Gopesh Dubey

Inspirational

4.7  

Gopesh Dubey

Inspirational

शक्ति स्वरुपा मेरी माँ

शक्ति स्वरुपा मेरी माँ

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साहस से परिपूर्ण हर माँ, दुर्गा है! 

ब्रहमाण्ड में प्रेम, त्याग एवं समर्पण को परिभाषित करने के लिए माँ शब्द ही काफी है। अपने बच्चों पर संकट की छोटी सी परछाईं को देखते ही वो कोमल हृदय वाली काया पल-भर में ही कितनी साहसी हो जाती है, यह कोई माँ से ही सीखे।


आज के दिन जब लोग दुर्गा मां की प्रतिमाओं को विसर्जित करते हैं तो मुझे बरबस ही साहस की साक्षात प्रतिमूर्ति अपनी प्यारी माँ की याद आ जाती है, जिसने मुझे एक बार नहीं बल्कि बार-बार जीवन दिया। 


बात उस समय की है जब मेरी उम्र तीन वर्ष की भी नहीं रही होगी। क्योंकि उस समय मेरा मुंडन संस्कार भी नहीं हुआ था। चूंकि बचपन में बाल बहुत घने होने के कारण बालों का बहुत बड़ा जूड़ा मेरे सिर पर बंधा रहता था। बचपन के चित्रों के देख कर लगता है कि उस समय मैं बहुत ही सुंदर दिखता था जैसे कि हर बच्चा बाल्यकाल में दिखता है। 


गांव में खपरैल का घर, प्राची में खुलने वाला घर का दरवाजा, दरवाजे के बाहर वसारा, वसारे के बाहर छोटा सा दुआरा, दुआरे के बाहर सामने गाँव का सबसे बड़ा तालाब, जिसे लोग आज भी 'बड़का तलवा' कह कर ही पुकारते हैं। तालाब का दृश्य बड़ा ही मनोरम होता था। रंग बिरंगी चिड़ियों का दिन भर चहचहाना, वर्षा ऋतु में कुमुदिनी के फूलों से पूरे तालाब का भर जाना, दिन में कई बार बंसमुर्गी और धवंरखा का एक साथ कूंक करना जैसे मंदिर में आरती हो रहा हो। 


तालाब के चारों ओर किनारे ऊंचे तो नहीं थे परन्तु एक तरफ आने-जाने का रास्ता था। और तीन तरफ से बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ एवं बांस की बड़ी-बड़ी कोठियां थी। तालाब बहुत स्वच्छ रहता था। ग्रीष्मकालीन ऋतु में तो तालाब के घाटों पर धोबी कपड़े धोते रहते थे। तालाब की गहराई का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि वर्ष भर वह सूखता नहीं था। परन्तु मुझे लगता है कि तालाब में जल प्रदूषण का शुभारंभ उसी समय से हो गया था। पशुओं को नहलाना, छोटे बच्चों के गन्दे कपड़े साफ करना, तालाब के किनारे पर बने घरों में रहने वाले परिवार अपनी पूरी गन्दगी उसी तालाब को अर्पित करते थे। यही नहीं प्रसव काल की पूरी गंदगी गगरी और मटकों में भर कर लोग तालाब के किनारे पानी में फेंक दिया करते थे। 


कहते हैं हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। उसी तरह वर्ष भर अपनी सुंदरता से मन को हर लेने वाला यह सरोवर प्रवर्षण काल में वीभत्स हो उठता था। इसी वीभत्स हो चुके रौद्र रूप धारण कर चुके जलाशय के किनारे किनारे मैं और मेरे भ्राता जो कि मुझसे केवल दो वर्ष पहले ही पृथ्वी पर पदार्पण कर चुके थे, उस समय लगभग पांच वर्ष के रहे होंगे, जा रहे थे। भैया के हाथ में पका लाल लाल टमाटर था जिसे मैं उनसे ले लेने को बेताब था। मगर उन्होंने उस सड़े हुए टमाटर को मुझको ना देकर तालाब के मुहाने पर फेंक दिया और कहा कि सड़ा है क्या करोगे ? 


मगर बालमन बहुत ही चंचल होता है। कभी वह चांद को मांगने की हट करता है तो कभी सुई के छेद से हाथी निकालने की बात करता है। वह नन्ही सी जान जिसे अपने हित अनहित का कुछ नहीं पता था उस आकर्षित लाल सी अनुपयोगी वस्तु को पाने की लालसा से उस अपार भयावह जलराशि के मुहाने की तरफ बढ़ा ही था की पांव फिसला और छपाक। नन्हा कोमल शरीर हाथ पांव चलाने लगा होगा। और इधर विशाल जलाशय मानों अपने हाथों में लेकर उस मनमोहक शिशु को अपने हाथों से ऊपर नीचे उछाल कर बलइयां ले रहा हो। 

भाई ने देखा और बेतहाशा भागे। उनके नन्हे पैरों में जैसे पर लग गये हों। शायद उन्हें होनी-अनहोनी का ज्ञान होने लगा था। 


मेरी भोली माँ अपने खेतों में काम करने वाली महिलाओं के साथ अलसी के बीजों की सफाई करवा रहीं थीं। भाई ने हांफते हुए प्रवेश किया और माँ को संबोधित करते हुए लगभग चिल्ला कर बोले "अम्मा! लल्ला गिर पड़ा। "

"उसे चोट तो नहीं लगी? " माँ ने यह सोच कर बहुत ही साधारण भाव से पूछा कि छोटे बच्चे अक्सर चलते चलते गिर पड़ते हैं। 

"नहीं! तलवा में" 

भाई के इतना कहते ही माँ कब काल समान अथाह गहराई वाले जलाशय के मुहाने पहुँच गयी। वहाँ काम करने वाली स्त्रियों को भी पता नहीं चल सका। 


उसने वहाँ पहुँच कर देखा की वह वीभत्स तालाब मुझ नन्हीं सी जान को अपने आगोश में समाने को आतुर है। मेरा बड़ा सा जुड़ा उसे दिखाई दिया। इधर वह विशाल तालाब अट्ठाहस करता हुआ मेरी बहादुर माँ को डराने की कोशिश करते हुए मानो कह रहा हो " हे कोमल स्त्री! तू वापस जा ! तेरा पुत्र अब मेरी गोंद में हमेशा के लिए सोने जा रहा है।" 


मगर मेरी माँ का साहस निडरता को प्राप्त हो चुका था। उसने अपने हृदय प्रिय लाल को उस वीभत्स, डरावने काल से छीन लाने का निर्णय कर उस अथाह जलाशय में छलांग लगा दिया । 


सबसे पहल उस शेरनी ने मेरे जूड़े को पकड़ कर मुझे उस क्रूर काल के हाथों से बचाने के लिए ऊपर उठा लिया। 

परन्तु यह क्या जल से लबालब भरे हुए उस काल समान तालाब को एक अबला स्त्री चुनौती दे। यह उसे कहाँ बरदाश्त था। उसने उस अबला को जो तैरना भी नहीं जानती थी, जिसे अपार जलराशि इतनी भी क्रूर हो सकती है इसका भी कभी एहसास नहीं था, को अपने अंदर मानो खींचने लगा। अब डूबने की बारी उसकी थी। मगर मुझको जूड़े से पकड़ कर एक हाथ से उठाये मेरी पूज्य माँ खुद डूबती रही, परन्तु मुझे डूबने नहीं दिया। माँ ने डूबते डूबते अपने इष्ट देव का सुमिरन किया। कहते हैं ईश्वर भी साहसी व्यक्ति का साथ देने हजारों कदम चल कर आते हैं। 

अरे हाँ ! यह चमत्कार ही तो था। 

माँ के पांव के नीचे एक मटका जो प्रसव के समय का कचरा भर कर तालाब में फेंका जाता था, आ गया। उसी के सहारे वह उस काल रूपी वीभत्स, डरावने, भयानक जलाशय को मात देकर ,अपने सबसे प्रिय जीव का जूड़ा पकड़े बाहर निकल रही थी तो साक्षात महाकाली का स्वरूप लग रहीं थी।


तब तक पिता जी बहुत से गोताखोरों को लेकर वहाँ पहुँच चुके थे। जिसने भी मेरी माँ का वह स्वरूप देखा नतमस्तक हो गया। 

इधर लोग हैरान थे। उधर मेरी माँ मुझे अपने अंक में छिपाये, अपने हृदय से लगाये, आंखों में अश्रु धार लिए ईश्वर को बार- बार धन्यवाद दे रही थी। 


यह घटना एक गोताखोर तैराक ने ही मुझे बताई थी। मैंने अपनी माँ से भी इस घटना के बारे में कई बार जानना चाहा मगर उन्होंने हंस कर हमेशा टाल दिया। 


माँ की ममता का कोई मोल ही नहीं हो सकता है। मैं ही क्या दुनिया का कोई भी व्यक्ति माँ के कर्ज से कभी उऋण नहीं हो सकता है। 


माँ तुझे प्रणाम 🙏🙏🙏



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