐसे दोगले लोगों के चेहरों से अब नकाब हट गया है।
पर बड़े ताज्जुब की बात ये है कि ये नकाब कैसे हटा ? कहते हैं कि ऊपर वाले की लाठी जब चलती है तो वह आवाज नहीं करती है। इस मायानगरी पर तथाकथित "बाजीगर" , "दबंग", "सरफरोश" "नवाबों" की धौंस चलती है। इस धौंस के कारण किसी "छिछोरे" को आत्महत्या करनी पड़ जाती है या उसे मारकर आत्महत्या में तब्दील कर दिया जाता है। इनके पाप का घड़ा अब भर चुका है। देश में इनको सजा देने वाला तो कोई है नहीं। सजायाफ्ता होकर भी तुरन्त जमानत मिल जाती है इन नकली नायकों को। जैसे कि न्याय का मंदिर केवल इन्हीं लोगों के लिए रात में भी खुल जाता है। आम आदमी तो न्याय के दरवाजे तक भी पहुंच नहीं पाता है।
ईश्वर की लाठी चली और खूब चली। सुशांत की मौत रंग लाई। ईश्वर ने जोरदार तरीके से "समीर" चलाई। शीतल मंद समीर कब आंधी बन गई , पता ही नहीं चला। इस "समीर" ने अच्छे अच्छे "किंगों" को मटियामेट कर दिया। बड़े बड़े नवाब टेलीविजन पर चैनलों पर बैठकर रोज दांत पीस रहे हैं। गुस्से में बौखला रहे हैं और "समीर" को कैद करने की धमकी दे रहे हैं। पर समीर तो समीर है। किसी के वश में हुआ है क्या कभी ? वह अपना काम कर रहा है और उसके काम करने से बड़े बड़े नवाबों के पेट में दर्द हो रहा है।
जिसे हम किंग समझते थे वह तो खोखला निकला। समीर की आंधी में किंग , नवाब सब उड़ गये। नकली नायकों के चेहरे से मुखौटा उतर गया। समीर की आंधी से क्या अब गंदगी दूर हो जायेगी ? लाख टके का सवाल है यह। जवाब जरूर दीजिये।
