सच्चा धर्म
सच्चा धर्म


रहीम एक अनाथ बच्चा था। मुंबई का एक अनाथ आश्रम उसका सहारा था। 10 साल के छोटे से बच्चे ने खूबी हद से ज्यादा थी। इतना पवित्र उसका दिल इतना साफ मन वहां किसी का ना था l पर बेचारा अपनी किस्मत का मारा था। एक दिन किस्मत का ताला भी खुल गया। उसे एक परिवार में ना उसका सहारा बना जिन्होंने उसे गोद लिया। उसे वह प्यार दिया जिसका वह हक़दार था। उसे वह सब कुछ मिला जिसकी उसी अपनी जिंदगी में चाहत थी I परिवार में माँ, बाबा और दादी मिली।
सब खुश थे और सब से घुलमिल चुका था वह। लेकिन ख़ुशियाँ ज्यादा देर कहां रही उसके पास। एक दिन किसी ने दादी के कान भर दिए की मुस्लिम बच्चा हिंदू परिवार में क्या हो सकता है ? यह धर्म के खिलाफ नहीं है ? उस समय तो दादी ने नकार दिया लेकिन यह बात बैठ गई मन में और इस बात का शिकार हुआ रहीम I वह उसके साथ भेदभाव करने लगी। घर में सब को भनक पढ़ गई थी कि दादी के मन में क्या है? सबको लगा समय के साथ सब बदल जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 10 साल हो चुके थे रहीम को, 10 साल बिता चुका था वह दादी के साथ हर बार कोशिश करता कि दादी के मन में उसके लिए जगह बन जाए। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं दादी को उस पर भरोसा ना था ना उससे प्यार था। हर बार यह बात रहीम के मन को कचोटती की यह भेदभाव क्यों हो रहा है। ऐसा क्या हो गया कि अचानक से दादी उसे प्यार से कुछ पुकारती भी नहीं है I एक दिन दादी बीमार पड़ गए और उनके बेटा बहू यानी रहीम के मम्मी पापा उनके साथ नहीं थे। वह बाहर किसी काम से गए हुए थे। तब रहीम ने किया उनका सारा काम। पर रहीम को अपने पास नहीं आने देती नहीं छूने देती ना कोई काम करने देती। पर मजबूरी के आगे झुकना पड़ा। रहीम की प्यार भरी सेवा से उनके अधर्म और अंधविश्वास की दीवार थी वह टूटी गई। दिन रात बिचारा दादी का पूरा ख्याल रखता और उस रात दिन की सेवा से ही रहीम का सारा संसार बदल गयाl दादी का उस के लिए वह प्यार वह अपनापन सब कुछ वापस आ गया। उन्हें समझ आ गया धर्म के चश्मे से रिश्तो को या किसी इंसान को नहीं देखा जा सकता। अब रहीम को दादी का प्यार मिला ,उनका भरोसा भी। रहीम की जिंदगी अधूरी थी दादी के प्यार से पूरी हो गई। दादी को पोते से मिला दिया।आखिरकार प्यार ही सच्चा धर्म है यह दादी को पता चल गया और अधर्म और अंधविश्वास का चश्मा टूट गया।