Charumati Ramdas

Thriller

0.2  

Charumati Ramdas

Thriller

सफ़ेद घर

सफ़ेद घर

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हम समुन्दर के किनारे पर रहते थे और मेरे पापा के पास एक बढ़िया पाल वाली नौका थी। मैं उसे बड़ी अच्छी तरह चला सकता था – चप्पू भी चलाता था, और पाल खींचकर भी जाता था। मगर फिर भी पापा मुझे अकेले समुन्दर में नहीं जाने देते थे। मैं था बारह साल का।

एक बार मुझे और बहन नीना को पता चला कि पापा दो दिनों के लिए घर से दूर जा रहे हैं, और हमने नाव पर उस तरफ़ जाने का प्लान बनाया; खाड़ी के उस तरफ़ एक बहुत अच्छा छोटा सा घर था: सफ़ेद, लाल छत वाला। घर के चारों ओर बगिया थी। हम वहाँ कभी नहीं गए थे, हमने सोचा, कि वहाँ बहुत अच्छा होगा। शायद एक भला बूढ़ा अपनी बुढ़िया के साथ रहता होगा। नीना कहती है, कि उनके पास एक छोटा सा कुत्ता भी होगा, वो भी भला होगा। बूढ़े शायद दही खाते होंगे और हमारे आने से उन्हें ख़ुशी होगी, हमें भी वो दही देंगे।

तो, हमने ब्रेड और पानी के लिए बोतलें बचाना शुरू कर दिया। समंदर में तो पानी नमकीन होता है ना, और अगर अचानक रास्ते में प्यास लगी तो ?

पापा शाम को चले गए, और हमने फ़ौरन मम्मा से छुप के बोतल में पानी भर लिया। वर्ना पूछेगी : किसलिए ? और, फिर सब गुड़-गोबर हो जाता।

जैसे ही कुछ उजाला हुआ, मैं और नीना हौले से खिड़की से बाहर निकले, अपने साथ नाव में ब्रेड और पानी की बोतलें रख लीं। मैंने पाल लगा दिए, और हम समुंदर में आए। मैं कप्तान की तरह बैठा था, और नीना नाविक की तरह मेरी बात सुन रही थी।

हवा हल्के-हल्के चल रही थी, और लहरें छोटी-छोटी थीं, और मुझे और नीना को ऐसा लग रहा था, मानो हम एक बड़े जहाज़ में हैं, हमारे पास खाने-पीने का स्टॉक है, और हम दूसरे देश को जा रहे हैं। मैं सीधा लाल छत वाले घर की ओर चला। फिर मैंने बहन से नाश्ता बनाने के लिए कहा। उसने ब्रेड के छोटे-छोटे टुकड़े किए और पानी की बोतल खोली। वह नाव में नीचे ही बैठी थी, मगर अब, जैसे ही मुझे नाश्ता देने के लिए उठी, और पीछे मुड़ कर देखा, हमारे किनारे की ओर, तो वह ऐसे चिल्लाई, कि मैं काँप गया:

“ओय, हमारा घर मुश्किल से नज़र आ रहा है !” और वह बिसूरने लगी।

मैंने कहा:

“रोतली, मगर बूढ़ों का घर नज़दीक है।”

उसने सामने देखा और और भी बुरी तरह चीखी:

“और बूढ़ों का घर भी दूर है : हम उसके पास बिल्कुल नहीं पहुँचे हैं, मगर अपने घर से दूर हो गए हैं !”

वह बिसूरने लगी, और मैं चिढ़ाने के लिए ब्रेड खाने लगा, जैसे कुछ हुआ ही न हो। वह रो रही थी और मैं समझा रहा था;

“वापस जाना चाहती है, तो डेक से कूद जा और तैर कर घर पहुँच जा, मगर मैं तो बूढ़ों के पास जाऊँगा।”

फिर उसने बोतल से पानी पिया और सो गई। मैं स्टीयरिंग पर बैठा रहा, और हवा वैसे ही चल रही है। नाव आराम से जा रही है, और पिछले हिस्से की तरफ़ पानी कलकल कर रहा है। सूरज ऊपर आ गया था।

मैंने देखा कि हम उस किनारे के बिल्कुल नज़दीक आ गए हैं और घर भी साफ़ दिखाई दे रहा है। नीना उठेगी और देखेगी – ख़ुश हो जाएगी ! मैंनें इधर-उधर देखा, कि कुत्ता कहाँ है। मगर ना तो कुत्ता, ना ही बूढ़ लोग दिखाई दिए।

अचानक नाव लड़खड़ाई और एक किनारे मुड़ गई। मैंने फौरन पाल उतारे, जिससे पूरी तरह पलट न जाए। नीना उछली। वह अभी तक नींद में थी, वह समझ ही नहीं पाई, कि कहाँ है, और उसने आँखें फाड़ कर देखा। मैंने कहा:

“रेत में घुस गए हैं, उथले पानी में फँस गए हैं, मैं अभी धकेलता हूँ। और, ये रहा घर।”

मगर उसे घर देखकर ख़ुशी नहीं हुई, वह और ज़्यादा डर गई। मैंने कपड़े उतारे, पानी में कूदा और धकेलने लगा।

मैंने पूरी ताकत लगा दी, मगर नाव टस से मस नहीं हुई। मैंने उसे कभी एक तरफ़ तो कभी दूसरी तरफ़ झुकाया। मैंने पाल उतार दिए, मगर कुछ फ़ायदा नहीं हुआ।

नीना चिल्लाकर बूढ़े को मदद के लिए पुकारने लगी। मगर वो घर दूर था, और कोई भी बाहर नहीं आया। मैंने नीना को बाहर कूदने की आज्ञा दी, मगर इससे भी नाव हल्की नहीं हुई: नाव मज़बूती से रेत में धँस गई थी। मैंने पैदल चलकर किनारे की ओर जाने की कोशिश की। मगर जहाँ भी जाओ, सब जगह गहरा पानी था। कहीं जाने का सवाल ही नहीं था। और इतना दूर कि तैरकर जाना भी मुमकिन नहीं था।

और घर से भी कोई बाहर नहीं आ रहा है। मैंने ब्रेड खाई, पानी पिया और नीना से बात नहीं की। वह रो रही थी और कह रही थी:

“ लो, फँसा दिया ना, अब हमें यहाँ कोई नहीं ढूँढ़ पायेगा। समुंदर के बीच उथली जगह पर बिठा दिया। कैप्टन ! मम्मा पागल हो जाएगी। देख लेना। मम्मा मुझसे कहती ही थी : “अगर तुम लोगों को कुछ हो गया, तो मैं पागल हो जाऊँगी”।

मगर मैं ख़ामोश रहा। हवा बिल्कुल थम गई। मैं सो गया।

जब मेरी आँख खुली, तो चारों ओर घुप अँधेरा था। नीन्का, नाव की बिल्कुल नोक पर बेंच के नीचे दुबक कर कराह रही थी। मैं उठकर खड़ा हो गया, और पैरों के नीचे नाव हल्के-हल्के, आज़ादी से हिचकोले लेने लगी। मैंने जानबूझकर उसे ज़ोर से हिलाया। नाव आज़ाद हो गई। मैं ख़ुश हो गया ! हुर्रे ! हम उथले पानी से निकल गए थे। ये हवा ने अपनी दिशा बदल दी थी, उसने पानी को धकेला, नाव ऊपर उठी, और वह उथले पानी से बाहर निकल आई।      

मैंने चारों तरफ़ देखा। दूर रोशनियाँ जगमगा रही थीं – ढेर सारी। ये हमारे वाले किनारे पर थीं : छोटी-छोटी, चिनगारियों जैसी। मैं पाल चढ़ाने के लिए लपका। नीना उछली और पहले तो उसने सोचा कि मैं पागल हो गया हूँ। मगर मैंने कुछ नहीं कहा।

और जब नाव को रोशनियों की ओर मोड़ा, तो उससे कहा;

“क्या, रोतली ? घर जा रहे हैं। बिसूरने की ज़रूरत नहीं है।

हम पूरी रात चलते रहे। सुबह-सुबह हवा थम गई। मगर हम किनारे के पास ही थे। हम चप्पू चलाते हुए घर तक पहुँचे। मम्मा गुस्सा भी हुई और ख़ुश भी हुई। मगर हमने उससे विनती की, कि पापा को कुछ न बताए।

बाद में हमें पता चला, कि उस घर में साल भर से कोई भी नहीं रहता है।


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