श्रद्धांजलि
श्रद्धांजलि


10, 9, 8… नए साल के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई। आशा उठकर खिड़की के पास गई। 2 1 0 "हैप्पी न्यू ईयर" सब लोग खुशी से चिल्लाये और एक दूसरे को गले लगा कर बधाई देने लगे। दूसरी ओर पटाखे फोड़े जा रहे थे। आकाश में रंगीन, खूबसूरत फुल झरिया दिखने लगी। आशा आईने के पास गई, वहां का बल्ब जलाया और खुद की अक्स से बोली "हैप्पी बर्थडे डिअर, जन्मदिन की ढेरों बधाइयां।" उसने खुद को एक फ्लाइंग किस दिया और सोने चली गई।
आशा ऐसा 1/1/ 2015 से कर रही है, जब पहली बार उसने एक समाचार पत्र में अपनी श्रद्धांजलि थी फोटो देखी थी। श्रद्धांजलि देने वाले कोई और नहीं, उसके पापा ही थे। आशा के पापा हर साल जनवरी 1 तारीख़ को सभी प्रमुख हिंदी समाचार पत्रों में आशा को श्रद्धांजलि देने नहीं भूलते थे। ओ पिता, जो उसे झूठ मूठ भी गुस्सा नहीं करते थे, वो उस दिन पहली बार उससे इतना नाराज़ थे। वो भी किसी पराए इंसान के लिए।
सितम्बर 2014 के आख़िरी सप्ताह कि बात है, जब अमोल आशा को देखने आया था। वह अपने बी एससी के अंतिम वर्ष में पढ़ रही थी। वो एमटेक करके एक कंपनी में अच्छे पद पर काम कर रहा था। जब उन दोनों को बात करने का मौका मिला तो आशा ने अमोल से कहा "मैं आइ ए एस करना चाहती हूं।'' तो अमोल ने कहा कि ''मैं शादी के बाद भी तुम्हें पूरी आज़ादी दूँगा। तुम जो चाहो वो करो।'' यह सुनकर आशा ख़ुश हो गई और उसने शादी के लिए "हां" कह दिया। सब ने मिलकर तय किया कि अभी इंगेजमेंट और फिर दीवाली के बाद शादी कर देंगे।
पहले तो आशा ने उसके पापा से कहा कि "मेरे फाइनल परीक्षा के बाद शादी रख लेते हैं।" पर पापा ने कहा कि "7-8 महीने मतलब बहुत देर हो जाएगी बेटा लड़के के घरवाले नहीं मानेंगे। और लड़का बहुत समझदार है, तुम्हें परीक्षा के दौरान कोई तकलीफ़ नहीं होने देगा। तो तुम चिंता मत करो।" आशा को भी उसकी पापा की बात सही लगी, अमोल एक प्रबुद्ध और सुलझा हुआ इंसान था। और वह मान गई। कुछ दिनों बाद उन दोनों का एंगेजमेंट हो गया।
फिर एक शनिवार को अमोल आशा के कॉलेज पहुंच गया और बोला "चलो चलकर साथ में एक कप चाय पीने जाते हैं।" आशा थोड़ी हिचकिचाने लगी, तो अमोल ने पापा को फ़ोन लगाया और उनसे मंज़ूरी ले ली। तो आशा उसके साथ चाय पीने चली गई। धीरे धीरे उन दोनों की मुलाक़ातें बढ़ने लगी। कुछ मुलाक़ातों के बाद आशा को एहसास होने लगा कि अमोल थोड़ा अजीब है। सिर्फ़ अपनी बात करना, ख़ुद को ही अहमियत देना आदि। पर फिर भी आशा खुश, क्यों कि वह सोचती थी कि हर इंसान का व्यक्तित्व अलग अलग रहता है, और बिना कमियों का इंसान तो होता ही नहीं।
दीवाली पास ही थी जब एक दिन अमोल ने बताया कि उसे उसकी कंपनी जर्मनी भेज रही है।
तो आशा ने उससे पूछा "कितने महीनों के लिए?"
उसने कहा "3 साल के लिए।"
फिर आशा ने कहा "3 साल? ठीक है तुम्हारे लौटने तक मैं अपना आइ ए एस कि ट्रेनिंग ख़त्म कर लूंगी।" पर वह अमोल का उत्तर सुनकर चौंक गई।
उसने कहा "अरे मैं तुम्हें यहां थोड़े ही छोड़ूंगा? मैं साथ लेके जाऊँगा ना?"
आशा -"आइ ए एस कि तैयारी और परीक्षा के लिए यहीं रहूँगी तो अच्छा होगा।"
अमोल - "अरे आइ ए एस करके क्या फ़ायदा है? विदेशों में रहने के लिए दूसरे कोर्स और परीक्षाएं रहती हैं। तुम वो कर लो ना।"
आशा - "पर आइ ए एस करना मेरा और मेरे पापा का सपना है। मैने तो तूम्हें पहले ही बताया था ना।"
अमोल - "हां पर उसका कोई फायदा नहीं है। और वैसे भी आइ ए एस सब की बस की बात न
हीं है। "
और इस तरह उन दोनों के बीच एक विवाद शुरू हो गया। बात बढ़ गई और अंत में अमोल ने गुस्से से आशा को एक चाटा मारा। जीवन में पहली बार किसी ने आशा पर हाथ उठाया था। वह सन्न हो गई थी। घर पहुँचकर उसने शांत मन से सोचा। उसे लगा अभी बात नही करूंगी तो आगे उसकी हिम्मत और बढ़ जाएगी। आशा ने अमोल को फ़ोन लगाया और बात की तो आशा की लगा उसे कोई पचतावा नहीं था। उल्टा वो आशा को ही दोष देने लगा।
जब आशा ने यह बात दोनों घरवालों से बताई तो पहले तो अमोल ने थप्पड़ मारने वाली बात से इनकार किया और बाद में माफ़ी मांगने लगा। उसके घरवाले तो कहने लगे कि ' ये सब छोटी मोटी बातें होती रहती हैं। ज्यादा सोचो मत।' अमोल माफ़ी मांगने की, आशा और घरवालों को समझाने की कोशिश करने लगा। पर आशा को वह सब एक ढोंग लग रहा था। लेकिन किसी ने आशा की एक नही सुनी।
पहले तो अमोल और उसके घरवालों ने दहेज़ लेने से मना कर दिया और बाद में आशा के पिता को अपनी पसंद की चीज़ों के बारे में बताने लगे। वो मांगते नहीं थे, पर जब आशा के घरवाले उनकी पसंद पूछे तो झट से बताते। और उसकी बातें आशा को बनावटी लगने लगी थी। आशा का अन्तर्मन कह रहा था कि 'ये बंदा सही नहीं है।'
बहुत सोचने के बाद आशा ने अपने पापा को बताया कि वह अमोल से शादी नहीं करना चाहती। पर उसके पापा को लगा कि वह ग़ुस्से से बोल रही है। उसने बहुत कोशिश की उन्हे समझाने की पर वो नहीं माने। फिर वह ज़िद पकड़ के बैठ गई। घरवालों ने मनाने की कोशिश की पर वह अड़ गई। अंत में उसके पापा ने शादी तोड़ दी और साथ में उससे रिश्ता भी तोड़ दिया।
वह हॉस्टल चली गई। उसके भय्या अपने पिता से छुप कर उसे पैसे देते थे। उसी साल आशा के पापा ने उसके जन्म दिन पर उसकी पहली श्रद्धांजलि छपवाई थी। उसे देखकर आशा को बहुत बुरा लगा था, वह बहुत रोई। जब यूपीएससी पास किया और आइ ए एस कि ट्रेनिंग के लिए चुनी गई तो एक मिठाई का डिब्बा लेके वह अपने घर गई थी ये सोचके के 'पापा माफ कर देंगे।' पर उसके पापा ने उसके मूह पर दरवाज़ा बंद कर दिया। पिछले साल आशा के भाई ने उसके लिए एक लड़का चुना तो उसने कहा कि अगर 'पापा हां कर देंगे तो मेरी भी हां है।'
आशा के भय्या ने उनके पापा से बात की तो वो ग़ुस्सा हो गए। उन्होंने ने घरवालों को कसम खिलादी के कोई आशासे बात नहीं करेगा। तब से किसी से बात नहीं हुई। इन्हीं बातों में जाने कब आशा की आँख लग गई। जब आंख खुली तो देखा 9 बजनेवाला था। आशा उठकर दरवाजे की ओर गई और सारे समाचार पत्रों को अंदर के आयी। फिर वह उस में अपनी श्रद्धांजलि की फोटो ढूंढ़ने लगी। लेकिन किसी भी समाचार पत्र में उसे वह नहीं मिला। वो उदास हो गई।
इतनी उदास तो वो घर छोड़ते वक्त नहीं हुई थी और नाही पहली श्रद्धांजलि पढ़कर।
वह सोचने लगी 'क्या पापा मुझे भूल गए? या फिर वो मुझे अब श्रृद्धांजलि के लायक भी नहीं समझते? या कुछ अनहोनी घटी है?' फिर वह फूटफुटकर रोने लगी। कुछ समय बाद दरवाज़े की घंटी बजी। आशा ने खोलकर देखा तो सामने उसके पापा खड़े थे, पूरे परिवार के साथ। वह पापा के गले लग-कर रोने लगी। वहां सभी रो रहे थे। दिल हल्का होने के बाद उसके पापा ने कहा "मुझे माफ़ कर दो बेटा, मैं तुम्हारी बात नहीं समझ पाया। पिछले हफ्ते तुम्हारे चाचा मिले थे, उन्होंने बताया कि अमोल ने शराब के नशे में अपनी पत्नी को पीट डाला। वो लड़की अस्पताल में और अभी वो जैल मे है। ये सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। और 2 दिन पहले पता चला कि वो लड़की मर गई। मैंने उस की जगह में तुम्हें रखकर सोचा तो डर गया। मुझे माफ़ करना।"
आशा ने आने पापा के आंसू पोछे और कहा "प्लीज़ पापा आप माफ़ी मत मांगो। बस इस बात का बुरा लग रहा है के मेंरी श्रृद्धांजली का अंत किसी दूसरी स्त्री के श्रृद्धांजली का आरंभ से हुआ।'"