Mahesh Gupta Jaunpuri

Drama

3.5  

Mahesh Gupta Jaunpuri

Drama

सौगंध

सौगंध

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मगरु- दिहाड़ी मजदूर

रमा- मगरु की जोरु

कुन्ती- मगरु की माँ

रोशनी- मगरु की बेटी

सेठ धनराज- कोठी का / मगरु का मालिक

मुंशी- सेठ धनराज का चमचा

वकिल राम सिंह- न्यायमूर्ति

साधु- मगरु का दोस्त

मगरु- अरे सुनती हो रमा कुछ खाने को दे दो सुबह हो गया सुरज की किरणें सर पर चढ़ गया हैं सेठ धनराज के घर काम पर जाना हैं आज मेरे काम का पहला दिन हैं सुनती हो जरा जल्दी करो भाग्यवान।

रमा- बेहद खूबसूरत समझदार औरत हॉ सुन रही हूँ बहरी नहीं हूँ बिटिया पुरे 6 साल की हो गयी हैं। अभी तक स्कूल का मुँह नहीं देखी रमा बुदबुदाते हुए खाना लाकर सामने रख देती हैं। और बोलने लगती हैं आते समय अम्मा के लिए दवा लेकर आना।

कुन्ती- अरे बेटा मगरु सुनते हो काम से आते वक्त बाजार से तम्बाकू लेते आना।

मगरु- ठिक हैं अम्मा जी

रमा- घर में राशन नहीं हैं लेकर आना शाम के लिए घर में फुटा दाना भी नहीं हैं।

मगरु- ठिक हैं भाग्यवान सेठ से आज कुछ पैसे उधार मांग कर लेकर आता हूँ।

रोशनी- बाबू जी मुझे स्कूल जाना हैं मेरे लिए कापी कलम बस्ता लेते आना मैं पढ़ने जाऊँगी।

मगरु- ठिक हैं बिटीया लेकर आऊँगा हमारी बिटीया पढ़ने जायेगी पुचकारते हुए मगरु कन्धे पर गमछा रखकर चले जाता हैं।

सेठ धनराज- अरे वो मगरुआ ई कवनो आने का बखत हैं।

मगरु- हुजूर माफी चाहते हैं।

सेठ धनराज- गुस्सा दिखाते हुए चल गेहूँ की लट्ठ को गोदाम में रख दे और घर की साफ सफाई कर डाल।

मगरु- हाथ जोड़कर जी हुजूर बोल अपने काम में लग जाता हैं घर की पुरी साफ सफाई करके अपना काम खत्म करके मगरु सेठ के पास पैसे के लिये जाता हैं हुजूर कुछ पैसा दे दीजिए घर में फुटा दाना भी नहीं हैं।

सेठ धनराज- कवनो बड़का सर्विस नहीं कर रहा हैं घर की साफ सफाई ही कर रहा हैं आज काम पर लगा आज ही पैसे का फरमान कर दिया कल काम पर से जाते वक्त ले लेना पैसा और सुन गाय को सानी पानी डाल कर जाना।

मुंशी- हुजूर ससुरा तो लेट आया था इसके दिहाड़ी से 20 रुपये काट लेना चाहिए।

मगरु- पैर पकड़ते हुए हुजूर ऐंसा जुल्म मत करिए मेरे परिवार में मैं ही अकेला कमाने वाला हूँ।

सेठ धनराज- पैर पकड़ने से कुछ नहीं होता तुम नीच जाति होकर मुझसे जबान लड़ाता हैं चल निकल कल भोर में ही काम पर आ जाना।

मगरु- अपने मुरझाये चेहरे को लेकर घर की तरफ बढ़ता हैं।

रोशनी- मॉ बाबू जी आ गये चिल्लाते हुए घर में जाती हैं लोटे का पानी लेकर आती हैं बाबू जी पानी पी लीजिए।

मगरु- हॉ बिटिया पी लेता हूँ।

रोशनी- बाबू जी हमारा कलम कापी बस्ता कहॉ हैं।

मगरु- बिटीया बाजार बन्द हो गया था कल लेकर आऊँगा तुम जाकर सो जाओ

रमा- बोली थी बाजार से राशन और दवाई लाने को कहॉ हैं।

मगरु- क्या बताये सेठ ने पैसा ही नहीं दिये कल देने को बोले हैं।

रमा- बुदबुदाते हुए घर के अन्दर चली जाती हैं।

कुन्ती- लाठी खटखटाते हुए अरे ओ मगरु मेरे लिए तम्बाकू लाया क्या

मगरु- नहीं अम्मा कल लेकर आता हूँ आज बाजार जाना नहीं हुआ।

कुन्ती- एक भी काम ढ़ंग से नहीं कर सकता बोल कर चली जाती हैं।

मगरु- उदास बैठा अपने किस्मत को कोसने लगता हैं।सुबह होते ही मगरु सेठ धनराज के यहॉ काम के लिए पहुँच जाता हैं।

मुंशी- अरे ओ मगरु तुने कल घर की सफाई ठिक से नहीं किया था|

मगरु- हुजूर सफाई तो अछ्छी तरह किया था।

मुंशी- झुठे फरेबी झुठ बोलता हैं चल अपने काम पर लग जा

मगरु- जी हुजूर

मगरु- घर का सारा काम खत्म करके सेठ धनराज का पैर दबाने बैठ जाता हैं और कहता हैं मालिक पैसा आज दे दीजिए घर में बीबी बच्चे भूखे हैं।

सेठ धनराज- गुस्सा दिखाते हुए मैं तुम्हारे बीबी बच्चों का जिम्मेदारी लिया हूँ क्या तुम नीच लोगो को बहाने खुब बनाने आते हैं अगर बीबी बच्चे भूखे हैं तो लेकर आ काम पर एक टाइम का भोजन मिलेगा काम के बदले में

मगरु- चुपचाप सेठ धनराज का बात सुनता रहता हैं। जाते समय घर एक बार फिर हिम्मत जुटा कर अपने मेहनत का पैसा मॉगता हैं।

सेठ धनराज- मुंशी इसको पैसा दे दो

मुंशी- मगरु को सौ रुपये दो दिन का दिहाड़ी मजदुरी देता हैं 20 रुपये काट कर

मगरु- हुजूर 20 रुपये कम हैं।

मुंशी- भाया कल जो लेट आया था वो काम तेरा बाप किया था चल निकल इतना ही मजदुरी होता हैं।

मगरु- ठिक हैं हुजूर बोलकर बाजार से सारे सामान लेकर घर पहुँचता हैं घर पहुँचते ही घर में एक अलग ही रौनक सबके चेहरे पर देखने को मिलता हैं।

रमा- आप हाथ मुँह धुल लीजिए मैं पानी लेकर आती हूँ।

मगरु- परिवार वाले को खुश देखकर अपने सारे दुःख दर्द को भूल जाता पानी पीकर अम्मा से बाते करने लगता हैं।

रोशनी- बाबू जी मैं कल से स्कूल जाऊँगी खुब मन लगाकर पढुगी।

मगरु- बिटिया को पुचकारते हुये ठिक हैं हमारी लाडो अब जाकर सो जाओ

रमा- मैं आपके दर्द को समझ सकती हूँ लेकिन क्या करु आदत सी पड़ गयी बुदबुदाने की खुद को समझाने की

मगरु- रमा को प्यार करते हुए ठिक हैं हमारी भाग्यलक्ष्मी अब आराम कर लो।

मगरु रोजाना की तरह अपने काम में ब्यस्त हो जाता हैं सेठ धनराज के जुल्मो को सहन कर अपने परिवार को खुश रखता हैं। एक दिन मगरु बहुत बीमार पड़ जाता हैं जिसके वजह से काम पर नहीं जा पाता।

मुंशी- मगरु ओ मगरु सुन रहा हैं काम पर क्यों नहीं आया।

रमा- बाबूजी बीमार पड़े हैं उठने की भी हिम्मत नहीं हैं कुछ पैसा सेठ जी से दिलवा देते तो दवाई दिलवा देती।

मुंशी- पैसा चाहिए तो सेठ के कोठी पर चलना पड़ेगा।

रमा- ठिक हैं बाबू जी मैं चलती हूँ कोठी पर

मुंशी- सेठ धनराज के कानो में कुछ खुसुर - फुसुर करता हैं।

सेठ धनराज- अरे वो रमा सुनती हो जितना पैसा चाहिए ले जा कल से काम पर आ जाना।

रमा- जी हुजूर रमा को सेठ धनराज का नियत कुछ ठिक नहीं लगता लेकिन मजबुरी था परिवार को चलाने की रमा पैसे लेकर आती हैं और अपने मर्द को दवा दिलाती हैं। रमा सुबह होते ही कोठी पर काम करने के लिए चली जाती हैं अपना काम कर ही रहीं थी अचानक पीछे से सेठ धनराज रमा को पकड़ लेता हैं अपने बाहो में भरकर रमा के साथ छेड़खानी करने लगता हैं।

रमा- जोर जोर से चिल्लाने लगती हैं हुजूर छोड़ दीजिए भगवान के लिए छोड़ दीजिए।

सेठ धनराज- इस कोटी के हम ही भगवान हम ही शैतान हैं बोलते हुये दरिन्दो की तरह रमा पर झपट पड़ता हैं। रमा के साथ दुराचार करने के बाद गलाघोट कर मार डालता हैं गॉव के बाहर पेड़ पर उसका लाश फॉसी के फंदे में लटकवा देता हैं।

साधु- अरे मगरु भैया गजब हो गया तेरी जोरु फॉसी लगा ली मगरु भागते हुये पहुँचता हैं देखते ही मंजर को फुटफुट कर रोने लगता हैं। मगरु की दुनिया वीरान हो जाती हैं इंसानियत के नाम पर मगरु को चीढ़ हो जाता हैं।

मगरु- रमा तुम्हारी सौगन्ध खाता हूँ जब तक दरिन्दों को सजा नहीं दिला दुगाँ चैन से बैठुगॉ नहीं। मगरु थाने जाकर दिरिन्दो के खिलाफ एफ आई आर लिखवाता हैं लेकिन सेठ धनराज के तानाशाही के वजह से थानेदार एफ आई आर नहीं लिखता।

थानेदार कल आने को बोलता हैं इसी तरह महीने बीत जाते हैं थाने का चक्कर लगाते हुये मड़रु को मगरु बहुत चिन्तित रहने लगता हैं एक दिन थानेदार मगरु को ही जाल में फंसा बोलते हैं तुमने ही अपने जोरु को मारा हैं गरिबी की वजह से इसी जुल्म में मगरु को फंसा थानेदार जेल में बन्द करके बहुत पिटाई करता हैं।

थानेदार- चल निकल आज के बाद दिखना मत सेठ धनराज के छवि को धूमिल करने की कोशिश मत करना।

मगरु- चीखता चिल्लाता सेठ धनराज के घर पहुँचता हैं और बोलता हैं हुजूर आपने ऐंसा क्यो किया।

सेठ धनराज- यहॉ से निकल नहीं तो तुझे भी मार डालुगॉ तेरी जोरु की तरह

मगरु- सेठ की बात सुनते ही आग बबुला हो उठता हैं सामने पड़ी लाठी से पीट पीट कर सेठ धनराज की जान ले लेता हैं और उसी गॉव के बाहर पेड़ पर उसे लटका देता हैं। गॉव में सनसनी फैल जाता हैं सेठ धनराज की मौत का

थानेदार- मगरु ये क्या कर दिया तुमने सेठ धनराज को मार दिया।

मगरु- हुजूर आप अपना काम किये होते तो मुझे ऐसा काम नहीं करना पड़ता। मगरु अपने आप को पुलिस के हवाले कर देता हैं और अपना जुर्म कबुल कर लेता हैं।

वकिल राम सिंह- गॉव का पढ़ा लिखा शिक्षित मगरु से बोलता हैं मगरु मैं सरकार से सिफारिश करुगाँ तुमको कम से कम सजा मिले।

मगरु- हाथ जोड़ते हुये अपने आप को सम्भालते हुए जेल चले जाता हैं।

वकिल राम सिंह- मगरु के लिए सरकार से पैरवी कर सजा कम करा देता हैं 2 साल बाद आज मगरु की रिहाई हैं गॉव वालो ने मिलकर मगरु के जीवन यापन के लिए छोटा दुकान खोल कर मगरु को सौप देते हैं।

मगरु- अपने सजा को काट गॉव पहुँचता हैं उसे यकिन नहीं होता की गॉव वाले उसके लिए इतना कुछ कर सकते हैं इंसानियत की इस मिशाल को देख मगरु की आँखें भर आती हैं।


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