सिफारिशी पत्र
सिफारिशी पत्र
रमण भारती एक कंपनी में ऊंचे ओहदे पर कार्यरत था। कई साल बाद एक बार फिर उसका तबादला उसके गृहनगर ‘ राजनगर ‘ में ही हो गया था। घर लौटते हुए रास्ते में एक रेहड़ीवाले को देखकर रमण रुक गया। चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था लेकिन ठीक से याद नहीं आ रहा था कि तभी रेहड़ी वाले ने उसे देखा और फिर मुस्कुराते हुए उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला ” यार रमण ! कैसा है तू ? बहुत दिनों बाद तुझे देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। ”
अब रमण भी अपने मित्र सुरेश को पहचान चुका था। सुरेश जो कि प्राथमिक शाला से ही उसका सहपाठी और सबसे अच्छा मित्र था। कक्षा में अक्सर प्रथम आता जबकि रमण पढ़ाई में औसत था। उसे याद आया कि कॉलेज में भी अंतिम वर्ष की परीक्षा उसने प्रथम श्रेणी से पास की थी। परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद रमण नौकरी के सिलसिले में दूसरे शहर में रहने लगा था और अपने प्रिय मित्र से उसका संपर्क टूट गया था। आज अचानक उसे और वह भी एक साधारण सी रेहड़ी लगाए देखकर उसे आश्चर्य हुआ। बोला ” सुरेश ! तुम तो प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे न ? और फिर भी ……”
सुरेश उसका आशय समझ गया था। बोला ” क्या करता रमण ? मैं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण तो हुआ था लेकिन मेरे पास डिग्री से भी बड़ी चीज ‘ जाति प्रमाणपत्र ‘ जो नहीं था और न ही था किसी बड़े आदमी का सिफारिशी पत्र। “
